अनुराग पुनेठा
पिछले तीन साल (अगस्त 2022 से अगस्त 2025) में भारत ने रूस से सस्ता कच्चा तेल खरीदकर करीब 26.3 बिलियन डॉलर (लगभग 2.21 लाख करोड़ रुपये) बचाए। अगर यही तेल सऊदी अरब से खरीदा जाता, तो भारत को 187.3 बिलियन डॉलर खर्च करने पड़ते, लेकिन रूस से खरीदने पर खर्च सिर्फ 161 बिलियन डॉलर हुआ। यह बचत इसलिए हुई क्योंकि यूक्रेन युद्ध के बाद रूस ने पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण अपने तेल पर 10-20 डॉलर प्रति बैरल की छूट दी, जो सऊदी तेल से सस्ता था।
रूस से तेल खरीद में बढ़ोतरी
2022 में यूक्रेन युद्ध के बाद भारत ने रूस से तेल खरीद बढ़ा दी। 2022 में भारत ने 25 बिलियन डॉलर का तेल खरीदा, 2023 में 48.63 बिलियन डॉलर, 2024 में 52.73 बिलियन डॉलर और 2025 के पहले आठ महीनों में 35 बिलियन डॉलर का तेल लिया। भारत ने हर दिन औसतन 1.5 से 1.8 मिलियन बैरल तेल रूस से मंगवाया। सऊदी अरब का तेल ब्रेंट बेंचमार्क की कीमत पर बिकता है, जो रूसी तेल से महंगा है। मिसाल के तौर पर, 2023 में रूसी तेल 70-80 डॉलर प्रति बैरल था, जबकि सऊदी तेल 80-100 डॉलर प्रति बैरल।
बचत का महत्व
Investment Information and Credit Rating Agency of India Limited (IICRA India) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत ने 2023 में 5.1 बिलियन डॉलर और 2024 के 11 महीनों में 7.9 बिलियन डॉलर की बचत की। यह बचत भारत के लिए बहुत जरूरी है क्योंकि भारत अपनी तेल जरूरत का 85% से ज्यादा आयात करता है। 2024 में भारत का कुल तेल आयात बिल 137 बिलियन डॉलर था, जिसमें रूस का हिस्सा 35-40% था। अगर भारत सऊदी अरब से तेल खरीदता, तो पेट्रोल-डीजल और परिवहन की कीमतें बढ़ने से महंगाई बढ़ सकती थी।
भारत का रुख और वैश्विक प्रभाव
ट्रंप प्रशासन की धमकियों के बावजूद भारत ने रूस से तेल खरीदना जारी रखा, क्योंकि मध्य पूर्व जैसे दूसरे स्रोत ज्यादा महंगे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर भारत रूस से तेल न खरीदता, तो वैश्विक तेल की कीमतें 130-140 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकती थीं। रूस से सस्ता तेल खरीदकर भारत ने न सिर्फ पैसे बचाए, बल्कि अपनी ऊर्जा सुरक्षा को भी मजबूत किया।