~ सतीशचंद्र मिश्रा
डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने दौलताबाद किले (देवगिरि किला, महाराष्ट्र) की यात्रा के दौरान मुसलमानों द्वारा उनके साथ और उनके सहयात्री दलित बंधुओं के साथ किए गए चरम “गंगा जमुनी तहज़ीब” वाले परम् “सेक्युलर व्यवहार” का जीवंत वर्णन किया है।
क्योंकि इस वर्णन को पढ़ने के बाद सेक्युलरिज्म के थोक विक्रेता सपाई और कांग्रेसी विक्रेताओं को सेक्युलरिज्म के तेज़ और गम्भीर दौरे पड़ेंगे कि, यह झूठ है… यह झूठ है…. इसलिए पहले बताए देता हूं कि, यह वर्णन “DR BABASAHEB AMBEDKAR WRITINGS AND SPEECHES” ग्रन्थ के पेज नंबर 684 पर लिखा है।
अब जानिए कि डॉक्टर अंबेडकर ने यह लिखा है….
“रमज़ान का महीना था, मुसलमानों के रोज़े का महीना। किले के दरवाज़े के ठीक बाहर पानी से लबालब भरा एक छोटा सा तालाब है। चारों तरफ़ पत्थरों की चौड़ी फ़र्श है। हमारे चेहरे, बदन और कपड़े सफ़र की धूल से सने हुए थे और हम सब नहाना चाहते थे। बिना ज़्यादा सोचे-समझे दल के कुछ लोगों ने तालाब के पानी से फ़र्श पर ही अपने चेहरे और पैर धो लिए। इन वज़ूओं के बाद हम किले के दरवाज़े पर गए। अंदर हथियारबंद सिपाही थे। उन्होंने बड़े दरवाज़े खोले और हमें मेहराब में दाख़िल किया। हमने अभी-अभी पहरेदार से किले में जाने की इजाज़त लेने की प्रक्रिया पूछी थी।
इसी बीच, सफ़ेद लहराती दाढ़ी वाला एक बूढ़ा मुसलमान पीछे से चिल्लाता हुआ आ रहा था, “धेड़ (अर्थात अछूत) ने तालाब को गंदा कर दिया है।” जल्द ही आस-पास मौजूद सभी जवान और बूढ़े मुसलमान उसके साथ आ गए और हमें गालियाँ देने लगे। “धेड़ घमंडी हो गए हैं। धेड़ अपना धर्म (यानी नीच और पतित रहना) भूल गए हैं। धेड़ों को सबक सिखाना होगा।” वे बहुत ही धमकी भरे अंदाज़ में आ गए। हमने उन्हें बताया कि हम बाहरी हैं और स्थानीय रीति-रिवाजों से वाकिफ़ नहीं हैं। उन्होंने अपने क्रोध की आग स्थानीय अछूतों पर फोड़ दी, जो तब तक गेट पर पहुँच चुके थे।
“आपने इन बाहरी लोगों को यह क्यों नहीं बताया कि इस तालाब का इस्तेमाल अछूतों द्वारा नहीं किया जा सकता!” यही सवाल वे उनसे बार-बार पूछ रहे थे। बेचारे लोग! जब हम तालाब में दाखिल हुए तो वे वहाँ मौजूद नहीं थे। यह वास्तव में हमारी गलती थी क्योंकि हमने बिना पूछताछ के ऐसा किया। उन्होंने विरोध किया कि यह उनकी गलती नहीं थी। लेकिन मुसलमान मेरी बात सुनने को तैयार नहीं थे। वे उन्हें और हमें गालियाँ देते रहे। गालियाँ इतनी अश्लील थीं कि हम चिढ़ गए। आसानी से दंगा हो सकता था और संभवतः हत्याएँ भी हो सकती थीं। हालाँकि हमें खुद को संयमित करना था। हम किसी आपराधिक मामले में शामिल नहीं होना चाहते थे जो हमारे दौरे को अचानक समाप्त कर दे। भीड़ में एक नौजवान मुसलमान बार-बार कह रहा था कि हर किसी को अपने धर्म का पालन करना चाहिए, यानी अछूतों को सार्वजनिक तालाब से पानी नहीं लेना चाहिए। मैं काफ़ी अधीर हो गया था और मैंने उससे कुछ गुस्से भरे लहजे में पूछा, “क्या तुम्हारा धर्म यही सिखाता है? अगर कोई अछूत मुसलमान बन जाए तो क्या तुम उसे इस तालाब से पानी लेने से रोकोगे?” इन सीधे सवालों का मानो कोई असर हुआ हो।
इसी दौलताबाद किले की यात्रा के दौरान ऐसे ही एक अन्य अनुभव का डाक्टर अंबेडकर ने “Pakistan or the Partition of India” के अध्याय 11 में वर्णन किया है। अंबेडकर लिखते हैं कि “जब वे दौलताबाद किले की सीढ़ियाँ चढ़ रहे थे, तो किले पर मौजूद मुस्लिम संतरी ने उन्हें (जो उस समय सूट-बूट में थे) देखकर गाली दी और कहा कि “अछूत ऊपर नहीं चढ़ सकता”। अंबेडकर ने इसका जवाब देते हुए कहा कि वे हिंदू नहीं, बौद्ध हैं, लेकिन फिर भी उन्हें अपमानजनक व्यवहार का सामना करना पड़ा।
(क्योंकि मैं धरती चपटी है और 72 हूरों जैसा झूठ नहीं बोलता इसलिए बात सबूतों के साथ ही करता हूं। अतः तथ्य कि पुष्टि के लिए स्क्रीन शॉट भी दे रहा हूं…)



