सदैव स्मृतियों में बसे रहेंगे हम सबके उमेशजी

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कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल

26 अगस्त 1958 को जन्मे उमेश उपाध्याय भारतीय पत्रकारिता के क्षितिज के वो ध्रुवतारे थे जिनके व्यक्तित्व और कृतित्व की महनीय उपस्थिति ने टेलीविजन और डिजिटल पत्रकारिता को नया आयाम दिया। वे सादगी पसंद ऐसी जमीनी शख्सियत थे जिन्होंने आसमां की बुलंदी भी देखी। शिखर के चरमोत्कर्ष की ऊंचाइयों में रहे। लेकिन जमीन से अपना नाता कभी भी टूटने नहीं दिया। उमेश जी पत्रकारिता के चलते-फिरते विश्वविद्यालय थे। उनके एक-एक शब्द में गहन तपस्या की अनुगूंज थी। उमेश जी से जो मिला वो उनका हमेशा के लिए अपना हो गया। वे जिससे भी मिलते थे बड़ी ही आत्मीयता के साथ मिलते थे। उनके व्यक्तित्व में एक चुम्बकीय आकर्षण था। राष्ट्रीय विचारों और भारतीय संस्कृति के प्रति समर्पित उमेश जी ने अपनी दूरदृष्टि से जो स्वप्न देखा, उसे साकार किया। उन्होंने विचलनों के स्याह समय में भी अपनी वैचारिक निष्ठा से रत्ती भर समझौता नहीं किया। वे अपनी शैली में अपनी धुन राष्ट्र पंथ के पथिक बनकर गतिमान रहे आए। उनसे मिले और परिचय का एक वर्ष ही हुआ था लेकिन मुझे कभी भी ऐसा नहीं लगा कि – मैं उन्हें इतने कम समय से जानता हूं। मुझे हमेशा यही लगा कि जैसे मैं उन्हें वर्षों से जानता हूं। उनसे प्रत्यक्ष मुलाकात 1 बार ही हुई लेकिन फोन और आधुनिक तकनीक से उनसे निरंतर संपर्क बना रहा‌। मैंने उन्हें कभी भी फोन या मैसेज किया।

उनका हमेशा आत्मीय प्रत्युत्तर मिला। 2 सितंबर को जब दोपहर में उनके दु:खद निधन की सूचना मिली तो कुछ समय के लिए अवाक सा हो गया।कई घंटे तक विश्वास नहीं कर पाया कि ऐसा कैसे हो सकता है? किन्तु क्रूर नियति के समक्ष किसका वश चला है। काल‌ के क्रूर प्रहार ने उन्हें हम सबसे छीन लिया। उनकी रिक्तता की वेदना असह्य ज्वार बनकर उमड़ती रहती है। मन अब भी विश्वास नहीं कर पा रहा कि – उमेश जी अब नहीं रहे हैं। हां, दूसरी ओर यह सच भी है क्योंकि उनकी नश्वर काया भले महाप्रयाण की यात्रा पर चली गई हो‌। किन्तु उनकी यशकाया , उनके कार्यों और विचारों की शाश्वत काया हर क्षण हम सभी के बीच उपस्थित है।

उनकी असमय दु:खद अनुपस्थिति ने देश को झकझोर कर रख दिया। मीडिया जगत तो शोकमग्न हुआ ही इसके साथ ही समाज जीवन के हर उस व्यक्ति ने उनके दु:खद निधन को अपनी व्यक्तिगत क्षति मानी। जो उनके व्यक्तित्व और कृतित्व का सहभागी रहा है। याकि जिन्होंने समाज जीवन में उनकी यात्रा देखी हो। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर और अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य मनमोहन वैद्य, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड के मुख्यमंत्रियों से लेकर राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश समेत राजनीतिक क्षेत्र और सार्वजनिक जगत के लोगों ने उनके प्रति अपनी शोक संवेदना प्रकट की। किसी भी व्यक्ति के जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि यही होती है कि उसकी अनुपस्थिति में भी लोग उसे कैसे याद रखते हैं। अपनी 66 वर्ष की आयु में उमेश जी के तपस्वी व्यक्तित्व ने यह सिद्ध किया कि – उन्होंने अपने जीवन में क्या अर्जित किया था।

अपनी 4 दशक की पत्रकारिता की यात्रा में उन्होंने कई मानक गढ़े। मीडिया में नवोन्मेषी दूरदृष्टि के साथ नवपरिवर्तन को सृजन में परिवर्तित किया। वे भारतीय मूल्यबोध के साथ पत्रकारिता के सिद्धांतों को आत्मसात तो कर रही रहे थे।इसके साथ ही कई सिद्धांत गढ़ भी रहे थे। उमेश जी यानी वो व्यक्तित्व जिनके बहुआयामी कृतित्व ने मीडिया और पत्रकारिता के साथ -साथ राष्ट्र जागरण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। एक व्यक्ति जब अपने कार्य के केन्द्र में राष्ट्र और समाज की उन्नति का दृढ़ संकल्प लेकर चलता है। फिर किसी भी परिस्थिति में डिगता नहीं है और संकल्पों को पूर्ण करता है तब उसका यशस्वी होना सुनिश्चित हो जाता है।इसी तप साधना ने उमेश जी को गढ़ा था।

पत्रकारिता के क्षेत्र से लेकर अकादमिक जगत और राष्ट्रीय – अन्तरराष्ट्रीय विमर्श में उनका ख़ासा दख़ल रहा है।वे गहन अध्येता – श्रेष्ठ वक्ता होने के साथ-साथ समय से काफी आगे चलने वाले स्वप्नदृष्टा भी थे।देश – विदेश और समाज की हर घटना पर उनकी कुशल पारखी दृष्टि रहती थी। वैश्वीकरण की दुनिया में उन्होंने मीडिया के वैश्विक परिदृश्य पर अपनी एक विश्लेषणात्मक धारा का निर्माण किया था। राष्ट्रीय महत्व के साथ – साथ वे वैश्विक नैरेटिव की भारत विरोधी दुरभिसंधियों की बारीकियों को जानते और पहचानते थे। अपने मौलिक विचारों – कार्यों, लेखनी और वक्तृत्वता के साथ – साथ नेतृत्वकर्ता के रूप में वे विभिन्न क्षेत्रों में सार्थक और सशक्त हस्तक्षेप रखते रहे हैं। हम वर्तमान मीडिया और डिजिटल मीडिया का जो स्वरूप आज देख रहे हैं।उमेश जी ने उसे दो दशक पहले ही भांप लिया था । अपने समय के ख्यातिलब्ध एंकर से लेकर संपादक और कुशल नेतृत्वकर्ता के रूप में वे जाने और पहचाने गए। उन्होंने भारतीय टेलीविजन मीडिया के विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।टेलीविजन पत्रकारिता क्षेत्र के वर्तमान के कई दिग्गज चेहरों को निखारने और उनकी संभावनाओं के क्षितिज को उड़ान देने में भी वे अव्वल थे। उमेश जी के साथ जिसने – जब भी समय बिताया ; उसने उन्हें वैसे ही याद किया – जैसे उमेश जी गंगा से निर्मल,धवल , निश्छल और निष्कलंक थे। विचारों को कार्यों में परिणत करने में वे सिद्धस्थ थे। उन्होंने जिस कार्य की बागडोर अपने हाथों में ली फिर उसकी नई लीक बनाई।

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्राध्यापक के रूप में उन्होंने कर्त्तव्य पथ की शुरुआत की‌।फिर पत्रकारिता के क्षेत्र में आ गए लेकिन अकादमिक जगत और शोध विश्लेषण से उन्होंने हमेशा अपना गहरा नाता बनाए रखा। रिलायंस मीडिया इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष और निदेशक के साथ ही वे NETWORK 18 के समाचार अध्यक्ष के रूप में एक बड़ी भूमिका का निर्वहन करते रहे । अपने प्रभावी नेतृत्व की भूमिका में उन्होंने पीटीआई , ZEE News, SAB TV, LOKMAT , ETV Network सहित देश के कई अग्रगण्य मीडिया संस्थानों में अपने काम से एक नई लीक बनाई। भारतीय जनसंचार संस्थान नई दिल्ली ( IIMC), भारतीय , माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल सहित देश की विभिन्न संस्थाओं की प्रमुख निर्णयन समितियों के सदस्य के रूप में भी अपनी भूमिका निभाते रहे आए। वे जहां भी रहे उन्होंने सर्जन की नई धारा का सूत्रपात किया। अपनी मौलिक वैचारिकी के बीज रोपे और उन बीजों को वटवृक्ष में परिवर्तित होते हुए भी देखा।

हाल ही में आई उनकी पुस्तक “Western Media Narratives on India – Gandhi to Modi” निरन्तर चर्चा में बनी हुई है‌। देश भर के तमाम विश्वविद्यालयों और अकादमिक जगत में पुस्तक ने बहुत ही कम समय में ही अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज करा है। उमेश जी जब अपनी इस पुस्तक के बिन्दुओं पर प्रकाश डालते हैं और पश्चिमी मीडिया के नैरेटिव पर चर्चा करते हैं तो मन और विचार तरंगित हो उठते हैं। वे सिलसिलेवार ढंग से तथ्यात्मक अन्वेषण और विश्लेषण के साथ कटु यथार्थ उद्धाटित करते हैं।
उनकी इस अमर कृति को पढ़ते हुए सहज ही विचार बनते हैं कि – अब समय आ गया है कि भारत भी पश्चिम को उसी के नैरेटिव से ही देखे। वर्तमान में देश के वैश्विक शक्ति के रूप में पुनः अभ्युदय के साथ-साथ ही ‘भारतीय मीडिया’ के भी वैश्विक नेतृत्वकर्ता के रूप में उभरने और हस्तक्षेप की आवश्यकता है। उनकी यह कृति वैश्विक नैरेटिव में भारत की सशक्त समर्थ गूंज को प्रतिबिंबित करती है। पश्चिम के भारत विरोधी मीडिया नैरेटिव की सत्य और तथ्य के आधार पर कलई खोलती है। साथ ही देश को आह्वान करती है कि – देखो ! ये दुनिया तुम्हें कैसे देखती है? समय आ गया है कि प्रत्युत्तर दिया जाए। वस्तुत: इस पुस्तक के विषय को लेकर उनके मन में 1980 के समय विचार पनपे थे। जब वे जेएनयू में अन्तरराष्ट्रीय संबधों पर अध्ययन कर रहे थे। उस समय के अध्ययन और विदेश‌ यात्राओं से लेकर अपने प्रोफेशनल कॅरियर के कालखंड के सम्पूर्ण अनुभवों को उन्होंने अपनी इस पुस्तक में निचोड़ के रूप में प्रस्तुत किया है। वर्तमान में उनकी इस पुस्तक का अंग्रेजी संस्करण ही उपलब्ध है। चूंकि मैं मूलतः हिन्दी का पाठक हूं इसलिए मुझे लगा कि इतनी महत्वपूर्ण पुस्तक का हिन्दी संस्करण भी आना चाहिए। इसीलिए मैंने जब आदरणीय उमेश जी इस पर अपनी बात रखी. तब उन्होंने एक सप्ताह पूर्व ही मुझे बताया था कि – जल्द ही पुस्तक का हिन्दी संस्करण भी आएगा। यह उनकी सहजता और बड़प्पन का एक उदाहरण मात्र है। जो उन्हें विरला बनाता था।

उमेश जी से जो भी पहली बार मिला होगा। वो उनकी सहजता और सरलता से कभी भांप ही नहीं पाया होगा कि उनका व्यक्तित्व और कृतित्व कितना विराट है। उनसे जो भी मिला उनकी
सहजता, सरलता और सौम्यता से भरी आत्मीय मधुर वाणी का कायल हो गया। पिछले बरस जब उनसे मेरी भेंट हुई तो उस आत्मीय वैचारिक संवाद में उन्होंने कई सारी जिज्ञासाओं का समाधान सुझाया। राष्ट्र और समाज के प्रति अपने दायित्वों को निभाने के लिए प्रेरित किया। फिर कुछ महीनों पहले वे भोपाल भी आए थे। लेकिन कतिपय कारणवश उनसे भेंट नहीं हो पाई। लेकिन उनसे बात कर ये तय हो गया था का वे जब भी भोपाल आएंगे अवश्य भेंट होगी। इसी बीच मैं रायपुर में शिफ्ट हो गया तो यह तय हो गया था कि – वे जब भी रायपुर आएंगे तो सूचित करेंगे। किन्तु नियति ने उमेश जी को ही हम सबसे छीन लिया। उनके जाने की ख़ामोशी इतनी मर्मभेदी थी कि शोक और पीड़ा के ज्वार सिवाय कुछ और नहीं प्रतीत होता है।

उमेश जी जब संवाद करते थे तो आत्मीयता का स्त्रोत उमड़ता था। किन्तु इसके विपरीत जब वे वैचारिक पक्ष पर उद्बोधन देते थे तो वे प्रखर और क्रान्तिकारी हो जाते थे। उनके एक-एक शब्द और वाक्य में गहरे मर्म भेदने की सामर्थ्य थी। वे जो भी बोलते थे – लिखते थे ; उसके पीछे वे कई सन्दर्भ, प्रमाण और तथ्य उद्धृत करते थे। वे कटुसत्य का मुखर वाचन करते हुए धारा प्रवाह अपनी रौ में बहते चले जाते थे। उन्होंने राष्ट्र और सत्य को अपनी वैचारिकी के मूल अधिष्ठान में रखा।देश भर में निरंतर उनके प्रवास का कार्यक्रम लगा ही रहता था। राष्ट्र को एक नई दिशा देने – समाज में नई चेतना लाने के लिए वे अपनी भूमिका को नित नूतन नव आयाम दे रहे थे। नई पीढ़ी को मार्ग दिखाने – उन्हें प्रशिक्षित करने और दिशाबोध देने में वे कभी पीछे नहीं हटे। राष्ट्रीयता के मूल्यों और विचारों के प्रखर संवाहक के रूप में उमेश जी हम सबके लिए प्रेरणा हैं। पथ-प्रदर्शक हैं। उन्होंने अपने व्यक्तित्व कृतित्व से नई पीढ़ी को दिशाबोध दिया है। उनकी जीवन यात्रा इस बात की साक्षी है कि राष्ट्र और समाज के प्रति समर्पण हो। त्याग और बलिदान की तपसाधना हो तो नए मानक गढ़े जा सकते हैं। संकल्पों के असंख्य दीप जलाए जा सकते हैं। भारतीयता के मूल्यों और संस्कारों का आलोक सर्वत्र बिखेरा जा सकता है। उनकी कार्यशैली और अध्ययनशीलता – विश्लेषण विवेचन और अन्वेषण ने यह मार्ग दिखलाया कि – वैश्विक पटल पर राष्ट्र की महत्वपूर्ण उपस्थिति के लिए ; बहु-आयामी क्षेत्रों में बौध्दिक योद्धा बनने की आवश्यकता है। उन्होंने अपने कार्य से जो दिशा दिखाई है उस दिशा में गतिमान रहने की हम सभी की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। वे जिस विचार और कार्य का ईश्वरीय संकल्प लेकर चल रहे थे , उसे पूर्ण करने का दायित्वबोध हम सभी को लेना पड़ेगा। राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं वरन् वैश्विक परिदृश्य में भारतीय मीडिया की नवीन भूमिका एवं पश्चिम के भारत विरोधी नैरेटिव को लेकर उन्होंने जो वैचारिक सूत्र दिए हैं। उन पर काम करने की ओर अग्रसर होना पड़ेगा। उमेश जी भौतिक रूप से भले ही अब हमारे मध्य नहीं हैं लेकिन उनकी वैचारिक और आध्यात्मिक उपस्थिति हम सभी के बीच सदैव विद्यमान रहेगी। हम उस शून्य को कभी नहीं भर पाएंगे जो असमय ही उनकी अनुपस्थिति से रिक्त हुआ है। किन्तु मन को एक गहरा विश्वास है कि राष्ट्र और समाज के लिए अथक- अविराम कार्य करने के लिए उनकी प्रेरणा हम सभी को हमेशा राह दिखाती रहेंगी। सश्रध्द कोटिश: वन्दन नमन् हम सभी के आदरणीय उमेश जी…आप हम सभी की स्मृतियों में सदैव बसे रहेंगे…

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