संदीप पांडेय
पटना। अवधेश प्रीत जी सदैव याद रहेंगे। और मैं भी उन्हें हमेशा याद रहा, सिर्फ 2 मुलाकात में।
बात तब की है जब, हिंदुस्तान पटना में आप कार्यरत थे। उन दिनों मैं दसवीं पास कर निकला था। तब मैं प्रेमरस की कविताएं लिखता था और सिर्फ यही सब लिखता था।
उन्हें छपवाने के लिए मैं उनके पास गया। उन्होंने मेरी 2 कविताएं पढ़ीं और फिर मेरा जमकर क्लास लिया। वो बोले…कि क्या तुम्हे देश, समाज पर लिखने नहीं आता? इन रचनाओं से समाज को क्या लाभ! भाषा और बिंबों को लेकर भी उन्होंने जमकर फटकार लगाई। फिर मुझे उदास देखकर बोले .. कि मैं तुम्हे हताश नहीं कर रहा .. कल अपनी सबसे अच्छी वाली 4 रचनाएं लेकर फिर से आना।
मेरी लेखनी में दोष निकालने के कारण मैं उनसे नाराज़ होकर हिंदुस्तान ऑफिस से निकला। अगले दिन मैंने 3 कविता अपनी और एक बशीर बद्र साहब की कम लोकप्रिय नज़्म को लेकर, 4 कविताओं के साथ उनके पास पहुंचा। वो लंच कर रहे थे लेकिन मुझे बुलाया और फिर से मेरी क्लास लेने लगे।
उन्होंने सभी कविताओं को पढ़ा और सबमें कमियां निकाल पुनः समझाया। फिर बोले कि चलो, कोई एक रचना तुम छोड़ दो..प्रकाशित हो जाएगी। साथ ही बताया कि देश और समाज के लिए चिंतन करो। प्रेम आदि में समय बर्बाद क्यों कर रहे।
खैर, जिस रचना के लिए मुझे जबर सुनाया वो बशीर बद्र साहब की थी। मैं उठ कर जाने लगा.. और जाते जाते उनसे कहा कि सर आपकी सब बात ठीक है, लेकिन आपको एक बात बताऊं, ये वाली रचना बशीर बद्र की है। अब जब ऐसे बड़े लेखक आपके प्रशंसा के पात्र नहीं, तो मेरी बुराई से मैं अब हतोत्साहित नहीं हूं। धन्यवाद ।।
वो थोड़ा झेंप गए और हंसकर बोले .. पांडेजी आप लेखन के साथ साथ कूटनीतिक दाव भी चलते हैं।।
इस बात को कोई छह–सात वर्ष बीते होंगे। मैं मंडी हाउस, दिल्ली में नाटक करता था। 2009 या 10 की बात होगी। मंडी हाउस के एलटीजी ऑडिटोरियम में महात्मा गांधी पर एक बहुत वृहत नाटक, जो मैने लिखा था उसका मंचन होना था।
ये नाटक अमर्त्य सेन की पुस्तक पर आधारित था। उसका मंचन .. ईश्वर की कृपा से बहुत वृहत स्केल पर हो रहा था। अमेरिका में रह रहे एक एनआरआई लेखक की पुस्तक का मैने ही नाट्य रूपांतरण किया था। उस नाटक में कई अमेरिकी गेस्ट भी उपस्थित थे। उस कार्यक्रम में अवधेश जी अतिथि थे। जब मंच पर उन्होंने मुझे संचालक की भूमिका में देखा और साथ ही मेरा तब का प्रचलित नाम “कनिष्क कश्यप” और रामदेव जी को टक्कर देती मेरी बढ़ी हुई दाढ़ी देखकर … वो थोड़े भटभटाए हुए थे। कार्यक्रम के पश्चात मिलते हुए बोले। आप संदीप पांडे हैं .. आपने नाम बदल लिया है.. लेकिन मुझे आप याद हैं, बशीर बद्र की रचना से छकाया था आपने और उसके लिए आपका धन्यवाद। उस घटना के बाद मैं पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर .. किसी भी रचना का मूल्यांकन नहीं करता। और हां.. नाटक में मजा आया।
आज न यासीन खान साहब जीवित हैं ( उस नाटक के निर्देशक और मेरे एक्टिंग गुरु) और न ही आप रहे। लेकिन आप जैसे सज्जन व्यक्तियों का आशीर्वाद और मार्गदर्शन हमेशा प्रेरणा बना रहेगा। देखिए आज पिछले दस वर्षों में शायद ही मैने प्रेम लिखा हो, सिर्फ देश और समाज का ही चिंतन शेष बचा है। ईश्वर आपको श्री चरणों में स्थान दें।
ॐ शांति शांति शांति।।



