2022 का नवंबर। बिहार में महागठबंधन की सरकार थी। नीतीश कुमार मुख्यमंत्री थे और राजद उनका सबसे बड़ा सहयोगी। सोनपुर साहित्योत्सव में कवियत्री अनामिका जैन अम्बर को काव्य पाठ के लिए आमंत्रित किया गया था। लेकिन जैसे ही पता चला कि उन्होंने कुछ कविताएँ नरेंद्र मोदी और उनकी नीतियों के पक्ष में लिखी-पढ़ी हैं, हंगामा खड़ा हो गया। प्रगतिशील खेमे ने एलान किया—ऐसी कवियत्री को मंच नहीं मिलेगा। विरोध इतना तीव्र था कि अनामिका को पटना एयरपोर्ट से ही वापस लौटना पड़ा। उस दिन साहित्य की नहीं, विचारधारा की जीत हुई थी। सहिष्णुता का दावा करने वाले खेमे ने असहिष्णुता का जीवंत प्रदर्शन किया।


कट टू 2025। अब सोनपुर में फिर साहित्योत्सव हो रहा है। आयोजक वही बिहार सरकार, लेकिन इस बार सत्ता में NDA है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं, पर बहुमत भाजपा का है। पर्यटन विभाग और कला-संस्कृति विभाग—दोनों के मंत्री भाजपा के हैं। दोनों की पृष्ठभूमि संघ से जुड़ी हुई है। जिन्हें “असहिष्णु”, “फासीवादी”, “संघी” कहा जाता रहा है, वही लोग आज आयोजन चला रहे हैं।
और अब देखिए मेले का पोस्टर। उसमें शामिल नाम पढ़कर आँखें फटी की फटी रह जाती हैं-
प्रगतिशील लेखक संघ (प्रलेस) के बिहार राज्य सचिव
वे वरिष्ठ वामपंथी लेखक जो NDA को “फासीवाद” बताते नहीं थकते
वे क्रांतिकारी कवि जो कभी भाजपा सांसद द्वारा आयोजित भोज का बहिष्कार कर चुके हैं
वे सभी चेहरे जो 2022 में अनामिका को एयरपोर्ट से लौटवाने में आगे-आगे थे
सब के सब मंच पर हैं। कोई विरोध नहीं। कोई हंगामा नहीं। कोई धरना-प्रदर्शन नहीं। कोई बयान नहीं कि “इनको मंच क्यों दिया?”
यहाँ न तो किसी को एयरपोर्ट से लौटाया गया, न किसी की किताब जलाई गई, न किसी को “देशद्रोही” कहकर चुप कराया गया।
बस चुपचाप मंच साझा किया जा रहा है। विचारधारा से ऊपर उठकर साहित्य को जगह दी जा रही है।
2022 में जिस खेमे ने सहिष्णुता का ढोंग किया था, वह असहिष्णुता के आरोप लगाता फिरता था।
2025 में जिस खेमे पर असहिष्णुता का ठप्पा लगा था, वह बिना शोर मचाए सहिष्णुता का जीता-जागता प्रमाण दे रहा है।
सोनपुर का मैदान वही है। मेला वही है।
बस अब पता चल गया है—सहिष्णु कौन है।



