समाज सहयोग से संघ शताब्दी यात्रा सुगम बनी

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दिल्ली ।

दत्तात्रेय होसबाले

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्य को अभी सौ वर्ष पूर्ण हो रहेहै। इस सौ वर्ष की यात्रा में कई लोग सहयोगी और सहभागीरहे हैं। यह यात्रा परिश्रम पूर्ण और कुछ संकटों से अवश्यघिरी रही, परंतु सामान्य जनों का समर्थन उसका सुखद पक्षरहा। आज जब शताब्दी वर्ष में सोचते हैं तो ऐसे कई प्रसंगऔर लोगों का स्मरण आता है, जिन्होंने इस यात्रा कीसफलता के लिए स्वयं सब कुछ समर्पित कर दिया।

प्रारंभिक काल के वे युवा कार्यकर्ता एक योद्धा की तरह देशप्रेम से ओत-प्रोत होकर संघ कार्य हेतु देशभर में निकल पड़े।अप्पाजी जोशी जैसे गृहस्थ कार्यकर्ता हों या प्रचारक स्वरूपमें दादाराव परमार्थ, बालासाहब व भाऊराव देवरस बंधु, यादवराव जोशी, एकनाथ रानडे आदि लोग डॉक्टर हेडगेवारजी के सान्निध्य में आकर संघ कार्य को राष्ट्र सेवा काजीवनव्रत मानकर जीवन पर्यन्त चलते रहे।

संघ का कार्य लगातार समाज के समर्थन से ही आगे बढ़तागया। संघ कार्य सामान्य जन की भावनाओं के अनुरूप होनेके कारण शनैः शनैः इस कार्य की स्वीकार्यता समाज मेंबढ़ती चली गई। स्वामी विवेकानंद से एक बार उनके विदेशप्रवास में यह पूछा गया कि आपके देश में तो अधिकतम लोगअनपढ़ हैं, अंग्रेज़ी तो जानते ही नहीं हैं, तो आपकी बड़ी-बड़ीबातें भारत के लोगों तक कैसे पहुँचेगी? उन्होंने कहा कि जैसेचीटियों को शक्कर का पता लगाने के लिए अंग्रेज़ी सीखनेकी ज़रूरत नहीं है, वैसे ही मेरे भारत के लोग अपनेआध्यात्मिक ज्ञान के चलते किसी भी कोने में चल रहेसात्विक कार्य को तुरंत समझ जाते हैं व वहीं वो चुपचापपहुँच जाते हैं। इसलिए वे मेरी बात समझ जायेंगे। यह बातसत्य सिद्ध हुई। वैसे ही संघ के इस सात्विक कार्य को धीरेक्यों न हो, सामान्य जन से स्वीकार्यता व समर्थन लगातारमिल रहा है।

संघ कार्य के प्रारंभ से ही संपर्कित व नये-नये सामान्यपरिवारों द्वारा संघ कार्यकर्ताओं को आशीर्वाद व आश्रय प्राप्तहोता रहा। स्वयंसेवकों के परिवार ही संघ कार्य संचालन केकेंद्र रहे। सभी माता-भगिनियों के सहयोग से ही संघ कार्य कोपूर्णता प्राप्त हुई। दत्तोपंत ठेंगड़ी या यशवंतराव केलकर, बालासाहेब देशपांडे तथा एकनाथ रानडे, दीनदयाल उपाध्यायया दादासाहेब आपटे जैसे लोगों ने संघ प्रेरणा से समाजजीवन के विविध क्षेत्रों में संगठनों को खड़ा करने में अहमभूमिका निभाई। ये सभी संगठन वर्तमान समय में व्यापकविस्तार के साथ-साथ उन क्षेत्रों में सकारात्मक बदलाव लानेमें सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। समाज की बहनों के मध्य इसीराष्ट्र कार्य हेतु राष्ट्र सेविका समिति के माध्यम से मौसी जी केलकर से लेकर प्रमिलाताई मेढ़े जैसी मातृसमान हस्तियोंकी भूमिका इस यात्रा में अत्यंत महत्वपूर्ण रही है।

संघ द्वारा समय-समय पर राष्ट्रीय हित के कई विषयों कोउठाया गया। उन सभी को समाज के विभिन्न लोगों कासमर्थन प्राप्त हुआ, जिनमें कई बार सार्वजनिक रूप सेविरोधी दिखने वाले लोग भी शामिल रहे। संघ का यह भीप्रयास रहा कि व्यापक हिंदू हित के मुद्दों पर सभी का सहयोगप्राप्त किया जाए। राष्ट्र की एकात्मता, सुरक्षा, सामाजिकसौहार्द तथा लोकतंत्र एवं धर्म-संस्कृति की रक्षा के कार्य मेंअसंख्य स्वयंसेवकों ने अवर्णनीय कष्ट का सामना किया औरसैकड़ों का बलिदान भी हुआ। इन सबमें समाज के संबल काहाथ हमेशा रहा है।

1981 में तमिलनाडु के मीनाक्षीपुरम में भ्रमित करते हुए कुछहिंदुओं का मतांतरण करवाया गया। इस महत्वपूर्ण विषय परहिंदू जागरण के क्रम में आयोजित लगभग पाँच लाख कीउपस्थिति वाले सम्मेलन की अध्यक्षता करने हेतु तत्कालीनकांग्रेस के वरिष्ठ नेता डॉ. कर्णसिंह उपस्थित रहे। 1964 मेंविश्व हिन्दू परिषद की स्थापना में प्रसिद्ध संन्यासी स्वामीचिन्मयानंद, मास्टर तारा सिंह व जैन मुनी सुशील कुमार जी, बौद्ध भिक्षु कुशोक बकुला व नामधारी सिख सद्गुरु जगजीतसिंह इनकी प्रमुख सहभागिता रही। हिन्दू शास्त्रों मेंअस्पृश्यता का कोई स्थान नहीं है यह पुनर्स्थापित करने केउद्देश्य से श्री गुरूजी गोलवलकर की पहल पर उडुपी मेंआयोजित विश्व हिंदू सम्मेलन में पूज्य धर्माचार्यों सहित सभीसंतों-महंतों का आशीर्वाद व उपस्थिति रही। जैसे प्रयागसम्मेलन में न हिंदुः पतितो भवेत् ( कोई हिन्दू पतित नहीं होसकता) का प्रस्ताव स्वीकार हुआ था वैसे ही इस सम्मेलन काउद्घोष था – हिंदवः सोदराः सर्वे अर्थात सभी हिन्दू भारत माताके पुत्र हैं। इन सभी में तथा गौहत्या बंदी का विषय हो या रामजन्मभूमि अभियान, संतों का आशीर्वाद संघ स्वयंसेवकों कोहमेशा प्राप्त होता रहा है।

स्वाधीनता के तुरंत पश्चात राजनीतिक कारणों से संघ कार्यपर तत्कालीन सरकार द्वारा जब प्रतिबंध लगाया गया, तबसमाज के सामान्य जनों के साथ अत्यंत प्रतिष्ठित व्यक्तियोंने विपरीत परिस्थितियों में भी संघ के पक्ष में खड़े होकर इसकार्य को संबल प्रदान किया। यही बात आपातकाल केसंकट समय में भी अनुभव में आई। यही कारण है कि इतनीबाधाओं के पश्चात भी संघ कार्य अक्षुण्ण रूप से निरंतर आगेबढ़ रहा है। इन सभी परिस्थितियों में संघ कार्य एवंस्वयंसेवकों को सँभालने का दायित्व हमारी माता-भगिनीयों नेबड़ी कुशलता से निभाया। यह सभी बातें संघ कार्य हेतु सर्वदाप्रेरणास्रोत बन गयी हैं।

भविष्य में राष्ट्र की सेवा में समाज के सभी लोगों के सहयोगएवं सहभागिता के लिए संघ स्वयंसेवक शताब्दी वर्ष मेंघर-घर संपर्क के द्वारा विशेष प्रयास करेंगे। देशभर में बड़ेशहरों से लेकर सुदूर गाँवों के सभी जगहों तक तथा समाज केसभी वर्गों तक पहुँचने का प्रमुख लक्ष्य रहेगा। समूचे सज्जनशक्ति के समन्वित प्रयासों द्वारा राष्ट्र के सर्वांगीण विकासकी आगामी यात्रा सुगम एवं सफल होगी।

(लेखक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह हैं)

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