सम्पूर्ण हिन्दू समाज का संगठित स्वरूप ही भारत की एकता, एकात्मता, विकास व सुरक्षा की गारंटी है – डॉ. मोहन भागवत जी

1.jpeg

नागपुर : सम्पूर्ण हिन्दू समाज का बल सम्पन्न, शील सम्पन्न संगठित स्वरूप ही इस देश के एकता, एकात्मता, विकास व सुरक्षा की गारंटी है। क्योंकि हिन्दू समाज अलगाव की मानसिकता से मुक्त और सर्वसमावेशक है। हिन्दू समाज ही ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की उदार विचारधारा का पुरस्कर्ता व संरक्षक है। इसलिए संघ सम्पूर्ण हिन्दू समाज के संगठन का कार्य कर रहा है। क्योंकि संगठित समाज अपने सब कर्तव्य स्वयं के बलबूते पूरे कर लेता है। यह बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन जी भागवत ने रेशिमबाग मैदान में आयोजित संघ के विजयादशमी उत्सव में कही। उल्लेखनीय है कि यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना का शताब्दी वर्ष है। सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने बल देकर कहा कि भारतवर्ष को वैभवशाली व सम्पूर्ण विश्व के लिए अपेक्षित व उचित योगदान देनेवाला देश बनाना, यह हिन्दू समाज का कर्तव्य है। इस अवसर पर मंच पर भारत के पूर्व राष्ट्रपति मा. रामनाथ कोविंद जी, संघ के विदर्भ प्रान्त संघचालक मा. दीपक जी तामशेट्टीवार, विदर्भ प्रान्त सह संघचालक मा. श्रीधर जी गाडगे और नागपुर महानगर संघचालक मा. राजेश जी लोया उपस्थित थे।

स्वदेशी तथा स्वावलम्बन का कोई विकल्प नहीं

सरसंघचालकजी ने आगे कहा कि अमेरिका ने अपने स्वयं के हित को आधार बनाकर जो आयात शुल्क नीति चलायी है, जिसके कारण हमें भी कुछ बातों का पुनर्विचार करना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि विश्व परस्पर निर्भरता पर जीता है, किन्तु यह परस्पर निर्भरता हमारी मजबूरी न बने, इसके लिए हमें आत्मनिर्भर बनना होगा। क्योंकि स्वदेशी तथा स्वावलम्बन का कोई पर्याय नहीं है।
सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने विश्व के जड़वादी व उपभोगवादी नीति के परिणामस्वरूप हो रहे पर्यावरणीय असंतुलन पर चिन्ता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि भारत में भी उसी नीति के चलते वर्षा का अनियमित व अप्रत्याशित होना, भूस्खलन, बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाएं गत तीन-चार वर्षों में तेजी से बढ़ गई हैं। दक्षिण एशिया का सारा जलस्रोत हिमालय से आता है। उस हिमालय में इन दुर्घटनाओं का होना भारतवर्ष और दक्षिण एशिया के अन्य देशों के लिए खतरे की घंटी माननी चाहिए।

उपद्रवी शक्तियों से सावधान

डॉ. भागवत जी ने भारत के पड़ोसी देशों की अराजक स्थिति का उल्लेख करते हुए कहा कि गत वर्षों से हमारे पड़ोसी देशों में बहुत उथल-पुथल मची है। श्रीलंका, बांग्लादेश और हाल ही में नेपाल में प्रकार जन-आक्रोश का हिंसक उद्रेक होकर सत्ता का परिवर्तन हुआ । अपने देश में तथा दुनिया में भी भारतवर्ष में इस प्रकार के उपद्रवों को चाहनेवाली शक्तियां सक्रिय हैं, , वह हमारे लिए चिन्ताजनक है। शासन, प्रशासन का समाज से टूटा हुआ सम्बन्ध, चुस्त व लोकाभिमुख प्रशासकीय क्रिया-कलापों का अभाव यह असंतोष के स्वाभाविक व तात्कालिक कारण होते हैं। परन्तु हिंसक उद्रेक में वांच्छित परिवर्तन लाने की शक्ति नहीं होती। प्रजातांत्रिक मार्गों से ही समाज में ऐसे आमूलाग्र परिवर्तन लाया जा सकता है। अन्यथा ऐसे हिंसक प्रसंगों में विश्व की वर्चस्ववादी ताकतें अपना खेल खेलने के अवसर ढूंढ़ लेती हैं। सरसंघचालक जी ने चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा कि हमारे पड़ोसी देश सांस्कृतिक दृष्टि से तथा आपसी नित्य सम्बन्धों के कारण भी भारत से जुड़े हैं। एक तरह से यह हमारा परिवार ही है। वहाँ पर शान्ति रहे, स्थिरता रहे, उन्नति हो, सुख और सुविधा हो, इसकी हमारे लिए भी आवश्यकता है।

हमारी वर्तमान आशाएं और चुनौतियाँ

सरसंघचालक डॉ. भागवतजी ने कहा कि वर्तमान कालावधि एक ओर हमारे विश्वास तथा आशा को अधिक बलवान बनानेवाली है तथा दूसरी ओर हमारे सम्मुख उपस्थित पुरानी व नयी चुनौतियों को अधिक स्पष्ट रूप में उजागर कर रही है, साथ ही हमारे लिए नियत कर्तव्य पथ को भी निर्देशित करनेवाली है। सरसंघचालकजी ने आगे कहा कि गत वर्ष प्रयागराज में सम्पन्न महाकुम्भ ने श्रद्धालुओं की संख्या के साथ ही उत्तम व्यवस्थापन के भी सारे कीर्तिमान तोड़कर एक जागतिक विक्रम प्रस्थापित किया। इसके परिणामस्वरूप सम्पूर्ण भारत में श्रद्धा व एकता की प्रचण्ड लहर को अनुभव किया जा सकता है। वहीं 22 अप्रैल, 2025 को पहलगाम में सीमापार से आये आतंकियों ने 26 भारतीय यात्री नागरिकों की उनका हिन्दू धर्म पूछकर हत्या की। सम्पूर्ण भारतवर्ष में नागरिकों में दुःख और क्रोध की ज्वाला भड़की। भारत सरकार ने योजना बनाकर मई मास में इसका पुरजोर उत्तर दिया। इस सब कालावधि में देश के नेतृत्व की दृढ़ता तथा हमारी सेना के पराक्रम तथा युद्ध कौशल के साथ-साथ ही समाज की दृढ़ता व एकता का सुखद दृश्य हमने देखा।
सरसंघचालक डॉ. भागवतजी ने राष्ट्रीय सुरक्षा पर जोर देते हुए कहा कि अन्य देशों से मित्रता की नीति व भाव रखते हुए भी हमें अपने सुरक्षा के विषय में अधिकाधिक सजग रहने और अपना सामर्थ्य बढ़ाते रहने की आवश्यकता है। नीतिगत क्रियाकलापों से विश्व के अनेक देशों में से हमारे मित्र कौन-कौन और कहाँ तक है, इसकी परीक्षा भी हो गई।
सरसंघचालकजी ने कहा कि देश के अन्दर उग्रवादी नक्सली आन्दोलन पर शासन तथा प्रशासन की दृढ़ कार्रवाई से बड़ी मात्रा में नियंत्रण आया है। उन क्षेत्रों में नक्सलियों के पनपने का मूल कारण वहाँ चल रहा शोषण व अन्याय, विकास का अभाव तथा शासन-प्रशासन में इन सब बातों के प्रति संवेदना का अभाव रहा। डॉ. भागवतजी ने इस बात पर जोर दिया कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में न्याय, विकास, सद्भावना, संवेदना तथा सामंजस्य स्थापन करने के लिए कोई व्यापक योजना शासन-प्रशासन के द्वारा बनाने की आवश्यकता है।
संचार माध्यमों व अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण दुनिया के देशों में निकटता जैसी परिस्थिति का सुखदायक रूप दिखता है। परन्तु विज्ञान एवं तकनीकी की प्रगति की गति व मनुष्यों की इनसे तालमेल बनाने की गति में बड़ा अंतर है। इसलिए सामान्य मनुष्यों के जीवन में बहुत सारी समस्याएँ उत्पन्न होती दिखाई दे रही हैं। जैसे सर्वत्र चल रहे युद्धों सहित अन्य छोटे-बड़े कलह, पर्यावरण के क्षरण के कारण प्रकृति का प्रकोप, सभी समाजों तथा परिवारों में आयी हुई टूटन, नागरिक जीवन में बढ़ता हुआ अनाचार व अत्याचार ऐसी समस्याएँ भी साथ में चलती हुई दिखाई देती हैं। इन सबके उबरने के प्रयास हुए हैं, परन्तु वे इन समस्याओं की बढ़त को रोकने में अथवा उनका पूर्ण निदान देने में असफल रहे हैं। इसलिए अब सारा विश्व इन समस्याओं के समाधान के लिए भारत की दृष्टि से निकले चिन्तन में से उपाय की अपेक्षा कर रहा है।

हमारी सामाजिक एवं सांस्कृतिक एकता
सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने सामाजिक एकता के महत्त्व को रेखांकित करते हुए कहा कि किसी भी देश के उत्थान में सबसे महत्त्वपूर्ण कारक उस देश के समाज की एकता है। हमारा देश विविधताओं का देश है। अनेक भाषाएँ अनेक पंथ, भौगोलिक विविधता के कारण रहन-सहन, खान-पान के अनेक प्रकार, जाति-उपजाति आदि विविधताएं पहले से ही हैं।
डॉ. भागवतजी स्पष्ट रूपसे कहा कि हमारी विविधताओं को हम अपनी अपनी विशिष्टताएं मानते हैं और अपनी-अपनी विशिष्टता पर गौरव करने का स्वभाव भी समझते हैं। परन्तु यह विशिष्टताएं भेद का कारण नहीं बननी चाहिए। अपनी सब विशिष्टताओं के बावजूद हम सब एक बड़े समाज के अंग हैं। समाज, देश, संस्कृति तथा राष्ट्र के नाते हम एक हैं। यह हमारी बड़ी पहचान हमारे लिए सर्वोपरि है, यह हमको सदैव ध्यान में रखना चाहिए। उसके चलते समाज में सबका आपस का व्यवहार सद्भावनापूर्ण व संयमपूर्ण रहना चाहिए। सब की अपनी-अपनी श्रद्धाएँ, महापुरुष तथा पूजा के स्थान होते हैं। मन, वचन, कर्म से आपस में इनकी अवमानना न हो, इसका ध्यान रखना चाहिए।

अराजकता का व्याकरण रोकना जरूरी
डॉ. भागवत ने सामाजिक सद्भाव के लिए व्यापक समाज प्रबोधन करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि नियम पालन, व्यवस्था पालन करना व सद्भावपूर्वक व्यवहार करने का स्वभाव बनना चाहिए। छोटी-बड़ी बातों पर या केवल मन में सन्देह है इसलिए, कानून हाथ में लेकर रास्तों पर निकल आना, गुंडागर्दी, हिंसा करने की प्रवृत्ति ठीक नहीं है। मन में प्रतिक्रिया रखकर अथवा किसी समुदाय विशेष को उकसाने के लिए अपना शक्ति प्रदर्शन करना, ऐसी घटनाओं को योजनापूर्वक कराया जाता है। उनके चंगुल में फंसने का परिणाम, तात्कालिक और दीर्घकालिक, दोनों दृष्टि से ठीक नहीं है। इन प्रवृत्तियों की रोकथाम आवश्यक है। शासन-प्रशासन अपना काम बिना पक्षपात के तथा बिना किसी दबाव में आये, नियम के अनुसार करें। परन्तु समाज की सज्जन शक्ति व तरुण पीढ़ी को भी सजग व संगठित होना पड़ेगा, आवश्यकतानुसार हस्तक्षेप भी करना पड़ेगा।

पंचपरिवर्तन का आग्रह महत्त्वपूर्ण
सरसंघचालक डॉ. भागवतजी ने कहा कि हमारी एकता के आधार को डॉक्टर आम्बेडकर साहब ने Inherent cultural unity (अन्तर्निहित सांस्कृतिक एकता) कहा है। भारतीय संस्कृति प्राचीन समय से चलती आई हुई भारत की विशेषता है। वह सर्व समावेशक है। व्यक्तियों, समूहों में व्यक्तिगत तथा राष्ट्रीय चारित्र्य, दोनों के सुदृढ़ होने की आवश्यकता है। सरसंघचालकजी ने कहा कि अपने राष्ट्र स्वरूप की स्पष्ट कल्पना व गौरव, संघ की शाखा में प्राप्त होता है। नित्य शाखा में चलनेवाले कार्यक्रमों से स्वयंसेवकों में व्यक्तित्व, कर्तृत्व, नेतृत्व, भक्ति व समझदारी का विकास होता है। इसलिए शताब्दी वर्ष में व्यक्ति निर्माण का कार्य देश में भौगोलिक दृष्टि से सर्वव्यापी हो तथा सामाजिक आचरण में सहज परिवर्तन लानेवाला पंच परिवर्तन कार्यक्रम – सामाजिक समरसता, कुटुम्ब प्रबोधन, पर्यावरण संरक्षण, स्व-बोध तथा स्वदेशी, नागरिक अनुशासन व संविधान का पालन – स्वयंसेवकों के आचरण के उदाहरण से समाजव्यापी बने, यह संघ का प्रयास रहेगा। संघ के स्वयंसेवकों के अतिरिक्त समाज में अनेक अन्य संगठन व व्यक्ति भी इसी तरह के कार्यक्रम चला रहे हैं। उन सब के साथ संघ के स्वयंसेवकों का सहयोग व समन्वय साधा जा रहा है।
00000000000000000000

समारोह के अध्यक्ष एवं भारत के पूर्व राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविन्द जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि श्रीविजयादशमी उत्सव का ये दिन संघ का शतकपूर्ति दिवस है। आज विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृति का संवाहक करनेवाली आधुनिक विश्व की सबसे बड़ी स्वयंसेवी संस्था का शताब्दी समारोह सम्पन्न हो रहा है। उन्होंने कहा कि नागपुर की यह पावन धरती आधुनिक भारत के विलक्षण निर्माताओं की पावन स्मृति से जुड़ी हुई है। उन राष्ट्र निर्माताओं में दो डॉक्टर ऐसे भी हैं – जिनका मेरे जीवन निर्माण में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान रहा। वे दोनों महापुरुष हैं – डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार और डॉ. भीमराव रामजी आम्बेडकर। बाबासाहब आम्बेडकर के संविधान में निहित सामाजिक न्याय की व्यवस्था के बल पर ही मेरी तरह का आर्थिक व सामाजिक पृष्ठभूमि का व्यक्ति, देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद तक पहुँच सका। डॉ. हेडगेवार के गहन विचारों से समाज और राष्ट्र को समझने का मेरा दृष्टिकोण स्पष्ट हुआ। दोनों विभूतियों द्वारा निरूपित किए गए राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समरसता के आदर्शों से मेरी जनसेवा की भावना अनुप्राणित रही है।
श्री. रामनाथ कोविन्द जी ने कहा कि संघ की अविरत राष्ट्रसेवा, राष्ट्रभक्ति और समर्पण के ये उदात्त आदर्श हम सबके लिए अनुकरणीय हैं। उन्होंने कहा कि सच्चे अर्थों में मनुष्य कैसे बनें, जीवन कैसे जिएँ, इसका मार्गदर्शन हमें महापुरुषों से प्राप्त होता है। आज भारतीयों के लिए व्यक्तिगत व राष्ट्रीय चारित्र्य से समृद्ध जीवनमार्ग की आवश्यकता है। हमारा सनातन, आध्यात्मिक और समग्र दृष्टिकोण ही मानवता के मन, बुद्धि और अध्यात्म का विकास करता है।
श्री. कोविन्द जी ने कहा कि सामाजिक व्यवहार में बदलाव केवल भाषणों से नहीं आता; इसके लिए व्यापक प्रबोधन आवश्यक है। विविधता होते हुए भी, हम सब एक बड़े समाज का अंग हैं। यह बड़ी पहचान हमारे लिए सर्वोपरि है। विचार, शब्द और कृति से किसी भी समुदाय के श्रद्धा या आस्था का अनादर न हो। जो लोग विकास यात्रा में पीछे छूट गए, उनका हाथ पकड़कर उन्हें अपने साथ ले चलना हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य है।

दलाई लामा का संदेश

इस अवसर पर पूजनीय बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा के संदेश का पठन किया गया । जिसमें उनके द्वारा प्रेषित भावनाएँ व्यक्त की गयी कि, पुनर्जागरण की इस व्यापक धारा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने एक विशिष्ट और महत्वपूर्ण स्थान ग्रहण किया है। संगठन की स्थापना निःस्वार्थ भाव से हुई थी, जहाँ कर्तव्यबोध की निर्मल और स्पष्ट भावना थी, जिसमें किसी प्रतिफल की अपेक्षा नहीं थी। संघ से जुड़ने वाला प्रत्येक स्वयंसेवक मन की पवित्रता और साधनों की पावनता पर आधारित जीवन जीना सीखता है। संघ की सौ वर्षीय यात्रा स्वयं में समर्पण और सेवा का एक दुर्लभ तथा अनुपम उदाहरण है। संघ ने निरंतर लोगों को एकजुट करने का कार्य किया है और भारत को भौतिक एवं आध्यात्मिक दोनों ही दृष्टियों से सशक्त बनाया है। भारत के दुर्गम और चुनौतीपूर्ण क्षेत्रों में भी संघ ने शैक्षिक एवं सामाजिक विकास में योगदान दिया है तथा आपदा-ग्रस्त क्षेत्रों में आवश्यक सहयोग प्रदान किया है।

कार्यक्रम में देश-विदेश के गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति रही। इसमें मुख्य रूप से लेफ्टिनेंट जनरल राणा प्रताप कलिता (सेवानिवृत्त), कोयम्बटूर की डेक्कन इंडस्ट्रीज के प्रबंध निदेशक के. वी. कार्तिक, बजाज फिनसर्व के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक संजीव बजाज समेत घाना, दक्षिण अफ्रीका, इंडोनेशिया, थाईलैंड, यूके, यूएसए से भी अतिथि और बड़ी संख्या में नागपुर के गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।

लेफ्टिनेंट जनरल कलिता ने भारतीय सेना के पूर्व कमांड का नेतृत्व किया है। जून 1984 में उन्होंने कुमाऊ रेजिमेंट के माध्यम से अपनी सेवा शुरू की। उन्होंने सेना के विभिन्न अभियानों का नेतृत्व और मार्गदर्शन किया है। वैश्विक स्तर पर उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ के सीरा लियोन मिशन में निरीक्षक के रूप में जिम्मेदारी निभाई है।

कोयम्बटूर की डेक्कन इंडस्ट्रीज के प्रबंध निदेशक के. वी. कार्तिक देश में मोटर पंप निर्माण क्षेत्र के अग्रणी व्यवसायियों में शामिल हैं। वर्तमान में वे इंडियन पंप मैन्यूफैक्चर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष के रूप में भी कार्यरत हैं। भारत में निर्मित मोटर पंपों के निर्यात में वे महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

बजाज फिनसर्व के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक श्री संजीव बजाज, बजाज समूह के वित्तीय सेवा व्यवसाय के प्रमुख हैं। उनके नेतृत्व में बजाज फिनसर्व देश की अत्यंत प्रतिष्ठित कंपनियों में शामिल हुई है। कॉर्पोरेट क्षेत्र में अपनी भूमिका के साथ उन्होंने भारतीय उद्योग परिसंघ के अध्यक्ष के रूप में भारतीय उद्योग क्षेत्र का दूरदर्शी नेतृत्व भी किया है। इसके अलावा, उन्होंने शिक्षा क्षेत्र में भी सक्रिय योगदान दिया है।

कार्यक्रम के प्रारंभ में प. पू. सरसंघचालक जी और प्रमुख अतिथी मा. पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी ने शस्त्रपूजन किया । उसके पश्चात स्वागत प्रणाम, ध्वजारोहण और प्रार्थना हुई । तत्पश्चात प्रत्युत प्रचलनम् व प्रदक्षिणा संचलन हुआ । उसके बाद नियुद्ध एवम् घोष का प्रात्यक्षिक, सांघिक गीत, सांघिक योगासन हुए । मा. महानगर संघचालक राजेश जी लोया ने प्रास्ताविक, परिचय, स्वागत तथा सभी के प्रति आभार व्यक्त किया । ध्वजावतरण के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ.

Share this post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

scroll to top