संजय कुमार मिश्र
सरकारी भाषा में किसी की आत्महत्या चाहे लाख निजी कारणों से कही जाती हो, परंतु जब हम उसका गहण अध्ययन-विश्लेषण करने बैठते हैं, तो निष्कर्ष निकलता है कि आत्महत्या का वह निजी कारण कहीं न कहीं सामाजिक अन्तर्संबंधों और सामंजस्य की ही असफलता है। दुर्खीम ने अपनी पुस्तक Le suicide (The suicide) 1897 में ही प्रकाशित कर बहुत से आँकड़ों के आधार पर यह स्पष्ट किया कि आत्महत्या किसी व्यक्तिगत कारण का परिणाम नहीं होती, अपितु यह एक सामाजिक तथ्य है, जो कि सामाजिक क्रियाओं का परिणाम है। आज की परिस्थितियों में हमारी सामाजिक अन्तर्क्रियाएँ ज्यों-ज्यों जटिल से जटिलतर होती जा रही हैं, त्यों-त्यों समाज का एक बहुत बड़ा हिस्सा दिनोदिन इसमें सामंजस्य बिठा पाने में असफल होता जा रहा है। उसी का परिणाम है कि पहले जहाँ आत्महत्याएँ गिनी-चुनी होती थीं, वे अब बहुतायत में और परिवार समेत सामूहिक होने लगी हैं।
जब कोई प्रतिभावान युवा अपनी जान लेता है, तो यह न केवल त्रासद, बल्कि पूरे देश और समाज के लिए बहुत बड़ा नुकसान होता है। 16 सितंबर को दिल्ली में मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज के 25 वर्षीय स्नातकोत्तर मेडिकल छात्र नवदीप सिंह ने फाँसी लगाकर आत्महत्या कर ली। वह रेडियोलॉजी का द्वितीय वर्ष का छात्र था और उसे बेहतरीन विशेषज्ञ डॉक्टर बनना था। लोग यह भूले नहीं थे कि पंजाब का यह छात्र साल 2017 में राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (नीट) का टॉपर था। उसके पिता सरकारी स्कूल के प्रिंसिपल हैं और छोटा भाई भी मेडिकल की पढ़ाई कर रहा है। यह चिंता की बात है कि आखिर एक टॉपर छात्र ऐसे मुकाम पर कैसे पहुँच गया? ध्यान रहे, दिल्ली में ही 27 अगस्त को ओल्ड रेजिडेंट डॉक्टर हॉस्टल में एक 20 वर्षीय मेडिकल छात्र का शव मिला था।
पिछले दिनों अभिनेत्री मलाइका अरोड़ा के पिता अनिल कुलदीप मेहता ने अपने मकान के छठी मंजिल से कूदकर सुसाइड कर ली। पता चला कि वे स्वास्थ्य कारणों से बहुत परेशान थे। इस सितंबर माह के प्रारंभ में ही प्रसिद्ध एटलस साइकिल कंपनी के पूर्व अध्यक्ष सलिल कपूर ने सुसाइड कर ली। अब्दुल कलाम मार्ग स्थित आवास पर कपूर ने अपने लाइसेंसी पिस्टल से खुद को गोली मार ली। मृतक के पास एक पेज का सुसाइड नोट भी बरामद हुआ है। इस सुसाइड नोट में चार लोगों का जिक्र किया गया है, जिसपर कपूर ने उत्पीड़न का आरोप लगाया है।
ये घटनाएँ तो हाल के दिनों में घटी महज कुछ उदाहरण हैं। 11 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने देश में छात्रों में आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं पर चिंता जताई, और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को इन्हें रोकने के लिए उठाए जा रहे कदमों के बारे में हलफनामा दायर करने के निर्देश दिए है। अदालत ने कहा कि छात्रों की आत्महत्या एक बहुत गंभीर सामाजिक मुद्दा है। एडवोकेट गौरव बंसल ने एक जनहित याचिका दायर कर माँग की थी कि बच्चों में आत्महत्या की बढ़ती प्रवृत्ति को रोकने के लिए कारगर कदम उठाए जाएँ। बंसल ने बताया कि आरटीआई के तहत दिल्ली पुलिस से हासिल जवाब के मुताबिक, 2014 से 2018 के बीच दिल्ली में 18 वर्ष से कम आयु के 400 से अधिक छात्रों ने आत्महत्या की।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, भारत एक ऐसा देश है, जहाँ दुनिया भर में सबसे ज्यादा आत्महत्या के मामले दर्ज होते हैं। सिर्फ साल 2022 में ही देश भर में करीब 1.71 लाख लोगों ने खुदकुशी की। रिपोर्ट के मुताबिक, हर आठ मिनट पर एक युवा भारतीय खुदकुशी का शिकार हो जाता है। देश में आत्महत्या की जितनी भी घटनाएँ होती हैं, उनमें से 41 फीसद लोग 30 साल से भी कम आयु के होते हैं। देश में आत्महत्या की दर में लगातार बढ़ोत्तरी हुई है। 2017 में जहाँ प्रति एक लाख की आबादी पर यह दर 9.9 थी, वहीं 2022 में बढ़कर 12.4 लोग मौत को गले लगा रहे हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि दुनिया भर में हर साल आठ लाख लोग आत्महत्या करते हैं, इससे कई गुना अधिक लोग आत्महत्या की कोशिश करते हैं और इसका असर बहुत ज्यादा लोगों पर पड़ रहा है। भारत में प्रतिवर्ष 135,000 लोग आत्महत्या करते हैं, जो दुनिया की कुल आत्महत्याओं का 17 प्रतिशत है। एनसीआरबी के मुताबिक, आत्महत्या के इन सभी मामलों के प्रमुख कारणों में पारिवारिक समस्याएँ, विवाह संबंधी समस्याएँ, दिवालियापन और ऋणग्रस्तता, बेरोजगारी और पेशेवर मुद्दे तथा बीमारी शामिल हैं।
हाल के दिनों में लगातार आत्महत्या की घटनाएँ सामने आई हैं, यह हमारे समाज और परिवार में आए विघटन, विलगाव, एकाकीपन, बाजारवादी और सुविधाभोगी जीवन, दिखावटीपन तथा बेलगाम आकांक्षाओं के मिश्रण से पैदा हुए जीवणप्रणाली से उत्पन्न उपउत्पाद हैं। नई बाजार व्यवस्था की कोख से पैदा हुई इस जीवनप्रणाली ने पूरे समाज का ताना-बाना बिगाड़ दिया है। हमारी भारतीय परिवार प्रणाली और कौटुंबिक संबंध, जिससे पूरा समाज अन्योन्याश्रय संबंधों से जुड़ा था। किसी एक सदस्य का दुःख-सुख पूरे परिवार का दुःख-सुख होता था। वह लगता है, अब सदियों पुरानी बात हो गई। समाज का बहुत बड़ा भाग सिर्फ निजी स्वार्थ और दिखावटी सुख की जिस अंधी सुरंग में लगातार भाग रहा है, उसका अंत तो अंधकूप में ही होना है।
तेजी से बढ़ती यह आत्महंता प्रवृत्ति एक विकट सामाजिक समस्या है, इसे हम इक्का-दुक्का किसी की निजी समस्या मानकर नहीं चल सकते। ये त्रासद घटनाएँ हमारी पूरी सामाजिक व्यवस्था के चरमराकर ढहने की सूचक हैं। इस गंभीर सामाजिक समस्या को बदलती परिस्थितियों के अनुरूप जनतांत्रिक परिवार प्रणाली को जीवंत करना होगा, जिसमें लोग भले ही भौतिक दूरी पर निवास कर रहे हों, पर आपसी प्रेम, सौहार्द, करुणा, संवेदना और सामंजस्य की मजबूत डोर से बँधकर करीब हों। इस आत्महंता प्रवृत्ति को रोकने के लिए सरकार और समाज को भी सामूहिक प्रयास करने होंगे।