राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को राजनीतिक दृष्टि से ही देखने की बुरी आदत हम सब पर हावी होती जा रही है। इससे हम जैसे लोग भी अछूते नहीं रह जाते क्योंकि, राजनीतिक चर्चा ही अधिकांश चर्चा के मुख्य केंद्र में रहती है। घनघोर राजनीतिक चर्चा के बीच में मुझे ऐसा सौभाग्य प्राप्त होता रहता है कि, राजनीति से इतर समाज को भी देखने-समझने का अवसर मिल जाता है। मैं ऐसे किसी भी सामाजिक अवसर को कतई नहीं छोड़ता, भले ही आर्थिक या दूसरे नुकसान भी हो जाएं। विश्वविद्यालयों और विद्यालयों में जाने का, छात्रों और उनके अभिभावकों से संवाद का अवसर तो कतई नहीं।
ऐसा ही एक अद्भुत संयोग अभी 25 जुलाई 2025 को बना। बुलंदशहर के रज्जू भैया सैनिक विद्या मंदिर में वृक्षारोपण और कृषक गोष्ठी में मुख्य अतिथि के तौर पर रहने का आमंत्रण मिला। विद्यालय जाने का अवसर था तो मना करने का सवाल ही नहीं उठता था। इंडिया टीवी पर हमारे प्रतिदिन के शो कहानी कुर्सी की और उस दिन के सारे टीवी के कार्यक्रम मना कर दिए। बुलंदशहर पहुंचते आज तक से फोन आया कि, शाम 6 बजे के कार्यक्रम के लिए समय चाहिए। मैंने कहा- बुलंदशहर आ गया हूं, आज संभव नहीं हो पाएगा। जब टीवी की चर्चा में बड़े विषय हों, राजनीतिक उथल पुथल मची हुई हो तो टीवी की चर्चा से दूर रहना थोड़ा मुश्किल होता है, हालांकि, रज्जू भैया सैनिक विद्या मंदिर पहुंचने के बाद और उस कार्यक्रम में शामिल होकर लौटने के बाद अब लगता है कि, उस आयोजन में न जाते तो बहुत कुछ रह जाता।
संघ प्रचारक गंगाराम जी से बात हुई। उनसे मिले तो सामान्य बुजुर्ग दिखे, पहली दृष्टि में उनका कोई ऐसे प्रभाव नहीं पड़ा, लेकिन जैसे-जैसे गंगाराम जी के कर्तृत्व के बारे में पता चल रहा था, उनका प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा था।
दरअसल, बुलंदशहर रज्जू भैया की स्मृति में चल रहे शिक्षण संस्थानों को संवारने में गंगाराम जी की बड़ी भूमिका है और गंगाराम जी ही रज्जू भैया सैनिक विद्या मंदिर की देखरेख करते हैं। गंगाराम जी के अलावा वहीं राजपाल सिंह जी से भी मुलाकात हुई, उनके बारे में आगे बात करूंगा, लेकिन पहले यह जानना आवश्यक है कि, बुलंदशहर के सैनिक विद्या मंदिर का नाम रज्जू भैया के नाम पर क्यों है?
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चतुर्थ सरसंघचालक प्रोफेसर राजेंद्र सिंह ऊर्फ रज्जू भैया मूलतः बुलंदशहर के रहने वाले थे। रज्जू भैया एक संपन्न परिवार से आते थे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में भौतिक विज्ञान के प्रोफेसर थे। अद्भुत मेधा के धनी थे। रज्जू भैया के शोधकार्य का साक्षात्कार लेने के लिए बैंगलोर से सीवी रमन आए थे। रमन साहब रज्जू भैया से इतने प्रभावित हुए कि, उन्हें पूर्ण अंक देने के साथ बैंगलोर में अपने साथ अनुसंधान के लिए फेलोशिप देने का भी प्रस्ताव रखा था। शिकारपुर तहसील के बनैल गांव में कुँवर बलवीर सिंह और ज्वाला देवी के घर जन्मे रज्जू भैया ने न्यूक्लियर फिजिक्स में पीएचडी की थी। 1942 में एमएससी प्रथम वर्ष की पढ़ाई के समय ही भारत छोड़ो आंदोलन का हिस्सा बन गए। उसी दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आए। 1943 में प्रयाग के नगर कार्यवाह बने। 1946 में प्रयाग विभाग कार्यवाह, 1948 में संघ पर प्रतिबंध के समय कारावास, 1949 में संभाग कार्यवाह, 1950 में उत्तर प्रदेश के प्रांत कार्यवाह, 1958में रज्जू भैया प्रचारक बन गए। 1962 में उत्तर प्रदेश के प्रांत प्रचारक, 1964-74 तक सह क्षेत्र प्रचारक और प्रचारक का दायित्व निभाया। 1975 में रज्जू भैया का दायित्व संघ में बहुत बड़ा हो गया। उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल व ओडिशा के प्रचारक और सह सरकार्यवाह का दायित्व उन्हें दे दिया गया था। उसी दौरान इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगा दिया था तो 1975-77 तक भूमिगत रहे। रज्जू भैया 1978 से 1987 तक सरकार्यवाह रहे और उसके बाद रज्जू भैया ने दक्षिण भारत के क्षेत्र प्रचारक शेषाद्रि जी का नाम सरकार्यवाह के लिए प्रस्तावित किया और रज्जू भैया उनके नीचे के पदानुक्रम में सह सरकार्यवाह बन गए।
संघ में पद नहीं दायित्व होता है, यह उसका एक बड़ा उदाहरण था।
11 मार्च 1994 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तृतीय सरसंघचालक बालासाहब देवरस ने रज्जू भैया को अपना उत्तराधिकारी बनाने का ऐलान कर दिया। रज्जू भैया 1994 से मार्च 2000 तक संघ के सरसंघचालक रहे। अब आप सोच रहे होंगे, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तृतीय सरसंघचालक रज्जू भैया जी के बारे में सारी जानकारी सर्वसुलभ है, इसको यहां किस सन्दर्भ में बता रहा हूं तो अब सन्दर्भ समझ में आएगा।
रज्जू भैया जी की बड़ी शानदार पैतृक कोठी प्रयागराज के सिविल लाइंस क्षेत्र में थी। रज्जू भैया जी ने उस पैतृक कोठी और सारी संपदा को संघ को दे दिया, उसी में संघ कार्यालय है। इसके अलावा भी रज्जू भैया के परिवार की संपत्ति समाज कार्य के लिए दान की गई है। अब रज्जू भैया जी के मूल स्थान बुलंदशहर के ही निवासी है राजपाल सिंह जी। इनका जिक्र मैंने शुरू में किया है। राजपाल सिंह जनकल्याण सेवा समिति ही रज्जू भैया सैनिक विद्या मंदिर की संचालक है और राजपाल सिंह जी ने इस विद्यालय के लिए अपनी कई बीघे की जमीन दान कर दी। अब विद्यालय के प्रवेश द्वार के बगल में बने मंदिर में ही एक कमरे में रहते हैं। मैंने राजपाल जन कल्याण सेवा समिति के बारे में पूछा तो राजपाल जी के बारे में जानकारी मिली। राजपाल जी को सम्मानित करने की बात संचालक महोदय ने कही तो मैंने कहा कि, राजपाल जी को तो मैं सम्मानित करूंगा।
वहीं पता चला कि, एक और सज्जन ने अपनी जमीन शिक्षक आवास और अतिथि कक्ष के लिए दान कर दी है। हमने वहीं पर वृक्षारोपण किया। संघ कहकर कोई काम नहीं कराता है, संघ का स्वयंसेवक करके हर काम करा लेता है। यही वजह है कि, अकसर आप सुनते होंगे कि, संघ के शीर्ष अधिकारी कहते हैं कि, संघ कोई काम नहीं करता, लेकिन स्वयंसेवक कोई काम नहीं छोड़ता। अब चतुर्थ सरसंघचालक रज्जू भैया जी के बारे में बताने का सन्दर्भ समझ आया होगा।
संघ प्रेरणा से, यह शब्द अकसर सुनने को मिलता है और इस संघ प्रेरणा ने भारत और विश्व में कितने कार्य खड़े कर दिए हैं, इसका अनुमान लगाना असंभव है क्योंकि, उसका कोई हिसाब-किताब संघ के पास भी नहीं है। हमारी प्रारंभिक शिक्षा प्रयागराज में शिशु मंदिर में हुई। संघ से संपर्क उसी बहाने हुआ था और प्रतिवर्ष वार्षिक आयोजन में सेवा समिति विद्या मंदिर, रामबाग, प्रयागराज में होने वाले आयोजन में मुझे रज्जू भैया जी का भी एक बौद्धिक याद है।
संघ कैसे काम करता है, उसका एक बड़ा उदाहरण बुलंदशहर जाकर समझ आया। संघ को बचपन से देखने-समझने के बावजूद हर कुछ समय के बाद ऐसा कोई कार्य चमत्कृत करता है और आश्वस्त भी करता है कि, सब संघ समाप्त कर देना चाहते हैं, लेकिन संघ राष्ट्र प्रथम की अवधारणा के साथ भारतीयों के साथ समाज कार्य में जिस तरह घुला-मिला है, उसमें भारत में संघ नहीं रहेगा, ऐसी सोच अपने क्षुद्र स्वार्थों के लिए राजनीतिक लोग भले रखते हों, भारतीय कभी नहीं रखेंगे।
रज्जू भैया सैनिक विद्या मंदिर के 12वीं कक्षा के विद्यार्थियों का पहला बैच अगले वर्ष निकलेगा। वहां एक वर्ष की एक छात्र की फ़ीस लगभग दो लाख रुपये है। 11वीं के एक छात्र से मैंने पूछा कि, सेना में जाना है? उसका उत्तर आया कि, मैं फिजिकली फिट नहीं हूं। मैं IIT में पढ़ना चाहता हूं। इस विद्यालय में पढ़कर आपका बच्चा अच्छा सैनिक बन सकता है, लेकिन सबसे बड़ी बात है कि, सभी सैनिक बनें न बनें, लेकिन राष्ट्र प्रथम की अवधारणा के साथ अच्छा भारतीय अवश्य बनेगा और अभी छात्रों की संख्या कम होने के बावजूद देश के बहुत से राज्यों के बच्चे यहां पढ़ रहे हैं। गंगाराम जी के शब्दों में- पूरा भारत रज्जू भैया सैनिक विद्या मंदिर में पढ़ रहा है। इस विद्यालय में मैंने लैंग्वेज लैब देखा। हर तरह की सुविधाओं से यह विद्यालय युक्त है। चारों तरफ खेत हैं। बुलंदशहर से खुर्जा के रास्ते पर खुर्जा-शिकारपुर के रास्ते पर यह विद्या मंदिर स्थित है।