संघ के 100 साल: दो अक्टूबर, 2025 को रेशमबाग मैदान, नागपुर के भाषण में क्या होगा खास

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दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का विजयादशमी उत्सव हर वर्ष एक महत्वपूर्ण अवसर होता है, जहां संघ प्रमुख (सरसंघचालक) डॉ. मोहन भागवत का भाषण राष्ट्र के सामने दिशा-निर्देश प्रदान करता है। 2 अक्टूबर, 2025 को होने वाला यह भाषण विशेष रूप से महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि यह संघ की स्थापना के शताब्दी वर्ष का प्रारंभ चिह्नित करेगा। आरएसएस की स्थापना 1925 में डॉ. केशवराव बलराम हेडगेवार द्वारा विजयादशमी के दिन हुई थी, और 2025 में यह संगठन अपने 100 वर्ष पूरे कर रहा है। इस भाषण में क्या खास होगा, इसका अनुमान संघ की परंपराओं, हाल की घटनाओं, पूर्व भाषणों और शताब्दी योजनाओं के आधार पर लगाया जा सकता है।

सबसे पहले, इस भाषण की विशेषता होगी शताब्दी उत्सव का उद्घाटन। आरएसएस ने घोषणा की है कि 2 अक्टूबर, 2025 को नागपुर के रेशमबाग में सुबह 7:40 बजे विजयादशमी उत्सव आयोजित होगा, जिसमें पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद मुख्य अतिथि होंगे। डॉ. भागवत का उद्बोधन इस उत्सव का केंद्रबिंदु होगा, जो संघ के 100 वर्षों की यात्रा को रेखांकित करेगा। यह भाषण न केवल इतिहास की समीक्षा करेगा, बल्कि भविष्य की दृष्टि भी प्रस्तुत करेगा, जो संघ के लिए एक मील का पत्थर साबित होगा।

भाषण में संघ की ऐतिहासिक यात्रा पर गहन चिंतन होने की संभावना है। डॉ. भागवत संभवतः 1925 से शुरू हुई संघ की कहानी को याद करेंगे – कैसे एक छोटे से शाखा से यह संगठन लाखों स्वयंसेवकों का विशाल नेटवर्क बन गया। वे स्वतंत्रता संग्राम में संघ की भूमिका, आपातकाल के दौरान लोकतंत्र की रक्षा, और विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं में सेवा कार्यों का उल्लेख करेंगे। उदाहरण के लिए, 2024 के विजयादशमी भाषण में उन्होंने हिंदू समाज की एकता और सांस्कृतिक मूल्यों पर जोर दिया था, जो 2025 में शताब्दी संदर्भ में और गहराई से दोहराया जा सकता है। विशेष रूप से, संघ के योगदान को राष्ट्र-निर्माण के रूप में प्रस्तुत किया जाएगा, जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास में उसके अनुषांगिक संगठनों की भूमिका।

दूसरी प्रमुख विशेषता होगी हिंदू एकता और सामाजिक सद्भाव पर बल। डॉ. भागवत अक्सर जातिगत विभाजन को दूर करने की बात करते हैं। 2024 में उन्होंने जातियों के बीच पुल बनाने और कमजोरी को अस्वीकार करने पर जोर दिया था। 2025 में, शताब्दी वर्ष में, यह संदेश और मजबूत होगा, खासकर वर्तमान राजनीतिक-सामाजिक परिदृश्य में। वे संभवतः बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचारों, वैश्विक युद्धों और ‘डीप स्टेट’, ‘वोकिज्म’ तथा ‘कल्चरल मार्क्सिज्म’ जैसे खतरों का जिक्र करेंगे, जैसा कि पिछले वर्ष किया था। भारत की विविधता को ताकत बताते हुए, वे ‘धर्म’ को जीवन-प्रेरणा के रूप में परिभाषित करेंगे, न कि मात्र मजहब के रूप में।

शताब्दी वर्ष की योजनाएं इस भाषण को और खास बनाएंगी। संघ ने एक लाख से अधिक ‘हिंदू सम्मेलनों’ और ‘बिरादरी गोष्ठियों’ की योजना बनाई है, जो समाज को एकजुट करने पर केंद्रित होंगी। डॉ. भागवत इन कार्यक्रमों का रोडमैप प्रस्तुत कर सकते हैं, जिसमें युवाओं की भागीदारी, स्वदेशी अपनाने और राष्ट्रीय सुरक्षा पर जोर होगा। वे ओटीटी प्लेटफॉर्म्स जैसे माध्यमों पर सांस्कृतिक प्रभाव की चर्चा कर सकते हैं। वैश्विक संदर्भ में, इजराइल-हमास संघर्ष या कश्मीर की स्थिति का उल्लेख हो सकता है।

इसके अलावा, भाषण में संघ की अपोलिटिकल छवि को मजबूत करते हुए, राष्ट्रहित को सर्वोपरि बताया जाएगा। 2025 में लोकसभा चुनावों के बाद के परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए, वे स्थिर सरकारों के महत्व पर बात कर सकते हैं, लेकिन प्रत्यक्ष राजनीतिक टिप्पणियों से बचेंगे। विशेष घोषणाएं जैसे नए सेवा प्रकल्प या अंतरराष्ट्रीय विस्तार की योजनाएं शामिल हो सकती हैं, क्योंकि संघ अब 40 से अधिक देशों में सक्रिय है।

कुल मिलाकर, यह भाषण संघ के लिए एक ऐतिहासिक मोड़ होगा, जो अतीत की उपलब्धियों को सम्मानित करते हुए भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार करेगा। डॉ. भागवत का संदेश एकता, शक्ति और सांस्कृतिक गौरव पर केंद्रित होगा, जो लाखों स्वयंसेवकों को प्रेरित करेगा। शताब्दी वर्ष में यह भाषण न केवल आरएसएस के सदस्यों के लिए, बल्कि पूरे राष्ट्र के लिए प्रेरणादायी साबित होगा, क्योंकि यह भारत की सनातन परंपराओं को आधुनिक संदर्भ में जोड़ेगा।

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