संघ के संकल्प से सिद्ध हुआ राम मन्दिर निर्माण का स्वप्न

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सर्वेश कुमार सिंह

अयोध्या : भारतीय सांस्कृतिक गौरव की ऐतिहासिक तिथियों में एक और तिथि शामिल हो रही है। यह 25 नवम्बर 2025, तदनुसार मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि है। इस तिथि को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी श्रीराम मन्दिर के शिखर पर धर्मध्वजा फहरा कर पांच सौ साल की इच्छा और आकांक्षा की पूर्ति के रूप में मन्दिर निर्माण की पूर्णता की घोषणा करेंगे। यह सामान्य तारीख नहीं है, अद्भुत सुयोग है। ईश्वरीय शक्तियों के आध्यात्मिक बल से श्रीराम मन्दिर के लिए 45 साल के एक आन्दोलन का सुफल है। इस आन्दोलन की प्रेरणा, संकल्प और सफलता के मूल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की दीर्घकालीन योजना है। राम मन्दिर निर्माण का संकल्प संघ का ही था, जोकि संघ के शताब्दी वर्ष में पूर्ण हो रहा है।

अयोध्या में भगवान श्रीराम के जन्मस्थान पर बने मन्दिर को आज से लगभग 493 साल पहले बाबर के सेनापति मीरबाकी ने तोड़ दिया था। यह तारीख 23 मार्च 1528 थी। पन्द्रह दिन के युद्ध में एक लाख 74 हजार हिन्दुओं के बलिदान के बाद मीरबाकी मन्दिर तोड सका था। मगर हिन्दुओं ने मन्दिर के पुनर्निर्माण की उम्मीद नहीं त्यागी थी, वे लड़ते रहे। वर्ष 1528 से 1949 तक 76 संघर्ष हुए। लेकिन मन्दिर निर्माण का ये लक्ष्य क्या इतनी ही आसानी से प्राप्त हो गया। इस इस दिन को दखेने और स्वप्न को साकार करने के लिए विधिवत योजना बनी, और यह योजना बनाई राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने। इसके लिए संघ के तत्कालीन सरसंघचालक मधुकर दत्तात्रेय देवरस (बाला साहब देवरस) ने सभी परिस्थितियों, संघ की सामर्थ्य, समाज की आकांक्षा और मनोदशा का गहन अध्ययन, विश्लेषण कर उन कार्यकर्ताओं को श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन को आगे बढ़ाने और लक्ष्य तक पहुंचने की अनुमति दी जो इस आंदोलन को स्थानीय स्तर पर पश्चिम उत्तर प्रदेश में खासकर मुरादाबाद ,मेरठ और कुमायूं मंडलों में चला रहे थे।

संघ के सरसंघचालक से आंदोलन की सफलता और संघ का मार्गदर्शन मांगने वालों में मुरादाबाद निवासी दो सूत्रधार थे, एक मुरादाबाद के पूर्व विभाग प्रचारक और तत्कालीन हिन्दू जागरण मंच के पश्चिम उत्तर प्रदेश के संयोजक दिनेश चंद्र त्यागी (शिक्षा एम एससी फिजिक्स), दूसरे कांग्रेस के प्रखर नेता पूर्व मंत्री, तीन बार कांग्रेस से विधायक रहे मुरादाबाद निवासी दाऊदयाल खन्ना। बाला साहब से आंदोलन की योजना और विस्तार के लिए यह चर्चा बदायूं में 26 दिसम्बर 1983 को लगे संघ के शीत शिविर में हुई। यहां बाला साहब देवरस दो दिन के प्रवास पर शिविर में आए थे। इस वार्ता में संघ के सरसंघचालक ने कहा कि आंदोलन को संघ को चलाना चाहिए अथवा नहीं इस पर गंभीरता से विचार आवश्यक है। यदि आन्दोलन को चलाना है तो यह मानकर आगे बढ़ाया जाए कि इसे हर हाल में सफल करना है चाहे फिर कितना भी संघर्ष और त्याग क्यों ने करना पड़े। साथ ही उन्होंने यह भी कह दिया कि लक्ष्य प्राप्ति में कम से कम 30 से 40 वर्ष लगेंगे। इसलिए संघ को विचार करना पडेगा। उन्होंने अपने सहयोगियों से भी विचार विमर्श किया। उनका मानना था कि यदि संघ इसे अपने हाथ में ले तो सफलता तक संघर्ष जारी रखना पडेगा। इसके बाद बाला साहब ने दाऊदयाल खन्ना और दिनेश चन्द्र त्यागी से कहा कि आंदोलन चलाइये संघ सहयोग करेगा। आगे चलकर आन्दोलन की प्रखरता और लोकप्रियता को देखते हुए इसे संघ ने अपने समविचार परिवार के संगठन विश्व हिन्दू परिषद् को आन्दोलन चलाने के लिए कहा। दिल्ली के विज्ञान भवन में 7 और 8 अप्रैल 1984 को हुई धर्म संसद में विश्व हिन्दू परिषद् ने आन्दोलन अपने हाथ में ले लिया। यहीं विहिप की देखरेख में श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन किया गया। इसके अध्यक्ष गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवैद्यनाथ और महामंत्री दाऊदयाल खन्ना को बनाया गया। आगे का आन्दोलन इस समिति के नेतृत्व में आरम्भ हुआ।

राम मन्दिर के संकल्प को साकार करने के लिए संघ ने व्यापक योजना बनायी। आन्दोलन के लिए लगभग एक दर्जन से अधिक प्रचारकों को विश्व हिन्दू परिषद् में भेजा गया। इन प्रचारकों ने अपने जीवन को इस लक्ष्य के लिए समर्पित कर दिया। बंगलौर में 1981 में हुई संघ की बैठक में दिल्ली प्रांत प्रचारक अशोक सिंहल को दायित्व से मुक्त कर विश्व हिन्दू परिषद् में नया दायित्व दिया गया। आन्दोलन की पूरी सांगठनिक संचरचना के मूल केन्द्र रहे चंपतराय को भी 1986 में पश्चिम उत्तर प्रदेश में मेरठ विभाग प्रचारक से विश्व हिन्दू परिषद् में भेज दिया। वर्ष 1984 में संघ ने आंदोलन की कमान विश्व हिन्दू परिषद को सौंपने का महत्वपूर्ण और दूरगामी लक्ष्य प्राप्ति के संकल्प के लिए निर्णय लिया। यह निर्णय आसान नहीं था क्योंकि संघ ने अपने एक महत्वपूर्ण संगठन को एक ऐसे आंदोलन के लिए दांव पर लगा दिया था,जिसकी सफलता की राह बहुत कठिन थी,संघर्ष बहुत लंबा था। सुयोग्य, साहसी, समर्पित प्रचारकों की एक बड़ी टीम की आवश्यकता थी। लेकिन संघ ने हिंदू समाज के स्वाभिमान की रक्षा के लिए ये निर्णय किया।

प्रचारक गिरिराज किशोर, ओंकार भावे, सूर्यकृष्ण,श्यामजी गुप्त, राजेंद्र सिंह पंकज, उमाशंकर, पुरुषोत्तम नारायण सिंह, तुलसीराम नाना भागवत, सदानंद काकडे, गुरुजन सिंह, सूबेदार सिंह सरीखे प्रखर प्रचारकों की एक बड़ी टीम संघ से विहिप में भेजी गई। बाद में भी कई प्रमुख प्रचारक संघ से आन्दोलन में प्रमुख भूमिका निभाने के लिए विश्व हिन्दू परिषद् में भेजे गए। इनमें दिल्ली के क्षेत्र प्रचारक दिनेश कुमार ( बडे दिनेश जी) का नाम प्रमुख है।

संघ में ही रहकर वरिष्ठ प्रचारक मोरोपंत पिंगले ने आंदोलन की योजना और रचना की। वे विहिप के मार्गदर्शक बनाए गए। मोरोपंत जी की ही योजना से विहिप ने एकात्मकता यात्राएं निकाल कर जन जागरण किया। राम ज्योति और शिला पूजन जैसे आयोजन हुए। इन कार्यक्रमों ने हिंदू समाज की सुप्तावस्था में रही शाश्वत चेतना और स्वाभिमान को जगा दिया। फलस्वरूप जागरूक समाज ने वर्ष 1990 और 1992 में अपने इष्ट के मंदिर निर्माण के लिए कूच कर दिया। दो बार कारसेवा संपन्न हुई।

आंदोलन में दो अलग अलग मोर्चों पर संघर्ष की रणनीति विहिप ने बनाई। एक थी प्रत्यक्ष आंदोलन, यानि सभा,सम्मेलन,प्रदर्शन,गोष्ठी,धार्मिक आयोजन,धर्म संसद, संत सम्मेलन आदि। दूसरी न्यायालय में विचाराधीन वादों की सुव्यवस्थित ढंग से पैरवी करना। इन वादों के लिए तथ्य जुटाना,गवाही कराना, अच्छे अधिवक्ताओं की एक बड़ी टीम जुटाना। आंदोलन को दिशा देने और संत समाज को एक जुट करके आंदोलन का अगुआ बनाने का काम अशोक सिंघल जी की प्रतिभा से संपन्न हो सका था। भारत के विभिन्न मत,पंथ,संप्रदायों के संतों महंतों को एकजुट करना कोई आसान काम नहीं था। लेकिन अशोक जी ने ये किया। वे इसलिए भी सफल हुए क्योंकि स्वयं भी संत प्रकृति और प्रवृत्ति के थे। इसलिए उनकी वाणी का अद्भुत प्रभाव था। उनके आग्रह को कोई टाल नहीं सकता था। वे श्वेत वस्त्रधारी संत थे।

जितना मुश्किल राम जन्मभूमि आंदोलन चलाना था,उससे भी मुश्किल था, न्यायालयों का संघर्ष। इस मोर्चे को विहिप में विभिन्न दायित्व पर रहे चंपतराय ने संभाला। चंपतराय जी हमेशा परिदृश्य से ओझल रहकर कार्य करते रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय में मुकदमे की पैरवी के लिए चंपत जी अच्छे से अच्छे अधिवक्ताओं को जुटा रहे थे। उनकी बैठकें करते थे। साक्ष्य भी जुटाते थे। एक एक पेपर की फोटो कॉपी कराने से लेकर उसे समय पर न्यायालय में पहुंचवाना। सभी अधिवक्ताओं की चिंता। हर तारीख पर सजग और गंभीर रहना । वे हर तारीख को निर्णायक मानकर तैयारी करते थे, मानो उसी दिन फैसला होना हो। इन प्रयासों का प्रतिफल था न्यायलय का 9 नवंबर 2019 का फैसला और 22 जनवरी 2024 को मन्दिर में प्राण प्रतिष्ठा का दिवस। और अब मन्दिर निर्माण की पूर्णता और भारतीय सांस्कतिक गौरव की प्रतीक धर्मध्वजा का फहराना।

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