प्रवीण बागी
पटना। बिहार में एक उपमुख्यमंत्री हैं विजय कुमार सिन्हा। पीएम मोदी के प्रिय माने जाते हैं। तीखे तेवर और कड़क अंदाज के लिए हमेशा चर्चा में रहते हैं। अभी वे राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के मंत्री हैं। कमाऊं विभाग माना जाता है। विभाग में भ्रष्टाचार की दरिया बहती है। कर्मचारी, अमीन से लेकर अंचल ऑफिस में बैठे सीओ और उनके ऊपर बैठे अधिकारी दरिया में गोते लगाते रहते हैं। वैसे बिहार में कौन सा विभाग भ्रष्टाचार से अछूता है, यह बताना कठिन है। हां, कमाई की रकम में फर्क हो सकता है।
अब विजय सिन्हा साहब ठहरे ठेठ संघी। संघ की शाखा में दक्ष: -आरमह: करते -करते यहां तक पहुंचे हैं। उन्हें यह सब रास नहीं आता। उन्होंने फरमान सुना दिया कि ‘लटकाओ, भटकाओ फिर खींचो’ (नगदी) का फार्मूला नहीं चलेगा। आप सेवक हैं, स्वामी बनने की कोशिश न करें। विभाग का स्वामी मंत्री होता है और मंत्री का स्वामी जनता होती है। हमें जनता को जवाब देना होता है। इसलिए काम तेजी से करना है। घूस नहीं लेना है। जनता मालिक है, उसे परेशान नहीं करना है। जनता परेशान होगी तो आप भी परेशान हो जाइएगा।
कुल मिलकर मंत्री जी उलटी गंगा बहाना चाहते हैं। बताइये भला, यह भी कोई बात हुई ? जब सरकारी सेवक कमाई नहीं करेंगे तो सरकारी सेवा में आने का फायदा क्या ? दरमाहा से ज्यादा कमाई तो पान -गुटका की गुमटी लगाकर कमा सकते हैं ! अब मंत्री जी को कौन समझाए कि वेतन से भला घर चलता है ! वेतन तो पूर्णमासी के चांद की तरह होता है जबकि ऑफिस की कमाई सदा बहार होती है। इसी से पटना समेत बड़े महानगरों में महंगे फ्लैट, प्लाट, पत्नी के नखरे और फैशन, भारी गहने, लक्जरी गाड़ी और संतानों की अय्याशी सब कुछ चलता है। एक -एक कर्मचारी, सीओ और रजिस्टार की कमाई सुन लीजियेगा तो गश खा कर गिर जाइएगा !
मंत्री जी इसी को बंद करना चाहते हैं। वे इसे पाप समझते हैं। अब उन्हें कौन समझाए कि संत विनोबा भावे बहुत पहले कह गए हैं कि इस देश में भ्रष्टाचार शिष्टाचार बन गया है। विनोबा जी के कहने पर अपने जेपी ने भूदान के लिए जीवनदान दे दिया था। उनकी एक अपील पर हजारों बिहारियों ने अपनी लाखों एकड़ जमीन दान कर दी थी। सिन्हा जी जमीनों का हिसाब -किताब रखनेवाले विभाग के ही मंत्री हैं। इसके बाद भी वे विनोबा जी की बात मैंने को तैयार नहीं हैं। भ्रष्टाचार को शिष्टाचार मानने के लिए तैयार नहीं हैं। घूस की रकम को पाप कहते हैं।
उन पर ‘पूरे विभाग को बदल डालूंगा’ की सनक सवार हो गई है। जिले- जिले घूम कर भूमि सुधार जन कल्याण संवाद शिविर लगाकर लोगों की समस्याएं सुन उनका ऑन स्पॉट निपटारा कर रहे हैं। लोग खुश हैं कि घूस न देने के कारण वर्षों से लटकी उनकी समस्याओं का तुरत निपटारा हो रहा है। लेकिन बाबू और साहब लोगों को मंत्री जी फूटी आंख नहीं सुहा रहे। क्योंकि उनकी कमाई नहीं हो रही है। पहले रोज जेब भर कर घर आते थे, अब खाली जेब, मुंह सुखाये हुए आना पड़ रहा है। और तो और जिसे डांट कर भगा देते थे, उसी के सामने खड़ा कर मंत्री जी घिग्घी बंधवा दे रहे हैं। इससे बड़ा अपमान और क्या होगा ? कमाई भी गई और रुआब भी गया। एक पीड़ा यह भी है कि ब्लॉक स्टॉफ की डेली प्रैक्टिस जस की तस है जबकि उनके लिए बोहनी होना भी कठिन हो गया है।
राजस्व सेवा संघ ने इस मुद्दे को बड़े संसदीय तरीके से मुख्यमंत्री तक पहुंचाया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लिखे पत्र में संघ ने इसे ‘तमाशाई शासन शैली’ और औपनिवेशिक काल की याद दिलाने वाला बताया है, जहां दंड प्रदर्शन को संवाद पर प्राथमिकता दी जाती थी। पत्र में कहा है कि विभागीय मंत्री के द्वारा सार्वजनिक मंचों से राजस्व सेवा के अधिकारियों के विरूद्ध अपमानजनक टिप्पणी किए जाने से विभाग की गरिमा को ठेस पहुंच रही है। हाल के दिनों में उप मुख्यमंत्री की टिप्पणी से संपूर्ण विभाग का उपहास हो रहा है। मंत्री तत्काल तालियों को तरजीह दे रहे हैं और अधिकारियों को मौके पर निलंबित करने की धमकी दे रहे हैं। यदि यह मॉडल उचित है तो इसे सभी विभागों पर लागू किया जाए। आज के दौर में सीओ पर जिम्मेदारियों का भारी बोझ है।
मतलब साफ़ है अधिकारी साफ साफ़ कह रहे हैं कि हमारी कमाई बंद होगी तो दूसरों की भी कमाई नहीं होनी चाहिए। यही मॉडल सभी विभागों पर लागू हो। उनकी बेशर्मी की हद देखिये कि काम के अधिक बोझ की दुहाई देकर वे रिश्वतखोरी को जायज ठहराने की चेष्टा कर रहे हैं।
मंत्री जी को यह समझना चाहिए कि साहब, बीबी और बच्चे दुखी होंगे तो उनकी आह निकलेगी। घूसखोरों की आह मजबूत से मजबूत सरकारों को भी बदल देती है। चारा घोटालेबाज अधिकारी मंत्री क्या मुख्यमंत्री तक को अपने इशारे पर नचाते थे। कांग्रेस काल में बिहार के एक अधिकारी एक्साइज किंग कहे जाते थे। एक्साइज विभाग के मंत्री उनकी राय से ही कोई काम करते थे। जो इधर उधर करते थे वे बदल दिए जाते थे।
विजय सिन्हा को यह इतिहास जान लेना चाहिए। उन्हें यह भी जान लेना चाहिए की बिहार के अधिकारी उनके मुख्यमंत्री के जिगर के टुकड़े की तरह हैं। जिगर के टुकड़ों के दर्द से कब उनका दिल द्रवित हो जाए और मंत्री जी का विभाग बदल दिया जाये यह कोई नहीं जनता।
बिहार में विवाहों में एक गीत गया जाता है -दूल्हा धीरे -धीरे चल ससुर गलिया। राजनीति में इस गीत के अलग मायने हैं। उन्हें समझ कर सतर्क रहने की जरुरत है। बहरहाल विजय सिन्हा ने ठोक कर कह दिया है कि वे गीदड़ भभकियों से डरनेवाले या किसी दबाव में आने वाले नहीं हैं। लड़ाई अभी जोर पकड़ेगी। यह देखना दिलचस्प होगा कि भ्रष्टाचारियों की लॉबी जीतती है या मंत्री ?



