~ रमेश पतंगे
मुंबई । देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 79वें स्वतंत्रता दिवस का भाषण, हमेशा की तरह, उत्कृष्ट रहा — ऐसा प्रमाण पत्र देने की कोई आवश्यकता नहीं। यह भाषण 102 मिनट का था। ऐसे भाषण से राष्ट्रीय नेतृत्व के गुण झलकते हैं। राष्ट्र का नेता कठोर, दूरदर्शी, देश के भीतर और अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों का गहरा ज्ञान रखने वाला, सही समय पर सही और कठोर निर्णय लेने वाला, और उन निर्णयों के परिणामों की पूर्ण समझ रखने वाला होना चाहिए। इस संदर्भ में दुनिया के कुछ नेताओं का उल्लेख किया जाना उचित होगा । प्रथम विश्व युद्ध में अमेरिका का नेतृत्व थिओडोर रूजवेल्ट ने किया और इन सभी गुणों का प्रदर्शन उनके नेतृत्व में दिखा। द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिका के नेता फ्रैंकलिन रूजवेल्ट थे, ब्रिटेन के नेता विंस्टन चर्चिल थे। बाद में रूस से संघर्ष करने वाले जॉन एफ. कैनेडी थे। इन सभी नेताओं के नेतृत्व में उपरोक्त गुणों का चरम दिखाई देता है। हाल के समय में मार्गरेट थैचर, जर्मनी की एंजेला मर्केल, सिंगापुर के ली कुआन यू भी ऐसे महान नेताओं की पंक्ति में खड़े होते हैं। आज हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस सूची में सहजता से शामिल होते दिखाई देते हैं।
अपने लंबे भाषण में नरेंद्र मोदी ने बहुत दृढ़ता से पाकिस्तान को चेतावनी दी कि भारत परमाणु युद्ध की धमकी से नहीं डरता। हम किसी भी प्रकार का ब्लैकमेल सहन नहीं करेंगे। सिंधु जल समझौते के संदर्भ में उन्होंने कहा कि “रक्त और पानी एक साथ बह नहीं सकते। सिंधु का पानी बंद मतलब बंद।” ऑपरेशन सिंदूर के बारे में उन्होंने कहा कि हमने सेना को पूरी आज़ादी दी, उन्होंने रणनीति तय की, लक्ष्य चुना और लक्ष्य पर प्रहार किया। कई दशकों के बाद यह पराक्रम हमारी सेना ने किया। रक्षा क्षमता बढ़ाने के लिए हम लड़ाकू विमानों के स्वदेशी उत्पादन पर काम कर रहे हैं। स्वावलंबी और आत्मनिर्भर भारत हमारा लक्ष्य है। ट्रम्प का नाम लिए बिना उन्होंने संकेत दिया कि आर्थिक धमकियों के आगे भारत नहीं झुकेगा।
कुछ दशक पहले कटोरा लेकर भीख मांगने वाले देश के रूप में ही दुनिया में भारत की छवि थी। चीन से मार खाने वाला और पाकिस्तानी आतंकवादियों से झुलसा हुआ भारत — यही भारत की पहचान थी। वैश्विक शांति के खोखले प्रवचन देने वाला, लेकिन अपने नागरिकों की रक्षा करने में असमर्थ भारत — इस दुर्बल भारत को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दस वर्षों में सीधा खड़ा कर दिया, स्वाभिमानी बना दिया। आज का भारत जैसे को तैसा ही जवाब देने वाला भारत बन चुका है।
ऐसे भारत का सपना सुभाषचंद्र बोस ने देखा था, स्वामी विवेकानंद ने देखा था, स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने देखा था, सरदार पटेल ने देखा था और इस सपने को साकार करने का काम पिछले सौ वर्षों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कर रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं संघ के स्वयंसेवक हैं और उन्हें इस पर गर्व है। मातृभूमि की सेवा के लिए जीवन समर्पित करने की प्रेरणा उन्हें संघ से ही मिली है।
इस बार लाल किले से अपने भाषण में उन्होंने संघ शताब्दी का अत्यंत संक्षिप्त उल्लेख किया। उनके ही शब्दों में —
“आज, मैं गर्व के साथ कहना चाहता हूं कि 100 साल पहले, एक संगठन का जन्म हुआ, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। राष्ट्र की सेवा के सौ वर्ष एक गौरवपूर्ण, स्वर्णिम अध्याय हैं। ‘व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण’ के संकल्प के साथ, मां भारती के कल्याण के उद्देश्य से, स्वयंसेवकों ने अपना जीवन हमारी मातृभूमि के कल्याण के लिए समर्पित कर दिया।”
देश के प्रधानमंत्री के स्वतंत्रता दिवस के भाषण में संघ का गौरवपूर्ण उल्लेख होना, यह पहला ही प्रसंग है। देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू संघ के घोर विरोधी थे। उनकी पुत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने भी वही परंपरा आगे बढ़ाई, और सोनिया गांधी परिवार भी उसी विरासत में जी रहा है। कौन किस विरासत में जीना चाहता है, यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता का विषय है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संघ की विरासत में जीने वाले प्रधानमंत्री हैं। संघ का मंत्र है — “राष्ट्र प्रथम, अन्य सभी बातें बाद में।” प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने भाषण में ‘मां भारती’ जैसे शब्द बार-बार प्रयोग करते हैं। भारतमाता की कर्ममय भक्ति संघ की विचारधारा का आधार है।
इससे पहले भी स्वयंसेवक अटल बिहारी वाजपेयी भी देश के प्रधानमंत्री थे। लाल किले से उनके भी भाषण हुए, लेकिन उन्होंने अपने भाषण में अकारण संघ का उल्लेख नहीं किया । महान राजनेता वही है जो सही समय पर सही बात कहे। संघ शताब्दी का वर्ष यही सही समय है और इस समय को पकड़कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संघ के बारे में कहा है। उन्होंने व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण के संघ मंत्र का उच्चारण किया।
संघ की शताब्दी का अर्थ क्या है? यह शताब्दी राष्ट्र जागरण की शताब्दी है। यह ‘स्व’ बोध जागरण की शताब्दी है। यह समरस समाज जीवन निर्माण की शताब्दी है। यह शताब्दी ‘स्व’ कर्तव्य जागरण की शताब्दी है। यह राष्ट्र को सामर्थ्यवान बनाने वाले त्यागमय परिश्रम की शताब्दी है। यह राष्ट्र को समृद्ध बनाने वाले महान यज्ञ की शताब्दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस महान राष्ट्र के पुनर्निर्माण के संग्राम के महान सेनापति हैं। इसलिए उनका संघ विषयक वक्तव्य कोई औपचारिक भाषण नहीं, बल्कि आचरण के मंत्र हैं — इसका यही अर्थ निकालना होगा। ऐसे महान नेता को अंतःकरणपूर्वक वंदन!
(अनुवादक हेमंत मुक्तिबोध)