अनुराग पुनेठा
दिल्ली । सर्जियो गोर को भारत में अमेरिकी राजदूत नियुक्त किया गया है। सवाल है — क्या यह डोनाल्ड ट्रंप की भारत को पटखनी देने की नई रणनीति है? या फिर यह भारत के लिए एक “खुली खिड़की” है, जहाँ से व्यापारिक तनाव को कम किया जा सकता है?
सर्जियो गोर की पहचान एक हॉकिश (सख़्त और आक्रामक) कूटनीतिज्ञ के रूप में है। वह ट्रंप के क़रीबी हैं और उन्हें ट्रंपियन स्टाइल का असली चेहरा माना जाता है। उनके आने का मतलब यह हो सकता है कि ट्रंप भारत पर व्यापार और रूस-चीन समीकरणों को लेकर दबाव बढ़ाने वाले हैं। याद कीजिए, ट्रंप कई बार भारत को “टैरिफ किंग” कह चुके हैं।
लेकिन यही तस्वीर का दूसरा पहलू भी है। सर्जियो गोर सिर्फ़ राजनेता नहीं, बल्कि बिज़नेसमैन भी हैं। एक बिज़नेसमैन के तौर पर उनके लिए डील-मेकिंग प्राथमिकता है। भारत अगर सही चाल चले तो यही व्यक्ति हमारे लिए “टैरिफ संकट को हल करने का पुल” भी बन सकता है।
तो असली सवाल यही है — क्या हम सर्जियो गोर को केवल ट्रंप की सख़्ती का दूत मानेंगे, या उन्हें भारत-अमेरिका संबंधों के नए सौदेबाज़ के रूप में इस्तेमाल करेंगे?