अनुराग पुनेठा
नई दिल्ली: भारत की कूटनीतिक चालें एक बार फिर वैश्विक मंच पर चर्चा का विषय बन रही हैं। पहले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल का रूस दौरा, फिर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को भारत का न्योता, और अब चीन ने शंघाई सहयोग संगठन (SCO) समिट के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आमंत्रित किया है। यह सिलसिला महज संयोग नहीं, बल्कि वैश्विक कूटनीति के शतरंज का एक हिस्सा है।
SCO का न्योता: रूटीन या रणनीति?
SCO समिट हर साल आयोजित होती है, और भारत के लिए न्योता कोई नई बात नहीं। लेकिन इस बार की टाइमिंग ने इसे खास बना दिया है। अमेरिका के साथ भारत के रिश्तों में हाल के महीनों में टैरिफ और व्यापार को लेकर तनाव की खबरें सुर्खियों में रही हैं। ऐसे में चीन का यह न्योता एक संदेश की तरह देखा जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि चीन, भारत को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रहा है, खासकर तब जब वैश्विक मंच पर बड़े खिलाड़ी एक-दूसरे को आंख दिखा रहे हैं।
भारत का कूटनीतिक ‘फ्लेक्स’
पिछले कुछ महीनों में भारत ने अपनी कूटनीति को नई ऊंचाइयों पर ले जाया है। अजीत डोभाल का मॉस्को दौरा, जहां उन्होंने रूस के साथ रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत करने पर चर्चा की, इसका एक उदाहरण है। इसके बाद भारत ने पुतिन को न्योता भेजकर मॉस्को के साथ अपनी दोस्ती को और गहरा करने का संदेश दिया। अब SCO समिट के लिए चीन का न्योता भारत को एक और मौका देता है कि वह वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति को और मजबूत करे।
पॉलिटिकल थिएटर का मंच
यह सब कुछ एक ‘पॉलिटिकल थिएटर’ का हिस्सा माना जा रहा है। कैमरे के सामने मुस्कुराहट, गर्मजोशी से हाथ मिलाना, और मंच पर दोस्ती की बातें—लेकिन पर्दे के पीछे कठिन सौदेबाजी और रणनीतिक चर्चाएं। भारत, रूस और चीन के बीच यह त्रिकोणीय कूटनीति न केवल क्षेत्रीय स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन को भी प्रभावित कर सकती है।
नया क्या है?
सतह पर देखें तो कुछ भी नया नहीं। SCO समिट एक रूटीन आयोजन है, और भारत का इसमें हिस्सा लेना सामान्य प्रक्रिया। लेकिन गहराई में जाएं तो यह साफ है कि यह न्योता सिर्फ एक औपचारिकता नहीं। यह चीन की ओर से भारत को एक संदेश है कि वह वैश्विक मंच पर भारत की बढ़ती ताकत को नजरअंदाज नहीं कर सकता। दूसरी ओर, भारत भी इस मौके का इस्तेमाल अपनी कूटनीतिक रणनीति को और मजबूत करने के लिए करेगा।
आगे क्या?
क्या मोदी SCO समिट में हिस्सा लेंगे? अगर हां, तो यह भारत-चीन संबंधों में एक नया अध्याय शुरू कर सकता है। लेकिन यह भी तय है कि भारत अपनी शर्तों पर ही इस मंच का इस्तेमाल करेगा। जैसा कि एक कूटनीतिक विशेषज्ञ ने कहा, “जब बड़े खिलाड़ी आंख दिखाएं, तो भारत को अपनी कूटनीति की भौंहें थोड़ा ऊपर उठानी ही पड़ती हैं।”
यह कूटनीतिक रंगमंच अभी और रोचक होने वाला है।