एस.के. सिंह
हाल ही में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अमेरिका यात्रा के मौके पर SOSA पर हस्ताक्षर किए गए। SOSA के माध्यम से, जिस पर अमेरिका ने कुछ गैर-सहयोगी और गैर-नाटो देशों सहित 18 अन्य देशों के साथ हस्ताक्षर किए हैं, अमेरिका और भारत अब राष्ट्रीय रक्षा को बढ़ावा देने वाली वस्तुओं और सेवाओं के लिए पारस्परिक प्राथमिकता समर्थन प्रदान करने पर सहमत हुए हैं। SOSA अमेरिका को इस समझौते के तहत देशों की कंपनियों से अपने अनुबंधों, उपअनुबंधों या ऑर्डर के लिए प्राथमिकता वितरण का अनुरोध करने की अनुमति देता है। इसी तरह, यह हस्ताक्षरकर्ता देशों को अमेरिकी फर्मों से अपने अनुबंधों और आदेशों के लिए प्राथमिकता वितरण का अनुरोध करने की भी अनुमति देता है। अपनी रक्षा के लिए बढ़ती वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला के साथ SOSA अमेरिकी रक्षा और व्यापार भागीदारों के साथ रिश्ते को मजबूत करने के लिए एक महत्वपूर्ण तंत्र है।
आज की तारीख में, भारत दुनिया भर के 84 देशों को सैन्य उपकरण निर्यात करता है, जिनमें ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इज़राइल, इटली, जापान, दक्षिण कोरिया, नीदरलैंड, न्यूजीलैंड, सऊदी अरब, स्विट्जरलैंड, ताइवान, यूएई, यूके, यूएसए आदि जैसे उच्च आय वाले देश शामिल हैं। हालांकि रक्षा निर्यात में भारत की वृद्धि की सफलता अज्ञात नहीं है, लेकिन इस परिवर्तन के पीछे प्रेरक शक्ति रहे प्रमुख कारक काफी हद तक अज्ञात हैं। जनवरी 2023 में भारत के रक्षा मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, लगभग 50% भारतीय सैन्य उपकरण निर्यात के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका भारत के लिए शीर्ष बाजारों में से एक है। निर्यात में बुलेट-प्रूफ जैकेट और हेलमेट, आग्नेयास्त्रों के हिस्से, कवच-परिरक्षण उपकरण, इलेक्ट्रॉनिक्स, उप-प्रणाली और एयरो घटक शामिल हैं।
वित्त वर्ष 2023-24 में भारत का सैन्य निर्यात ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ पहल से प्रेरित होकर 21,083 करोड़ रुपये ($2.5B) तक पहुंच गया। वित्त वर्ष 2028-29 के समापन तक भारत सरकार का लक्ष्य 50,000 रुपये करोड़ ($6B) का रक्षा निर्यात हासिल करना है।
रूस के हथियारों और गोला-बारूद पर भारत की निर्भरता बहुत अधिक है और आयात की सूची में इसका हिस्सा लगभग 65% से अधिक है। रूस-यूक्रेन के वर्तमान युद्ध में, रूसी टैंक और तोपखाने पश्चिमी दुनिया और अमेरिका द्वारा आपूर्ति किए गए यूक्रेन के स्मार्ट एंटीटैंक हथियारों के सामने नाजुक साबित हुए। इसमें कोई संदेह नहीं कि संयुक्त राज्य अमेरिका, इज़राइल और पश्चिमी देशों के हथियार और गोला-बारूद रूसी हथियारों की तुलना में अधिक स्मार्ट और शक्तिशाली हैं।
अब समय आ गया है कि भारत खुद को अपनी श्रेणी के सर्वोत्तम हथियारों और गोला-बारूद से सुसज्जित करे और साथ ही अपनी अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों को अधिक फोकस के साथ जारी रखे। चीन से संभावित खतरे को देखते हुए, रूसी हथियार की एक सीमा हैं। SOSA का वर्तमान समझौता भारत के लिए अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी से बने उपकरणों के निर्माण के माध्यम से अपनी रक्षा क्षमताओं को मजबूत करने में सहायक होगा। यह भारतीय कंपनियों को निर्यात के माध्यम से देश के लिए विदेशी मुद्रा अर्जित करने के लिए आत्मनिर्भर भारत की सरकारी नीति के तहत नवाचार (innovation) और विनिर्माण शुरू करने के लिए एक उपजाऊ जमीन प्रदान करेगा।
जिस तरह से आईटी उद्योग 90 के दशक में भारत में सॉफ्टवेयर विकास संस्कृति के लिए एक इको सिस्टम बनाने में सहायक था, उसी तरह संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों के साथ तकनीकी रक्षा संबंधों के साथ भारत सरकार की वर्तमान पहल अनुसंधान और नवाचार के परिवर्तन के लिए तथा रक्षा आवश्यकताओं के लिए आवश्यक एक मील का पत्थर साबित होगा। 2-3 दशकों के बाद भारतीय निजी कंपनियों को लॉकहीड मार्टिन, बोइंग और जीई एयरोस्पेस जैसी वैश्विक दिग्गज कंपनियों की कतार में गिना जा सकता है।