रंगनाथ सिंह
कभी-कभी औचक ही ऐसी घटनाएँ घट जाती हैं जिन्हें समझने में आपको लम्बा वक्त लग जाता है। कल और आज के बीच ऐसी ही एक घटना घट गयी जिसे मैं चाहकर भी समझ नहीं पा रहा हूँ। मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि धाराप्रवाह इंग्लिश बोलने-लिखने वाली आत्मनिर्भर महिलाएँ भी उसी ट्रैप में फँस सकती हैं जिनका आसान शिकार अशिक्षित और परनिर्भर महिलाएँ मानी जाती थीं। पिंजड़ातोड़ वाली इस नए पिंजड़े को कैसे देखती हैं, यह देखना बाकी है।
वायर के लिए लिखने वाले पत्रकार के खिलाफ शिकायत करने वाली पीड़िता ने 40 से ज्यादा व्यक्तियों और संस्थाओं को टैग करके अपनी पीड़ा सार्वजनिक की। जब व्हाटसऐप द्वारा उस ट्वीट को प्रसार हुआ तो पहले चरण में शुद्ध वामपंथियों ने आपस मे एक दूसरे को वह ट्वीट भेजा। उनमें से कुछ अशुद्ध वामपंथियों की आत्मा अधमरी अवस्था में साँस ले रही थी तो उन्होंने कुछ इंडिपेडेंट और कुछ दक्षिणपंथियों को वह लिंक भेजा। जब धीरे-धीरे बात फैलने लगी तब दि वायर का आत्मरक्षात्मक बयान आया कि जाँच करेंगे। जाँच के नतीजों जब आएँगे तब उसकी चर्चा फिर करेंगे।
पीड़िता के मूल बयान में भी हिन्दुत्व के कट्टर विरोध की गहरी इच्छाशक्ति छलक रही थी। बाद में उसने एक बयान जारी करके हिन्दुत्ववादियों को लानत भेजा ताकि वो उसकी पीड़ा का इस्तेमाल न कर सकें। उसके बाद हिन्दुत्ववादियों ने उसे भला-बुरा कहा और जितने कमेंट मेरी नजर में गुजरे उनका सार यही था कि इसे हिन्दुत्ववादियों से इतनी समस्या है तो इसे इसके हाल पर छोड़ दो!
आप कह सकते हैं कि पीड़िता की दूसरी अपील का असर तत्काल दिख गया मगर उसकी पहली अपील का असर मुझे कहीं नहीं दिखा। जिन 40 से ज्यादा हैंडल को उसने टैग किया था उनमें से किसी ने उसका ट्वीट रीट्वीट तक नहीं किया था।
पीड़िता ने जिन लोगों को टैग किया था उनमें फ्री स्पीच एंकर से लेकर फ्री स्पीच एडिटर तक शामिल थे जो रोज ही प्रधानमंत्री को ललकारते रहते हैं मगर एक पीड़ित लड़की की पीड़ा पर उनके कान पर जूँ तक नहीं रेंगी।
पीड़िता द्वारा हिन्दुत्व की कड़ी निन्दा के बाद एक यूट्यूबर ने ऐसा रहस्योद्घाटन किया जिसे सुनकर मेरी बुद्धि हिल गयी। वह मोहतरमा जेएनयू से इतिहास में पीएचडी हैं। उन्होंने इंग्लिश में बयान जारी करके बताया कि वह भी 8-10 साल तक ऐसे ही फिजिकली और मेंटली अब्यूसिव रिलेशन में रही थीं मगर उन्होंने आरोपी को कॉल आउट नहीं किया क्योंकि इससे “मुस्लिम मेन” टारगेट होने लगते! अपना उदाहरण देकर उन्होंने पीड़िता को संकेत दिया कि वह बिल्कुल सही दिशा में जा रही है।
जो नारीवादियाँ पीड़िताओं को उनके पिता-भाई-पति इत्यादि के खिलाफ बोलने के प्रेरित करती रही हैं वे महिला उत्पीड़न पर पर्दा डालने वाले इस नए “ऑनर कोड” पर क्या सोचती हैं? यह नया कोड “गाँव में बदनामी” और “परिवार की इज्जत” से ज्यादा खतरनाक है क्योंकि गाँव और परिवार सीधे तौर पर पीड़िता के लिविंग रियल्टी के हिस्से होते हैं। मगर ये कौन से ख्याली “मुस्लिम मेन” हैं जिनको बचाने के लिए ये पीड़िताएँ लम्बे समय तक पुलिस या समाज से अपने यौन शोषण और अब्यूज को छिपाती रहीं!
जरा सोचिए कि जब हिन्दू महिलाओं की ग्रूमिंग का यह हाल है तो मुस्लिम महिला का क्या हाल होगा! उनपर अपनी कौम की मर्दों की इज्जत बचाने का कितना दबाव होगा! अगर उनके साथ उत्पीड़न होगा तो उन्हें उसके खिलाफ आवाज उठाने में कितनी मुश्किल होगी? दुनिया में करीब 200 करोड़ मुसलमान हैं। उनमें अगर 90 करोड़ मुस्लिम पुरुष हों तो उन सभी को इन महिलाओं का शुक्रगुजार होना चाहिए जो बलात्कार और यौन शोषण सहकर भी “मुस्लिम मेन की रक्षा” कर रही हैं।
पीड़िता ने अपने पहले बयान में Mee Too और We Too का कई बार प्रयोग किया है। उसे लगता है कि वह ऐसी पीड़िताओं के साथ मिलकर इस “पैट्रियार्की” का मुकाबला करेगी। समाज में हर कोई अपना WE डिसाइड करता है। मगर ज्यादातर ख्याली पुलाव जमीनी हकीकत के सामने दम तोड़ देते हैं। पीड़िता ने जिन 40 से ज्यादा लोगों को टैग किया था उन्हें WE समझकर ही टैग किया था मगर अब उसे पता चल गया होगा कि वे उसे अपने WE में कंसीडर करते हैं या नहीं!
मेरे लिए यह सदमे जैसा है कि उच्च शिक्षित और आत्मनिर्भर महिलाएँ भी किसी सोशल साइको ट्रैप में फँसकर अपने अप्रेशर का दमखम से बचाव कर सकती हैं।