दिल्ली। आज जो लोग 50 लाख रुपये एक रात में उड़ा रहे हैं, कल वही लोग अस्पताल में 5 लाख का इंतजाम नहीं कर पाते।
मुसीबत के वक्त न रिश्तेदार आते हैं, न डीजे वाला, न इवेंट मैनेजर। सिर्फ बैंक बैलेंस साथ देता है।मैंने पिछले पाँच-सात साल में दर्जनों घर ऐसे देखे हैं जो बेटी की शादी के बाद भी खड़े तो हैं, लेकिन उनमें “घरवाले” नहीं रह गए। ज़मीन गई, माँ के गहने गिरवी पड़ गए, नौकरी की सारी तनख्वाह EMI में चली गई, रात की नींद दवाइयों में और सम्मान पर “कर्जदार” का ठप्पा लग गया। एक शादी ने पूरा परिवार 15-20 साल पीछे धकेल दिया।पहले था सादगी का दौरगाँवों में सिर्फ तीन मौके सार्वजनिक होते थे – तिलक, हल्दी और बारात। बाकी सारी रस्में घर की चारदीवारी में, 10-15 अपने लोगों के बीच।
मंदिर में सुबह 11 बजे तक फेरे हो जाते थे, घर आकर 50-60 लोग खाना खाकर चले जाते थे। कुल खर्च? 50-70 हजार रुपये।
शादी हो जाती थी – खुशी से, शांति से, बिना किसी कर्ज के।अब शादी नहीं, “इवेंट” बन गई हैआज वही शादी एक इवेंट मैनेजमेंट कंपनी का प्रोजेक्ट बन चुकी है।
2025 के हिसाब से एक “साधारण” मध्यमवर्गीय शादी का ब्रेकअप कुछ यूं है:
सगाई (रेस्टोरेंट + 50 लोग) → ₹1.2–1.5 लाख
रिंग सेरेमनी (अलग से!) → ₹80 हजार–1 लाख
छेका/गोड़भराई → ₹50-80 हजार
तिलक (पूरे गाँव को खिलाना + टेंट + DJ) → ₹4–6 लाख
हल्दी (फिल्मी थीम + ड्रोन + फोटोग्राफर) → ₹2–3 लाख
मेहंदी + महिला संगीत (दो अलग फंक्शन) → ₹2.5–4 लाख
शादी का दिन
हॉल/फार्महाउस → ₹3–5 लाख
30-40 गाड़ियों का कन्वॉय → ₹1.5–2 लाख
बैंड-बाजा-घोड़ी-DJ-लाइट-पटाखे → ₹2–3 लाख
खाना (1000+ लोग) → ₹4–6 लाख
कपड़े-गहने-मेकअप → ₹5–8 लाख
रिसेप्शन (फिर वही सब दोहराओ) → ₹5–7 लाख
कुल: एक पक्ष का “साधारण” खर्च → ₹30-45 लाख
दोनों पक्ष मिलाकर → ₹60-90 लाख
ऊपर से दहेज → ₹10-20 लाख अतिरिक्तअब आम आदमी का हिसाब देखिए:
महीने की कमाई: ₹50-70 हजार
यानी 10-12 साल की पूरी सैलरी एक रात में उड़ा दो।नतीजा क्या हुआ?
ज़मीन बिक गई
माँ के गहने गिरवी पड़ गए
बाप रात-रात भर नींद की गोलियाँ खाता है
बेटी की विदाई के बाद माँ खुशी से नहीं, कर्ज के डर से रोती है
टीवी सीरियल और इंस्टाग्राम रील्स ने हमें यही सिखाया है कि “शादी बड़ी नहीं, इवेंट बड़ा होना चाहिए”। और हम बेवकूफ बनकर वही कर रहे हैं।सच तो ये है…
शादी का असली गवाह मंदिर का शिवलिंग होता है, इंस्टाग्राम की रील नहीं।
असली आशीर्वाद माँ-बाप का हाथ सिर पर होता है, ड्रोन शॉट नहीं।
शादी के बाद का सबसे बड़ा सुकून कर्जमुक्त नींद होती है, 5-सितारा रिसेप्शन नहीं।
मेरा प्रस्ताव – वापस उसी पुरानी सादगी की ओर
सगाई घर पर, 15-20 सबसे करीबी लोग
शादी मंदिर में, सुबह 11 बजे तक फेरे
सिर्फ 10-15 अपने लोग
शाम को मोहल्ले/सोसायटी/गाँव में सामूहिक भोज – सबको बुलाओ, दिल खोलकर खिलाओ
कुल खर्च? ₹2-3 लाख।
सम्मान बचेगा, ज़मीन बचेगी, नींद बचेगी, बेटी का भविष्य बचेगा।जो लोग आज 50 लाख उड़ा रहे हैं, कल वही लोग अस्पताल में 5 लाख का इंतजाम नहीं कर पाते।
मुसीबत में न डीजे वाला आता है, न रिश्तेदार। सिर्फ बैंक बैलेंस काम आता है।अगर आप भी इस दिखावे से थक चुके हैं, तो आज से ठान लीजिए –
अगली पीढ़ी की शादी मंदिर में होगी,
10 अपने लोगों के बीच होगी,
और बचा हुआ सारा पैसा बेटी के नाम RD या म्यूचुअल फंड में डाल देंगे।इस लेख को उस हर पिता तक पहुँचाइए
जो आज रात सोते वक्त छत की ओर देखकर सोच रहा है –
“बेटी की शादी कैसे होगी…?”आज का सबसे बड़ा पुण्य यही है –
किसी एक पिता को कर्ज के बोझ से बचा दो।



