शशि थरूर को भेजना: एक पत्थर से कई निशाने?

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मोदी सरकार ने हाल ही में हुए तीन दिनों के भारत-पाक संघर्ष और पहलगाम नरसंहार का बदला लेने के बाद एक अभूतपूर्व राजनयिक पहल शुरू की है, जो भारत के इतिहास में एक निर्णायक मोड़ साबित होती दिख रही है।

जानकारों को लग रहा है कि मुख्य विपक्षी दल राहुल गांधी की कांग्रेस पार्टी की दुविधा, खासतौर पर शशि थरूर का बढ़ता कद, दिक्कतों का पिटारा खोलेगी।

22 अप्रैल, 2025 को जम्मू-कश्मीर में 26 निर्दोष पर्यटकों की हत्या केवल आम नागरिकों पर हमला नहीं था, बल्कि भारत की संप्रभुता और दृढ़ता को चुनौती थी।

ऑपरेशन सिंदूर के तहत, भारत ने पाकिस्तान और पाक-अधिकृत कश्मीर में आतंकी ठिकानों पर सटीक सैन्य कार्रवाई करके साफ संदेश दिया: अब भारत सीमा पार से आतंकवाद बर्दाश्त नहीं करेगा।

लेकिन असली मास्टर स्ट्रोक, भाजपा सरकार ने सैन्य कार्रवाई के साथ-साथ एक जोरदार राजनयिक अभियान चलाकर खेला।

सात अखिल दल प्रतिनिधिमंडलों को 33 देशों में भेजकर, भारत के खिलाफ झूठे प्रचार का जवाब दिया गया और भारत का पक्ष एकजुट होकर रखा गया।

इस पहल में विपक्ष के बड़े नेताओं—जैसे शशि थरूर, असदुद्दीन ओवैसी, कनिमोझी करुणानिधि और सलमान खुर्शीद—को बीजेपी प्रतिनिधियों के साथ शामिल करना, भारत की एकजुटता का प्रमाण है।

इतने बड़े पैमाने पर कभी भी ऐसा समन्वित प्रयास नहीं हुआ, जिसमें इंदिरा गांधी द्वारा बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के समय जयप्रकाश नारायण को समर्थन जुटाने भेजना या अटल बिहारी वाजपेयी को यूएन में भारत का पक्ष रखने भेजना भी शामिल हो।

विभिन्न राजनीतिक आवाज़ों को शामिल करने से पाकिस्तान के आतंकवाद को बढ़ावा देने और परमाणु ब्लैकमेल के जरिए जिम्मेदारी से बचने की कोशिशों के खिलाफ राष्ट्रीय सहमति दिखाई दी है।

इस अभियान की सफलता पहले ही दिखने लगी है। कोलंबिया ने शशि थरूर की टीम से बातचीत के बाद अपना पाकिस्तान-समर्थक बयान वापस ले लिया, जिससे भारत की आतंकवाद के प्रति जीरो टॉलरेंस नीति स्पष्ट हुई।

ये प्रतिनिधिमंडल विदेशी सरकारों, मीडिया और प्रवासी भारतीयों से मिलकर पाकिस्तान के झूठे प्रचार का मुंहतोड़ जवाब दे रहे हैं।

यह सिर्फ कहानी बदलने की कोशिश नहीं, बल्कि पाकिस्तान को आतंकवाद की फैक्ट्री के रूप में बेनकाब करने का अभियान है—एक ऐसा देश जो पाप और नफरत से पैदा हुआ और अब आर्थिक तबाही और वैश्विक दबाव में घिरा है।

भारत की दृढ़ता सिर्फ राजनयिक स्तर तक सीमित नहीं है। ऑपरेशन सिंदूर जारी है, और सीमावर्ती राज्यों में मॉक ड्रिल से सैन्य तैयारियों का संकेत मिलता है। सिंधु जल समझौते का लाभ उठाकर पाकिस्तान पर दबाव बढ़ाया जा रहा है, जो पहले से ही आर्थिक संकटों के दल दल में फंसा हुआ है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने साफ कहा है—आतंकियों को उनके ठिकानों में खत्म किया जाएगा। यह रुख सभी दलों के नेताओं ने अपनाया है। इस एकजुटता से साफ है कि भारत अब वैश्विक मंच पर अपनी ताकत दिखाने को तैयार है।

बीजेपी के संगठनात्मक बल ने देशभर में तिरंगा यात्राओं के जरिए जबरदस्त देशभक्ति की लहर पैदा की है, जिसमें हिचकिचाते समूह भी शामिल हो रहे हैं। राष्ट्रीय जोश ने संदेह करने वालों और विपक्षी नेताओं को चुप करा दिया है, जो हमेशा सबूत मांगते रहते थे।

पब्लिक कॉमेंटेटर प्रोफेसर पारस नाथ चौधरी के मुताबिक “जहां पश्चिमी देश अक्सर पाकिस्तान को जवाबदेह ठहराने में ढील देते रहे हैं, वहीं नई दिल्ली का संदेश साफ है—भारत अब बिना किसी डर के जवाबी कार्रवाई करेगा। अमेरिका, खाड़ी देशों और अन्य राष्ट्रों के नेताओं से मुलाकातों में भारत से भेजी गईं डेलिगेशंस यह संदेश साफ तौर पर दे रहीं हैं कि आतंकवाद के खिलाफ यह सिर्फ भारत की नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की लड़ाई है।”

जाहिर है, भाजपा सरकार की रणनीति—सैन्य शक्ति, आक्रामक राजनय और राष्ट्रीय एकजुटता का मिश्रण—एक नए युग, और एक अभिनव मॉडल पेश करती है। भारत अब पीड़ित बनकर नहीं रहेगा, बल्कि पाकिस्तान को सबक सिखाने और अपने लोगों को आतंक से बचाने के लिए पूरी तरह तैयार है। साथ ही भारत को आत्म बल, स्वाबलंबन पर भरोसा करना होगा। समय पर कोई देश किसी के साथ खड़ा हुआ नहीं दिखेगा।

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Brij Khandelwal

Brij Khandelwal

Brij Khandelwal of Agra is a well known journalist and environmentalist. Khandelwal became a journalist after his course from the Indian Institute of Mass Communication in New Delhi in 1972. He has worked for various newspapers and agencies including the Times of India. He has also worked with UNI, NPA, Gemini News London, India Abroad, Everyman's Weekly (Indian Express), and India Today. Khandelwal edited Jan Saptahik of Lohia Trust, reporter of George Fernandes's Pratipaksh, correspondent in Agra for Swatantra Bharat, Pioneer, Hindustan Times, and Dainik Bhaskar until 2004). He wrote mostly on developmental subjects and environment and edited Samiksha Bharti, and Newspress Weekly. He has worked in many parts of India.

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