दिशोम गुरु: शिबू सोरेन की अमर गाथा

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दिल्ली। झारखंड के जननायक, ‘दिशोम गुरु’ शिबू सोरेन का 4 अगस्त 2025 को 81 वर्ष की आयु में दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में निधन हो गया। लंबे समय से किडनी की बीमारी और स्ट्रोक से जूझ रहे शिबू सोरेन ने आदिवासियों के हक और झारखंड के गठन के लिए जीवन समर्पित किया। उनके निधन पर पूरे देश में शोक की लहर है।

शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी 1944 को हजारीबाग (अब रामगढ़) के नेमरा गांव में हुआ था। उनके पिता सोबरन मांझी, एक शिक्षक थे, उनकी 1957 में महाजनों द्वारा हत्या ने शिबू के जीवन को बदल दिया। पढ़ाई छोड़कर उन्होंने महाजनी प्रथा के खिलाफ ‘धानकटनी आंदोलन’ शुरू किया, जिसने आदिवासियों को उनकी जमीन और सम्मान दिलाने में मदद की। 1972 में झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की स्थापना कर उन्होंने अलग झारखंड राज्य के लिए लंबा संघर्ष किया। उनकी मेहनत 2000 में रंग लाई, जब झारखंड राज्य बना।

तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री और आठ बार दुमका से लोकसभा सांसद रहे शिबू सोरेन ने केंद्र में कोयला मंत्री के रूप में भी योगदान दिया। हालांकि, चिरूडीह कांड और शशिनाथ झा हत्याकांड जैसे विवादों ने उनके करियर को प्रभावित किया, लेकिन वे हमेशा आदिवासी समुदाय की आवाज बने रहे।उनके समर्थक उन्हें ‘गुरुजी’ कहकर पुकारते थे, जो उनकी सादगी और जनता से जुड़ाव को दर्शाता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें “जमीनी नेता” बताते हुए शोक जताया, जबकि कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने उनके जल, जंगल, जमीन के लिए संघर्ष को याद किया। उनके बेटे, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा, “आज मैं शून्य हो गया हूँ।” झारखंड सरकार ने सात दिन के राजकीय शोक की घोषणा की।

शिबू सोरेन की विरासत झारखंड के हर कोने में बसी है। उनका संघर्ष, साहस और समर्पण आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा। अंतिम जोहार, दिशोम गुरु।

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