अयोध्या: तुलसीपीठाधीश्वर, रामभद्राचार्य जी महाराज का बयान कि “शूद्र पूजनीय हैं और ब्राह्मणों ने कभी उनका अपमान नहीं किया” एक गहन और विचारोत्तेजक संवाद प्रस्तुत करता है, जो समाज में व्याप्त कई भ्रमों को दूर करने की क्षमता रखता है। इस संदर्भ में, उन्होंने स्पष्ट किया कि शूद्रों का स्थान समाज में पूज्यनीय है, न कि तिरस्कृत। उन्होंने जोर देकर कहा कि ब्राह्मणों ने कभी शूद्रों का अपमान नहीं किया, बल्कि उनका सम्मान किया गया है।
रामभद्राचार्य जी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि शूद्रों को पूज्यनीय माना जाता है क्योंकि वे समाज के चरण हैं, न कि मुख। यहाँ ‘चरण’ का अर्थ है कि वे समाज की नींव हैं, जो इसे स्थिरता और मजबूती प्रदान करते हैं। उन्होंने बताया कि हर वर्ण का अपना महत्व है और शूद्र वर्ण का स्थान उतना ही आदरणीय है जितना कि अन्य वर्णों का।
इस संवाद में उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि ऐतिहासिक रूप से, ब्राह्मणों ने शूद्रों का अपमान नहीं किया, बल्कि उन्हें उनके कार्यों के अनुसार सम्मान दिया गया। उन्होंने कहा कि समाज में हर व्यक्ति का अपना स्थान है और उसे उसी के अनुसार देखा जाना चाहिए। यह बयान समाज में व्याप्त जातिगत भेदभाव और गलतफहमियों को दूर करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
रामभद्राचार्य जी का यह वक्तव्य न केवल हृदयस्पर्शी है, बल्कि यह हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि कैसे हम अपने समाज में एकता और समानता को बढ़ावा दे सकते हैं। उनका संदेश स्पष्ट है: शूद्र पूजनीय हैं और उन्हें समाज में उनके योगदान के लिए सम्मानित किया जाना चाहिए।
यह संवाद हमें यह समझाने में मदद करता है कि जाति का अर्थ केवल कार्य विभाजन है, न कि किसी का तिरस्कार। इसलिए, यह बयान समाज में व्याप्त कई भ्रमों को दूर करने की क्षमता रखता है और हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि कैसे हम एकता और समानता को बढ़ावा दे सकते हैं।
स्रोत : https://x.com/ShaliniKTiwari/status/1952256291390566886