SIR पर भ्रम का वातावरण ठीक नहीं, BLO का दर्द समझें

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~ कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल

भोपाल । के नाम पर अविश्वास, भ्रम का वातावरण तैयार करना किसी भी स्थिति में ठीक नहीं है। मुझे लगता है कि—हमारे निर्वाचन आयोग से निष्पक्ष और न्यूनतम संसाधनों में निरन्तर चुनाव करा पाना अन्यत्र कहीं संभव नहीं है। मैं ये दावे के साथ कह सकता हूं कि— आंशिक तौर पर भले कुछ अशुद्धियां सामने आ जाएं। लेकिन देश के चुनाव आयोग से बेहतर प्रबंधन किसी और देश के पास नहीं है। भारत जैसा विशाल देश और निरन्तर चुनाव। ये सब करा पाना इतना आसान नहीं है। जैसा हमारे यहां हो पाता है।

•ये तब है जबकि केवल चुनाव के समय निर्वाचन आयोग को कार्यकारी शक्तियां मिलती हैं। चुनाव के बाद अधीनस्थों के अतिरिक्त कोई दंडात्मक शक्तियां नहीं रहती हैं।

•इस बीच लगातार SIR से जुड़े कर्मचारियों की मौतों की ख़बरें आ रही हैं। वो डरावनी हैं। भले BLO की मौतों के कारणों का वास्तविक पता नहीं चल पा रहा हो। लेकिन सच्चाई ये है कि BLO पर वर्क प्रेशर बहुत ज़्यादा है। इससे इनकार नहीं किया जा सकता है।

मेरे पिताजी मध्यप्रदेश सरकार के शिक्षा विभाग में शिक्षक थे। इसके अतिरिक्त उनके पास BLO का भी सरकार की ओर से अतिरिक्त दायित्व था। इस कारण मैंने उनकी समस्याओं को बेहद क़रीब से देखा है। जब भी चुनाव का समय आता था। साल भर पहले से लगातार उनकी मीटिंग्स का दौर शुरू हो जाता था।

•डोर टू डोर हर घर जाना। मतदाता सूची में नए नाम जोड़ना। दावा-आपत्तियां स्वीकार करना। मृत लोगों के नाम हटाना। कभी नया फोटो अपडेट करना। कभी आधारकार्ड और मोबाइल नंबर फीड करना। संबंधित ऐप में डाटा अपडेट करना। ऑनलाइन आए फॉर्म को जांच-परख कर अप्रूवल देना। निर्वाचन कार्यालय से वोटर आईडी कार्ड लाकर वितरण करना। वो ये सारे कार्य अध्यापन कार्य के साथ ही पूरे करते थे। पूरी प्रक्रिया के दौरान सारे अवकाश कैंसल रहते थे। यहां तक कि रविवार भी।

•ऊपर से निर्वाचन आयोग की किसी भी स्तर की मीटिंग का ख़ौफ अलग रहता था। एक मीटिंग में अगर BLO नहीं पहुंच पाता है तो तुरंत ‘कारण बताओ नोटिस’ जारी हो जाता है। यानी कार्रवाई की तलवार हर वक्त उस पर लटकती रहती है। ऊपर से कोई सनकी नोडल/ सेक्टर/ जिला अधिकारी हो तो— आप प्रेशर का अंदाजा नहीं लगा सकते। नोटिस के बाद अब BLO लिखित और मौखिक स्तर पर संबंधित वरिष्ठ अधिकारियों के पेशी में दौड़ता फिरे। अपने सही होने की गवाही देता रहे। याकि अगर बहुत ज्यादा टेक्नो फ्रेंडली न हो तो व्यवस्था का दंड भुगते।

वहीं अगर एक नाम के—दो लोग हों और धोखे से किसी का नाम कट जाए। याकि पिता का नाम ग़लत लिख जाए तो संबंधित BLO की नौकरी ख़तरे में आ जाती है। जबकि उसकी नियुक्ति चुनाव आयोग में नहीं बल्कि शिक्षा विभाग या अन्य विभागों में होती है।

•ऊपर से मतदाता महोदय महान रहते हैं। एक घर के सभी सदस्यों से जुड़ी सभी जानकारियां फीड करने/ अपडेट करने के लिए BLO को न जाने कितनी मशक्कत करनी पड़ती है। ऊपर से डेडलाइन में कार्य पूरा करने का अलग दबाव रहता है। कई लोग तो ऐसे होते हैं जो कई जगह नाम जुड़वाए होते हैं। जो कि कानून अपराध है। बावजूद इसके अगर BLO इस आधार पर तथ्यात्मक जानकारी के साथ संबंधित के नाम काटने का प्रपत्र भर दे..तो शिकायतों का अंबार और जवाब देते-देते थक जाए।

•फिर जब चुनाव आता है तो घर-घर वोटिंग पर्चियां पहुंचाना । चुनाव के दिन पोलिंग टीम की समुचित व्यवस्था करना। बुजुर्गों और दिव्यांगों के घर जाकर आम लोगों के मतदान से पहले उनकी मतदान की प्रक्रिया पूरी करवाना। चुनाव शुरू होने से लेकर चुनाव टीम रवाना होने तक BLO का हर समय मौजूद रहना। ये सब झमेले झेलने पड़ते हैं। यानी BLO सबसे निरीह प्राणी होता है।

अब आपको BLO का मानदेय बताऊं? संभवतः जब पिताजी के पास ये दायित्व था । उस समय BLO कार्य के लिए सालाना 12 हज़ार से 18 हज़ार रुपए निर्वाचन आयोग की ओर से आता था। जोकि सालाना वाहन के पेट्रोल खर्च के बराबर नहीं रहता था। अथक परिश्रम। हर समय मानसिक तनाव। ये सब मामूली बात थी। पिताजी तो निर्वाचन के समय अपना मोबाइल फोन भी हम बच्चों के हाथों नहीं लगने देते थे। उन्हें लगता था कि कहीं कोई गड़बड़ी न कर दें।

अब, जबकि SIR जैसी विशेष प्रक्रिया चल रही है। उस वक्त आप BLO के ऊपर आ रहे मानसिक प्रेशर का सहज ही अंदाज़ा लगा सकते हैं। ऐसे में ज़रुरी ये है कि इस अभियान में पर्याप्त सहयोग दीजिए। निर्वाचन आयोग को भी BLO के प्रति लचीला व्यवहार करने की आवश्यकता है। उनकी समस्याओं और वस्तुस्थितियों के समझें। वरिष्ठ अधिकारी डेडलाइन और आंकड़ों के लिए प्रेशर न बनाएं। क्योंकि ज़मीन पर आप जैसे आदेश देने वाले महारथी नहीं हैं। बल्कि अपनी नौकरी को दांव में लगाकर काम करने वाले समर्पित लोग हैं। जो हर तरह की समस्याओं के बावजूद महत्वपूर्ण कार्य में तन्मयता से जुटे हैं। कुछ दिनों पहले ही पिताजी ने हम सभी के संबंधित रिकॉर्ड मंगाकर — अपने शिक्षक साथी रहे BLO को दिया है। SIR की प्रक्रिया पूरी की है।

•इन सब बातों के कहने का आशय ये भी है कि — जो लोग SIR के नाम पर हाय तौबा मचाए हुए हैं। वो निर्वाचन आयोग के सबसे अंतिम लेकिन सबसे मज़बूत स्तंभ यानी BLO की वर्तमान स्थिति का अंदाजा नहीं लगा सकते हैं। वो किन परिस्थितियों में मोर्चा संभाले हुए हैं। 4 नवंबर से जबसे SIR प्रक्रिया शुरू हुई है। BLO चैन से सोए नहीं होंगे। ऐसे में SIR का विरोध करने वाले क्या देश की सांविधानिक व्यवस्था को कठघरे में खड़ा नहीं कर रहे हैं? क्या ये लोग मानसिक दबाव नहीं बना रहे हैं?

ऊपर से राहुल गांधी और कांग्रेस जैसी पार्टियों की अराजक मानसिकता के क्या कहने हैं। जो जनता की ओर से बारंबार ख़ारिज होने के बाद अपनी नाकामी का ठीकरा चुनाव आयोग पर फोड़ रहे हैं। लोगों के अंदर हर सांविधानिक संस्थाओं के प्रति अविश्वास का वातावरण तैयार कर रहे हैं। क्या ये किसी के हिसाब से लोकतंत्र के लिए सही है? ये कौन लोग हैं जो हर सांविधानिक संस्था को कटघरे में खड़ा कर, संविधान की दुहाई देते हैं? क्या ये कभी संविधान के रक्षक हो सकते हैं? राहुल गांधी वही हैं न जो भारत निर्वाचन आयोग की प्रक्रिया से जनता द्वारा जनप्रतिनिधि चुने गए हैं। लेकिन दूसरी ओर उसी चुनाव आयोग के ख़िलाफ़ ज़हर उगल रहे हैं। क्या ये दोहरा मापदंड नहीं है?

इन्हीं कारणों के चलते, आप मानें या न मानें लेकिन BLO पर निर्वाचन कार्य से अधिक प्रेशर राहुल गांधी जैसे ग़ैर ज़िम्मेदार नेताओं ने बना रखा है। आधे लोगों को ये भय है कि – क्या पता कब राहुल गांधी सरीखे नेता और उनके अनुयायी। किसी मामूली भूल के लिए भी BLO की शिकायत लेकर पहुंच जाएं। फिर निर्वाचन आयोग तो नोटिस जारी कर कार्रवाई की अनुशंसा कर ही देगा न !… क्या कोई BLO की पैरवी करेगा?

ऐसे में ये नितांत आवश्यक है कि निर्वाचन आयोग SIR के लिए पर्याप्त समय दे। अपने BLO और इस प्रक्रिया से जुड़े समस्त अधिकारियों और कर्मचारियों की मानसिक सेहत का ध्यान दे। साथ ही राष्ट्र यज्ञ में हर व्यक्ति अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाए। सहजता-सरलता के साथ पूरी प्रक्रिया में BLO का सहयोग करे। क्योंकि ये केवल SIR नहीं है बल्कि राष्ट्र के नागरिकों के सांविधानिक अधिकारों की गारंटी है। घुसपैठियों और कालनेमियों के मुखौटों को नोंच फेंकने का सशक्त माध्यम है। एक राष्ट्रभक्त नागरिक का कर्तव्य निभाना हमारा प्रथम कर्तव्य है। ऐसे में SIR की प्रक्रिया ख़ुद पूरी कीजिए और सभी से आग्रह कीजिए।

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