सोशल मीडिया ने पत्रकारिता और सार्वजनिक संवाद को नया रूप दिया है, लेकिन यह एक ऐसी विषाक्त संस्कृति को भी जन्म दे रहा है, जो पत्रकारों की विश्वसनीयता को चुनौती देती है। रवीश कुमार, अजीत अंजुम और आरफा खानम जैसे पत्रकार, जो कभी सामाजिक मुद्दों पर अपनी बेबाक राय और गहन विश्लेषण के लिए पहचाने जाते थे, आज विवादों के घेरे में हैं। इनके समर्थकों का एक वर्ग, विशेष रूप से सोशल मीडिया पर, आलोचना के बजाय गाली-गलौज और अपमानजनक भाषा का सहारा लेता है। यह व्यवहार न केवल इन पत्रकारों की छवि को धूमिल करता है, बल्कि उन्हें राजनीतिक दलों, खासकर कांग्रेस आईटी सेल, के एजेंट के रूप में प्रस्तुत करता है, जिससे उनकी निष्पक्षता पर सवाल उठते हैं।
रवीश कुमार ने पहले सोशल मीडिया पर मिलने वाली अपमानजनक टिप्पणियों की शिकायत की थी। आज स्थिति और गंभीर हो चुकी है। उनके नाम और तस्वीरों का दुरुपयोग कर फर्जी अकाउंट्स बनाए जा रहे हैं, जो गालियां देने के साथ-साथ फर्जी खबरें भी फैलाते हैं। पहले रवीश गुप्त रूप से कुछ राजनीतिक सामग्री साझा करते थे, लेकिन अब वे खुलकर कांग्रेस आईटी सेल से जुड़े कंटेंट को बिना किसी संकोच के प्रचारित करते हैं। यह विडंबना है कि वे दूसरों को ‘गोदी मीडिया’ का तमगा देते हैं, जबकि उनकी अपनी कार्यशैली पर पक्षपात के आरोप लग रहे हैं।
अजीत अंजुम और आरफा खानम के समर्थक भी इस प्रवृत्ति में पीछे नहीं हैं। उनके अनुयायी अक्सर वैचारिक असहमति को व्यक्तिगत हमलों और अपशब्दों में बदल देते हैं। उदाहरण के लिए, अम्बरीश त्यागी जैसे नामों से बनाए गए फर्जी प्रोफाइल इन पत्रकारों की तस्वीरों का दुरुपयोग कर आपत्तिजनक सामग्री फैलाते हैं। यह न केवल उनकी विश्वसनीयता को कमजोर करता है, बल्कि समाज में उनकी छवि को एकतरफा और पक्षपातपूर्ण बनाता है, जिससे वे पत्रकार कम और राजनीतिक एजेंट अधिक नजर आते हैं।
रवीश और उनके सहयोगी पहले गालियों को सामाजिक संवाद का हिस्सा मानते थे। अनुराग कश्यप की फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर के संदर्भ में उन्होंने इसे सांस्कृतिक अभिव्यक्ति का हिस्सा बताया था। लेकिन जब उन्हें खुद ऐसी टिप्पणियों का सामना करना पड़ा, तब उन्होंने इसे अनुचित ठहराया। यह दोहरा मापदंड उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है। क्या वे अपने समर्थकों की विषाक्त भाषा और फर्जी अकाउंट्स के खिलाफ ठोस कदम उठाएंगे? क्या वे पुलिस में शिकायत दर्ज करेंगे या केवल सवाल उठाकर जवाबदेही से बचते रहेंगे?
सोशल मीडिया पर यह विषाक्त संस्कृति पत्रकारिता के मूल्यों को कमजोर कर रही है। रवीश, अजीत और आरफा को अपनी विश्वसनीयता बचाने के लिए इस मुद्दे का सामना करना होगा। उन्हें अपने समर्थकों के व्यवहार की निंदा कर, निष्पक्ष और संयमित संवाद को बढ़ावा देना होगा। अन्यथा, उनकी छवि एक स्वतंत्र पत्रकार के बजाय राजनीतिक एजेंट की बनी रहेगी।