सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जैसे ट्विटर, इंस्टाग्राम और टिकटॉक ने यौन सामग्री के प्रसार को आसान बनाया है। एक ओर, यह यौन शिक्षा और जागरूकता को बढ़ावा दे सकता है, वहीं दूसरी ओर, अनुचित या गैर-कानूनी सामग्री के प्रसार ने चिंता बढ़ाई है। नाबालिगों तक ऐसी सामग्री की पहुंच, साइबरबुलिंग, और ऑनलाइन यौन शोषण जैसे मुद्दे गंभीर चुनौतियां पेश करते हैं। उदाहरण के लिए, डीपफेक तकनीक का दुरुपयोग कर महिलाओं और हस्तियों की नकली अश्लील सामग्री बनाई जा रही है, जो गोपनीयता और सम्मान का उल्लंघन करती है।

सोशल मीडिया पर सेक्स से जुड़े विवाद अक्सर नैतिकता और स्वतंत्रता के बीच टकराव को दर्शाते हैं। जहां कुछ लोग इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा मानते हैं, वहीं अन्य इसे सामाजिक मूल्यों के लिए खतरा मानते हैं। प्लेटफॉर्म्स की सामग्री नियंत्रण नीतियां भी विवादास्पद हैं। सख्त सेंसरशिप को अभिव्यक्ति का दमन माना जाता है, जबकि ढीली नीतियां अनुचित सामग्री को बढ़ावा दे सकती हैं। इसके अलावा, सोशल मीडिया पर यौन उत्पीड़न के आरोपों ने #MeToo जैसे आंदोलनों को जन्म दिया, जिसने समाज में बदलाव की मांग को तेज किया। हालांकि, इन प्लेटफॉर्म्स पर झूठे आरोपों और ट्रोलिंग की समस्या भी उभरी है, जो व्यक्तियों की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाती है।
इस चुनौती से निपटने के लिए सरकारों, तकनीकी कंपनियों और उपयोगकर्ताओं को मिलकर काम करना होगा। सामग्री नियंत्रण के लिए पारदर्शी नीतियां, उपयोगकर्ता जागरूकता, और सख्त कानूनी कदम आवश्यक हैं। साथ ही, डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देकर सोशल मीडिया को सुरक्षित और जिम्मेदार मंच बनाया जा सकता है।



