कांग्रेस की आईटी सेल सोशल मीडिया पर अपनी मौजूदगी मजबूत करने में जुटी है। यह टीम समय-समय पर अपनी ताकत का प्रदर्शन करती रहती है। हाल ही में एक युवक की टिप्पणी को लेकर कांग्रेस समर्थकों ने सोशल मीडिया पर हंगामा खड़ा किया। युवक ने माफी मांग ली, लेकिन कुछ कांग्रेसी कार्यकर्ता उसकी नौकरी खत्म करने की मांग पर अड़े रहे।
युवक की टिप्पणी आपत्तिजनक थी, लेकिन ऐसी भाषा का इस्तेमाल कई अन्य लोग भी करते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ कांग्रेसी नेताओं और समर्थकों की भाषा भी अक्सर विवादास्पद होती है, पर उस पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता। यह दिखाता है कि कई बार मुद्दा भाषा से ज्यादा शक्ति प्रदर्शन का होता है।
कांग्रेस के सोशल मीडिया रणनीतिकारों में कई पत्रकार और प्रभावशाली हस्तियां शामिल हैं। ये लोग संगठित रूप से पार्टी के पक्ष में कैंपेन चलाते हैं। उदाहरण के तौर पर, हाल ही में गुजरात त्रासदी के बीच प्रधानमंत्री की यात्रा को लेकर कांग्रेस आईटी सेल ने सोशल मीडिया पर आलोचना का अभियान चलाया। दूसरी ओर, राहुल गांधी की रेलवे स्टेशन यात्राओं को लेकर बनाई गई रील्स पर ऐसी आलोचनाएं कम ही दिखती हैं।
‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान भी कांग्रेस ने चुनिंदा प्रभावशाली लोगों को प्रचार के लिए चुना। इस दौरान कुछ पत्रकारों ने उत्साह में यात्रा से जुड़े छोटे-छोटे पहलुओं पर भी विस्तृत कवरेज की।
वहीं, बीजेपी और जेडीयू जैसे दल सोशल मीडिया पर उतने प्रभावी नहीं दिख रहे। बीजेपी का ‘भूलेगा नहीं बिहार’ अभियान अपेक्षित संवेदनशीलता और गहराई से खाली रहा। ऐसे अभियानों को प्रभावी बनाने के लिए गंभीर मुद्दों को भावनात्मक और तथ्यपरक तरीके से प्रस्तुत करना जरूरी है।
सोशल मीडिया पर कांग्रेस की रणनीति फिलहाल बीजेपी से आगे दिखती है। कई पत्रकार और प्रभावशाली लोग कांग्रेस के पक्ष में सक्रिय हैं। कुछ ने तो इसके लिए अपनी नौकरियां तक छोड़ दीं। दूसरी ओर, राजद जैसे दल भी सोशल मीडिया की ताकत को समझ चुके हैं और आगामी चुनावों के लिए सक्रियता बढ़ा रहे हैं।
आज की हकीकत यही है कि सोशल मीडिया पर जनता सब समझ रही है। कोई भी ‘निष्पक्षता’ का मुखौटा ज्यादा देर नहीं पहन सकता। चाहे कांग्रेस हो या बीजेपी, दोनों के समर्थक अपनी रणनीतियों के साथ सक्रिय हैं, लेकिन जनता की नजर इन सब पर है।