जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा मिला, जो दशकों पुरानी मांग का समाधान था। यह कदम लद्दाख की आकांक्षाओं को पूरा करने का प्रतीक था, लेकिन सामाजिक कार्यकर्ता और शिक्षाविद् सोनम वांगचुक की गतिविधियों ने धीरे-धीरे संदेह के घेरे में आना शुरू कर दिया। 2019 से 2025 तक की घटनाओं का विश्लेषण दर्शाता है कि वांगचुक की कार्रवाइयां शांतिपूर्ण मांगों से आगे बढ़कर राजनीतिक महत्वाकांक्षा, विदेशी संपर्कों और हिंसा भड़काने की दिशा में मुड़ गईं।
अनुच्छेद 370 हटने के बाद, आभार से असंतोष तक
अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण के बाद, 5 अगस्त 2019 को लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने का फैसला आया। वांगचुक ने तत्कालीन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद देते हुए ट्वीट किया: “लद्दाख का लंबे समय से चला आ रहा सपना पूरा हुआ। 30 साल पहले 1989 में लद्दाखी नेताओं ने केंद्र शासित प्रदेश की मांग की थी।” यह बयान उनकी प्रारंभिक समर्थन को दर्शाता है। लेकिन जल्द ही असंतोष उभरा। वांगचुक ने छठी अनुसूची (आदिवासी क्षेत्रों के लिए संवैधानिक सुरक्षा) की मांग उठाई, जो पूर्वोत्तर राज्यों में लागू है। यह मांग वैध लगती थी, लेकिन वांगचुक ने इसे राजनीतिक हथियार बनाया।
2020-2023 के बीच, वांगचुक ने शांतिपूर्ण आंदोलन चलाए, लेकिन 2024 में उनके बयान संदिग्ध हो गए। मार्च 2024 में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा, “यदि मांगें पूरी न हुईं तो लद्दाखी चीनी आक्रमण का प्रतिरोध नहीं करेंगे।” यह बयान न्यूजचेकर और अल जजीरा जैसी रिपोर्टों में उद्धृत है, जहां वांगचुक ने एक स्थानीय कॉमेडियन का हवाला देते हुए कहा कि लद्दाखी “चीन को रास्ता दिखा देंगे।” हालांकि उन्होंने इसे हास्य बताया, लेकिन सीमा क्षेत्र में यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा था। यह बयान चीनी आक्रामकता के संदर्भ में भारत की संप्रभुता पर सवाल खड़ा करता है।
विदेशी संपर्क और पाकिस्तान यात्रा
2025 में वांगचुक की गतिविधियां और संदिग्ध हो गईं। फरवरी 2025 में वे इस्लामाबाद (पाकिस्तान) गए, जहां ‘ब्रीद पाकिस्तान’ जलवायु सम्मेलन में भाग लिया। यह सम्मेलन डॉन मीडिया ग्रुप द्वारा आयोजित था, जो पाकिस्तान का प्रमुख मीडिया हाउस है और अक्सर भारत-विरोधी कंटेंट प्रकाशित करता है। वांगचुक ने ‘ग्लेशियर मेल्ट’ पर पैनल चर्चा में भाग लिया, जहां उन्होंने पीएम मोदी की ‘मिशन लाइफ’ पहल की सराहना की, लेकिन पाकिस्तानी मीडिया को ‘पर्यावरण चैंपियन’ बताया। द वायर और बूम लाइव की रिपोर्टों के अनुसार, यह यात्रा संयुक्त राष्ट्र के सहयोग से हुई, लेकिन लद्दाख डीजीपी एस.डी. सिंह जमवाल ने सितंबर 2025 में कहा कि वांगचुक का एक पाकिस्तानी पीआईओ (इंटेलिजेंस अधिकारी) से संपर्क था।
इसके तुरंत बाद, मार्च 2025 में पुणे में रिवरफ्रंट प्रोजेक्ट के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में भाग लिया। ओपइंडिया और द कम्यून की रिपोर्टों में कहा गया कि यह विरोध विकास परियोजनाओं को बाधित करने का प्रयास था। ये घटनाएं संयोग नहीं लगतीं। राष्ट्रीय एजेंसियों ने वांगचुक को एफसीआरए उल्लंघन के लिए चिह्नित किया। सितंबर 2025 में, गृह मंत्रालय ने वांगचुक की एनजीओ The Students’ Educational and Cultural Movement of Ladakh (SECMOL) का एफसीआरए लाइसेंस रद्द कर दिया। सीबीआई जांच में पाया गया कि 2021-22 में ₹3.35 लाख की अनियमित डिपॉजिट और ₹54,600 लोकल फंड्स एफसीआरए अकाउंट में डाले गए। The Himalayan Institute of Alternatives Ladakh (HIAL) पर भी ₹1.63 करोड़ विदेशी फंड्स के बिना रजिस्ट्रेशन के आरोप लगे।
अनिश्चितकालीन अनशन और हिंसा का राजनीतिक उद्देश्य
सितंबर 2025 में वांगचुक ने अनिश्चितकालीन अनशन शुरू किया, भले ही गृह मंत्रालय ने 6 अक्टूबर को वार्ता की घोषणा की हो। लेह एपेक्स बॉडी (LAB) और करगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA) के साथ बातचीत चल रही थी, जिसमें 45% से 84% तक आदिवासी आरक्षण, महिलाओं के लिए 33% कोटा और भोटी-पुर्गी भाषाओं की मान्यता जैसे लाभ मिल चुके थे। फिर भी, वांगचुक ने अनशन जारी रखा।
24 सितंबर 2025 को प्रदर्शन हिंसक हो गया। बीजेपी कार्यालय जला दिया गया, सीआरपीएफ वाहन फूंके गए, और 4 लद्दाखी युवाओं की मौत हो गई। 105 सुरक्षाकर्मी घायल हुए। गृह मंत्रालय के बयान के अनुसार, वांगचुक के ‘उत्तेजक बयानों’ ने भीड़ को भड़काया। उन्होंने नेपाल, बांग्लादेश और अरब स्प्रिंग का हवाला दिया, जो ‘जन जेड क्रांति’ की तरह परिवर्तन ला सकता है। वांगचुक ने कहा कि वे हिंसा के लिए जिम्मेदार नहीं, लेकिन वीडियो साक्ष्य दिखाते हैं कि उनके भाषणों ने युवाओं को उकसाया। कांग्रेस नेताओं की सोशल मीडिया अपीलों ने हिंसा को बढ़ावा दिया; बीजेपी आईटी हेड अमित मालवीय ने कांग्रेस काउंसलर फुंट्सोग स्टैंजिन त्सेपाग को भीड़ भड़काते वीडियो शेयर किया।
वांगचुक आधिकारिक प्रतिनिधिमंडल में शामिल होना चाहते थे, लेकिन अस्वीकृति के बाद कांग्रेस के करीब आ गए। उनकी पत्नी गितांजली अंगमो ने बीजेपी पर ‘भावनात्मक कथानक गढ़ने’ का आरोप लगाया, लेकिन हिंसा के दौरान वांगचुक का पीछे हटना, युवाओं से पहचान छुपाने की अपील और विदेशी आंदोलनों का संदर्भ संदेह पैदा करता है। वांगचुक ने शांति की अपील की, लेकिन देर से।
वार्ता से पीछे हटना और कांग्रेस का समन्वय
6 अक्टूबर 2025 को तय वार्ता से Leh Apex Body (LAB) और The Kargil Democratic Alliance (KDA) ने पीछे हटने की घोषणा की। यह वांगचुक की गिरफ्तारी और न्यायिक जांच की मांग पर आधारित था। लेकिन कांग्रेस का रोल स्पष्ट है। वांगचुक का परिवारिक कनेक्शन कांग्रेस से मजबूत है-उनके पिता सोनम वांगयाल जम्मू-कश्मीर सरकार में कांग्रेस मंत्री थे। 2025 में समन्वित बयान और आंदोलनों का तालमेल दिखाता है कि दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। LAHDC लेह चुनाव से पहले यह राजनीतिकरण स्पष्ट है।
कांग्रेस ने ऐतिहासिक रूप से लद्दाख की उपेक्षा की। 1989 की गोलीबारी में तीन लद्दाखियों की मौत हुई, लेकिन वांगचुक की चुप्पी बीजेपी पर हमलों तक सीमित रही। कांग्रेस नेताओं की अपीलों ने बीजेपी कार्यालयों पर हमले भड़काए। BJP ने शांति बनाए रखी, जबकि कांग्रेस और वांगचुक ने अराजकता फैलाई।
दावों पर सवाल: श्रेय हड़पना और संसाधनों का दुरुपयोग
वांगचुक के दावे भी संदिग्ध हैं। आइस स्तूपा का श्रेय वे लेते हैं, लेकिन मूल आविष्कारक चेन्जे अंगचुक को मान्यता नहीं दी। HIAL इंस्टीट्यूट बिना UGC/AICTE रजिस्ट्रेशन के संचालित था, और ₹37 करोड़ का प्रीमियम बकाया था। आरोप है कि भूमि का दुरुपयोग हुआ, और ‘बाहरी लोग लद्दाख का शोषण कर रहे हैं’ दावा बिना प्रमाण के भावनाओं को भटकाने का प्रयास था।
सरकार का विकास कार्यक्रम
इसके विपरीत, बीजेपी सरकार ने लद्दाख को मजबूत बनाया। 2019 से ₹32,143.16 करोड़ का निवेश हुआ, जिसमें ₹10,371.98 करोड़ जनजातीय कल्याण पर। IBEF और द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्टों के अनुसार, 1,670 किमी सड़कें, शिंकुन ला सुरंग (₹1,681 करोड़), 136 मोबाइल टावर, हनले डार्क स्काई रिजर्व जैसे पर्यटन केंद्र बने। 85% नौकरियों में स्थानीय आरक्षण, सीमा गांवों के लिए 4% अतिरिक्त, महिलाओं के लिए 33% कोटा। 3,800+ गैर-राजपत्रित और 200+ राजपत्रित पद भरे। 96% इंटरनेट कवरेज, सार्वभौमिक विद्युतीकरण, भोटी-पुर्गी भाषाओं की मान्यता। 1989 के शहीदों को सम्मानित किया।
फिर भी, बीजेपी कार्यालयों को निशाना बनाया गया। हिंसा में 105 सुरक्षाकर्मी घायल हुए, लेकिन BJP ने शांति चुनी। आगामी भूमि सुरक्षा निर्णयों से प्रभावित होने के डर से कांग्रेस और वांगचुक ने अशांति भड़काई, जो पर्यटन और आजीविका को खतरे में डालता है।
राजनीतिक महत्वाकांक्षा जनकल्याण से ऊपर
वांगचुक का अनशन और आंदोलन छठी अनुसूची की मांग को हाईजैक करने का हिस्सा थे, खुद को ‘नायक’ बनाने के लिए। पूर्व राजनीतिक असफलताओं के बावजूद, 24 सितंबर की हिंसा उनकी महत्वाकांक्षा को उजागर करती है। उनकी गतिविधियां भारत के खिलाफ खड़ी हो गईं-विदेशी संपर्क, उत्तेजक बयान, हिंसा के लिए उकसावा । बीजेपी ने वार्ता और विकास चुना, जबकि वांगचुक ने अराजकता। लद्दाख की शांति राजनीतिक लाभ के लिए दांव पर नहीं लगनी चाहिए। तथ्य साफ कहते हैं: वांगचुक की संदिग्धता अब सिद्ध है।