सुप्रिया का जन्म एक कांग्रेसी परिवार में हुआ। उनके पिता हर्षवर्धन, महाराजगंज से दो बार सांसद रहे, जिन्होंने जनता दल और कांग्रेस के टिकट पर अपनी सियासी पारी खेली। लखनऊ के लोरेटो कॉन्वेंट और दिल्ली विश्वविद्यालय से पढ़ाई पूरी करने वाली सुप्रिया ने पत्रकारिता में 18 साल बिताए। इंडिया टुडे, एनडीटीवी, और ईटी नाउ में कार्यकारी संपादक के रूप में उन्होंने खूब नाम कमाया। लेकिन 2019 में, जब कांग्रेस ने उन्हें महाराजगंज से लोकसभा टिकट दिया, तो पत्रकारिता का यह सितारा सियासत की कक्षा में आ गया। हार के बावजूद, सुप्रिया ने कांग्रेस की सोशल मीडिया रणनीति और प्रवक्ता की भूमिका में अपनी जगह बनाई।
पर सवाल यह है कि सुप्रिया को ‘पहली गोदी एंकर’ का तमगा कैसे मिला? दरअसल, उनकी पत्रकारिता की शैली में वह तीखापन और पक्षपात था, जो बाद में उनकी राजनीतिक भूमिका में और निखर गया। खबरों को ‘कांग्रेसमय’ रंग देने की उनकी कला ने उन्हें इस ‘गोदी’ खिताब का हकदार बनाया। राहुल गांधी के प्रति उनकी भक्ति इतनी प्रबल है कि माना जाता है कि वह उनके चरणों की छाया तक को चूमने को तैयार रहती हैं। एक बार तो राहुल के सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें धकियाया भी, लेकिन सुप्रिया का जुनून अडिग रहा।
आज सुप्रिया सोशल मीडिया पर ‘चरण-चुंबक’ जैसे तंज कसती हैं, लेकिन खुद उसी गोदी की गोद में बैठकर कांग्रेस का भोंपू बजाती नजर आती हैं। उनकी यह यात्रा पत्रकारिता से सियासत तक, और सियासत से ‘गोदी’ तक, एक व्यंग्यात्मक सबक है कि सत्ता की निकटता कैसे तटस्थता को निगल जाती है।