स्वयंसेवक निष्काम भाव से समाज जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में योगदान देते रहे हैं – दत्तात्रेय होसबाले जी

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जम्मू। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में “प्रमुख जन गोष्ठी” का आयोजन कन्वेंशन हॉल, कैनाल रोड, जम्मू में किया गया। कार्यक्रम का मुख्य विषय था “संघ की 100 वर्ष की यात्रा और भविष्य की दिशा”, जिसमें संघ की अब तक की यात्रा, समाज में उसकी भूमिका और आने वाले समय की दिशा पर विस्तार से विचार रखा गया।

कार्यक्रम में सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित रहे। सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश ताशी रबस्तन जी मुख्य अतिथि रहे। मंच पर प्रांत संघचालक डॉ. गौतम मैंगी जी तथा विभाग संघचालक सुरिंदर मोहन जी भी उपस्थित रहे। कार्यक्रम में स्वयंसेवक, बुद्धिजीवी, सामाजिक कार्यकर्ता, शिक्षाविद, विभिन्न व्यवसायों से जुड़े लोग तथा समाज के विविध वर्गों के प्रतिनिधि उपस्थित रहे।

कार्यक्रम की शुरुआत आमंत्रित अतिथियों के स्वागत के साथ हुई। तत्पश्चात मंचासीन अतिथियों ने भारत माता के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की।
मंचासीन अतिथियों का औपचारिक परिचय एवं स्वागत किया गया। आयोजकों ने संक्षेप में बताया कि आरएसएस के शताब्दी वर्ष के अवसर पर प्रमुखजन गोष्ठी संघ की सामाजिक व राष्ट्रीय यात्रा को समझने और भविष्य की दिशा पर विमर्श करने के उद्देश्य से आयोजित की गई है।

अपने उद्बोधन ने ताशी रबस्तन जी ने समाज में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की रचनात्मक भूमिका पर प्रकाश डाला। तत्पश्चात सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी ने “संघ की 100 वर्ष की यात्रा और भविष्य की दिशा” पर विस्तृत विचार रखे। उन्होंने डॉ. के.बी. हेडगेवार जी द्वारा संघ की स्थापना की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का उल्लेख करते हुए, संघ की क्रमिक विकास यात्रा का वर्णन किया।

सरकार्यवाह जी ने कहा कि गत सौ वर्षों में संघ ने दैनिक शाखाओं, सेवा कार्यों, शैक्षणिक एवं सामाजिक पहल के माध्यम से समाज के प्रत्येक वर्ग तक पहुंचने का प्रयास किया है। संघ की मूल दृष्टि हमेशा से एक मजबूत, आत्मविश्वासी, सांस्कृतिक रूप से जागरूक और संगठित भारत के निर्माण की रही है। स्वयंसेवक प्रायः मौन और निष्काम भाव से समाज जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में योगदान देते रहे हैं। भविष्य की दिशा पर उन्होंने अधिक से अधिक युवा वर्ग को सकारात्मक सामाजिक कार्यों से जोड़ने, सामाजिक समरसता तथा सभी प्रकार के भेदभाव से ऊपर उठकर समाज को एकसूत्र में पिरोने, पर्यावरण संरक्षण, परिवार संस्था की मजबूती और समुदाय आधारित जीवन मूल्यों, तथा प्रत्येक नागरिक के राष्ट्र निर्माण में सक्रिय योगदान की आवश्यकता पर बल दिया।

उन्होंने कहा कि संघ का शताब्दी वर्ष कोई अंतिम पड़ाव नहीं, बल्कि एक लंबे सफर का महत्वपूर्ण पड़ाव है, जिसके बाद समाज और राष्ट्र के लिए और अधिक समर्पण के साथ आगे बढ़ने की आवश्यकता है।

अंत में राष्ट्रगीत वंदे मातरम् के साथ प्रमुखजन गोष्ठी का समापन हुआ।

यह प्रमुखजन गोष्ठी प्रेरणादायी वातावरण में संपन्न हुई, जिसमें बड़ी संख्या में उपस्थित लोगों ने संघ की सौ वर्षीय यात्रा को समझते हुए, समाज एवं राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों के प्रति नवीन संकल्प व्यक्त किया।

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