विश्लेषण तवलीन सिंह के लेख का, दी राहुल गांधी को बड़े होने की नसीहत

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दिल्ली। वरिष्ठ पत्रकार तवलीन सिंह का जनसत्ता में प्रकाशित कॉलम (27 जुलाई, 2025) राहुल गांधी की राजनीतिक भूमिका और गांधी परिवार की लंबी सत्ता परंपरा पर एक कटु टिप्पणी प्रस्तुत करता है। लेख में तवलीन ने 1947 से लेकर अब तक गांधी परिवार के राजनीतिक वर्चस्व को रेखांकित किया है, जिसमें पंडित जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और सोनिया गांधी के योगदान का उल्लेख है। उनका तर्क है कि इस “राज परिवार” ने देश की राजनीति पर दशकों तक हावी रहकर एक प्रकार का वंशवाद स्थापित किया, जो अब खतरे में है। तवलीन के अनुसार, गुजरात से उभरे एक नेता (संभवतः नरेंद्र मोदी का संकेत) ने इस वर्चस्व को चुनौती दी, जिसके कारण गांधी परिवार की सत्ता कमजोर पड़ी है।

लेख में राहुल गांधी पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं कि वे संसद सत्रों को जानबूझकर बाधित करते हैं, क्योंकि उन्हें अपनी खोई हुई सत्ता बर्दाश्त नहीं है। तवलीन की भाषा में व्यंग्य और नसीहत का पुट है, जैसे “बस करो राहुल बाबा, अब बड़े हो गए हैं आप,” जो उनकी राजनीतिक परिपक्वता पर सवाल उठाता है। यह टिप्पणी उनके नेतृत्व शैली और कांग्रेस की रणनीति पर एक आलोचनात्मक दृष्टिकोण को दर्शाती है। तवलीन का मानना है कि राहुल की वर्तमान कार्यप्रणाली लोकतंत्र के लिए हानिकारक है और यह उनकी नकारात्मक छवि को और मजबूत कर रही है, जिसे समाज व्यापक रूप से “पप्पू” के रूप में देखता है।

हालांकि, लेख में तवलीन का दृष्टिकोण एकतरफा प्रतीत होता है। वे राहुल की विपक्ष के नेता के रूप में उठाई गई कुछ जायज मांगों (जैसे सामाजिक-आर्थिक जाति गणना) की अनदेखी करती हैं, जो वर्तमान सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश हैं। इसके अलावा, संसद अवरोध की जिम्मेदारी केवल कांग्रेस पर डालना भी संतुलित विश्लेषण नहीं है, क्योंकि विपक्ष और सत्तारूढ़ दल दोनों की भूमिका इसमें शामिल होती है। फिर भी, तवलीन की टिप्पणी समाज में राहुल की लोकप्रियता और प्रभाव को लेकर एक व्यापक धारणा को प्रतिबिंबित करती है।

राहुल गांधी के लिए मार्गदर्शन और सलाह

राहुल गांधी को “पप्पू” की छवि से उबरने के लिए गंभीर आत्ममंथन और रणनीतिक बदलाव की आवश्यकता है। यह छवि तब तक बनी रहेगी, जब तक वे अपनी राजनीतिक परिपक्वता और नेतृत्व क्षमता को साबित नहीं करते। समय (2025 तक) और जनता का धैर्य सीमित है—यदि 2029 के चुनाव तक उनकी छवि में सुधार नहीं हुआ, तो यह नकारात्मकता स्थायी हो सकती है।

कब तक ‘पप्पू’ रहेंगे?

राहुल की यह छवि तभी खत्म होगी, जब वे अपनी बात को तर्कसंगत और प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करेंगे। वर्तमान में, उनके विरोध प्रदर्शन और संसद अवरोध की रणनीति को जनता गंभीरता से नहीं लेती, क्योंकि यह सकारात्मक एजेंडा की कमी को दर्शाता है। यदि वे अगले दो वर्षों में (जुलाई 2027 तक) अपनी नीतियों को स्पष्ट करें और जमीन पर काम करें, तो यह छवि धूमिल हो सकती है। अन्यथा, 2030 तक यह उनकी पहचान बन जाएगी।

सुझाव :

सकारात्मक एजेंडा: संसद में अवरोध के बजाय, नीतिगत मुद्दों (जैसे बेरोजगारी, किसान कल्याण) पर ठोस प्रस्ताव लाएं और बहस को प्रोत्साहित करें।

क्षेत्रीय जुड़ाव: राष्ट्रीय स्तर के साथ-साथ राज्य स्तर पर सक्रिय रहें, खासकर जहां कांग्रेस मजबूत है (जैसे उत्तर प्रदेश, राजस्थान)।

छवि सुधार: मीडिया और जनता के साथ संवाद में संयम और आत्मविश्वास दिखाएं। भावनात्मक बयानों से बचें, जो उपहास का कारण बनते हैं।

टीम निर्माण: युवा और अनुभवी नेताओं को आगे बढ़ाएं, ताकि नेतृत्व की जिम्मेदारी केवल परिवार पर केंद्रित न रहे।

शिक्षा और संवाद: अपनी नीतियों को जन-जन तक पहुंचाने के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म और ग्रामीण क्षेत्रों में रोडशो का उपयोग करें।

राहुल को समझना होगा कि गांधी परिवार का इतिहास उनकी ताकत हो सकता है, लेकिन वर्तमान में जनता परिणाम चाहती है, न कि वंशवाद की विरासत। तवलीन की नसीहत को चुनौती के रूप में लें और अपनी कार्यशैली में बदलाव लाएं, ताकि 2027 तक एक नई, सशक्त छवि सामने आए।

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