पटना : बिहार, एक ऐसा राज्य जो कभी ‘जंगलराज’ के लिए बदनाम था, आज शिक्षा और संघर्ष की सफलता की नई कहानियाँ गढ़ रहा है। यहाँ का युवा अपनी मेहनत और लगन से न केवल देश बल्कि विदेशों में भी अपनी पहचान बना रहा है। कलेक्टर, डॉक्टर, इंजीनियर और प्रशासनिक अधिकारी बनकर बिहारी युवा मुंबई से लंदन तक परचम लहरा रहे हैं। ऐसे में, तेजस्वी यादव जैसे व्यक्ति, जिनके पास संसाधनों की कोई कमी नहीं थी, जिनके माता-पिता दोनों मुख्यमंत्री रहे, अगर नौवीं कक्षा भी पास न कर सके, तो यह न केवल उनकी व्यक्तिगत विफलता है, बल्कि बिहार के आकांक्षी युवाओं के लिए एक त्रासदीपूर्ण उदाहरण भी है।
तेजस्वी यादव ने हाल ही में एक इंटरव्यू में बताया कि वह सचिन तेंदुलकर से प्रेरित होकर क्रिकेटर बनना चाहते थे, जिसके चलते उनकी पढ़ाई से रुचि भटक गई। यह स्वीकारोक्ति अपने आप में चौंकाने वाली है। क्रिकेट जैसे प्रतिस्पर्धी क्षेत्र में असफलता कोई अपराध नहीं है, लेकिन उसका परिणाम यह होना कि बुनियादी शिक्षा भी पूरी न हो, यह एक गंभीर सवाल खड़ा करता है। बिहार का आम युवा, जो अक्सर सीमित संसाधनों में भी अपनी पढ़ाई पूरी करता है, क्या तेजस्वी जैसे व्यक्ति से प्रेरणा ले सकता है? जब उनके पास हर तरह की सुविधा थी, फिर भी वह शिक्षा के प्रति गंभीर क्यों नहीं रहे?
बिहार आज बदल रहा है। यहाँ शिक्षा अब केवल एक आवश्यकता नहीं, बल्कि एक हथियार है, जिसके दम पर युवा अपने सपनों को साकार कर रहे हैं। तेजस्वी का पढ़ाई छोड़ना न केवल शिक्षा का अपमान है, बल्कि उन लाखों युवाओं का भी, जो कठिन परिस्थितियों में पढ़ाई कर अपने भविष्य को संवार रहे हैं। एक नेता के रूप में, तेजस्वी से यह अपेक्षा थी कि वह बिहार के युवाओं के लिए एक आदर्श बनते, लेकिन उनकी यह कमी उनके नेतृत्व पर सवाल उठाती है।
क्या वह उन युवाओं की आकांक्षाओं को समझ सकते हैं, जिनके लिए शिक्षा ही एकमात्र रास्ता है?
बिहार की नई पहचान अब ‘जंगलराज’ नहीं, बल्कि शिक्षा और मेहनत की जीत है। ऐसे में, तेजस्वी जैसे लोगों को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। शिक्षा केवल डिग्री नहीं, बल्कि एक सोच है, जो नेतृत्व को दिशा देती है। बिहार के युवा अब पीछे मुड़कर नहीं देखते, और उन्हें ऐसे नेताओं की जरूरत है जो उनकी मेहनत और सपनों का सम्मान करें।