आगरा, जिसकी हर सांस में इतिहास की गाथाएं बसी हैं, आज अपनी ही धरोहरों की उपेक्षा का मार्मिक नज़ारा पेश कर रहा है। जिले के तमाम तालाब, घाट, बांध और नदियाँ—जो सदियों से इस क्षेत्र की शान रहे हैं—आज लापरवाही और अदूरदर्शिता का शिकार हो चुके हैं। ये जलाशय, जो कभी आगरा की रौनक और तहज़ीब का प्रतीक थे, आज कूड़े-कचरे, गंदगी और बदइंतज़ामी की निशानी बन गए हैं। ऐतिहासिक इमारतें, जिन्हें विश्व धरोहर का दर्जा हासिल है, इन जलस्रोतों की बदहाली से अपनी चमक खो रही हैं। यह सिर्फ पानी की बर्बादी की दास्तान नहीं, बल्कि हमारी तारीख़ और तहज़ीब के साथ एक बेदर्द अन्याय है। घाटों की टूटी सीढ़ियाँ, सूखे हुए तालाब, और प्रदूषित नदियाँ आगरा की रूह को ठेस पहुँचा रही हैं। सरकारी उदासीनता और आम लोगों की ग़ैर-ज़िम्मेदारी ने इन जलस्रोतों को मौत के मुँह में धकेल दिया है।
मुग़ल बादशाह अकबर की राजधानी फतेहपुर सीकरी अपनी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत के लिए दुनियाभर में मशहूर है। यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल इस इलाक़े की सबसे अहम जल संचयन संरचना ‘तेरह मोरी बांध’ आज बेइंतिहा उपेक्षा झेल रही है।
जानकार लोग बताते हैं, यह बांध, जो कभी पानी के संग्रहण और भूजल रिचार्ज का प्रमुख ज़रिया था, आज पूरी तरह सूखा पड़ा है। इस मानसून सीज़न में भी, जब आसपास के तालाब और पोखर पानी से लबालब भरे हुए हैं, तेरह मोरी बांध की दुर्दशा चिंता का सबब बनी हुई है। सिविल सोसाइटी ऑफ़ आगरा ने इसकी हालत का मुआयना किया है और इसके जीर्णोद्धार के लिए प्रशासन और पुरातत्व विभाग से फ़ौरी कार्रवाई की गुज़ारिश की है।
अकबर के दौर में बना तेरह मोरी बांध फतेहपुर सीकरी की जल प्रबंधन व्यवस्था का अहम हिस्सा था। यह बांध न सिर्फ़ स्थानीय जलग्रहण क्षेत्र से पानी जमा करता था, बल्कि राजस्थान से आने वाली खारी नदी के बहाव को भी नियंत्रित करता था। बांध में कुल 13 स्ल्यूस गेट (मोरी) लगे हुए थे, जिनमें से अब सिर्फ़ छह ही नज़र आते हैं, और वो भी बेकार पड़े हैं। 1964 तक यह बांध पूरी क्षमता के साथ काम कर रहा था, लेकिन देखरेख के अभाव में इसके गेट अब काम नहीं करते। नतीजतन, इस मानसून में भी बांध तक पहुँचने वाला पानी बिना रुके सीधे नदी में बह जा रहा है।
तेरह मोरी बांध का लगभग 24 वर्ग किलोमीटर का जलग्रहण क्षेत्र है, जो मानसून के दौरान काफ़ी पानी उपलब्ध कराता है। पाली पत्साल गाँव के पास बनी पुलिया से होकर बृजेंद्र सिंह मोरी बैराज का पानी बांध तक पहुँचता है। इस साल मानसून में कई बार इस पुलिया पर पानी का ज़बरदस्त बहाव देखा गया, लेकिन बांध के गेटों के ख़राब होने की वजह से पानी को रोका नहीं जा सका। इसके अलावा, बांध के जल डूब क्षेत्र में खरीफ़ की फ़सल उगाने के चलते स्थानीय किसान पानी की निकासी कर देते हैं, जिससे समस्या और बढ़ जाती है।
उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग के तृतीय मंडल, आगरा नहर के अधिशासी अभियंता के अधीन इस बांध का रखरखाव आता है, लेकिन इसकी मरम्मत के लिए कभी कोई ठोस पहल नहीं की गई। जनप्रतिनिधियों की ग़ैर-दिलचस्पी और सरकारी लापरवाही ने इस ऐतिहासिक धरोहर को बर्बादी के कगार पर पहुँचा दिया है।
तेरह मोरी बांध का महत्व सिर्फ़ जल संचय तक ही सीमित नहीं है। यह एक प्रमुख पर्यटन स्थल भी रहा है। 2006 तक फतेहपुर सीकरी के गेस्ट हाउस में वीआईपी मेहमानों को ठहराने का रिवाज़ था। बॉलीवुड में भी इस बांध का ख़ास स्थान रहा है। मशहूर अदाकार देवानंद की फ़िल्म ‘हम हैं राही प्यार के’ का एक गाना और ‘मेरे ब्रदर की दुल्हन’ में कैटरीना कैफ़ पर फ़िल्माया गया गीत यहीं शूट हुआ था। स्थानीय बॉलीवुड स्टार प्रमेंद्र पराशर भी इस बांध की ख़ूबसूरती के दीवाने थे।
सिविल सोसाइटी ऑफ़ आगरा के सचिव अनिल शर्मा, सदस्य राजीव सक्सेना और असलम सलीमी ने पत्साल, पनचक्की, चिकसाना और श्रृंगारपुर जैसे गाँवों का दौरा कर बांध की हालत का जायज़ा लिया। उन्होंने प्रशासन से माँग की है कि बांध के स्ल्यूस गेटों को तुरंत ठीक किया जाए और इसके लिए पुरातत्व विभाग से ज़रूरी इजाज़त ली जाए। सोसाइटी ने सुझाव दिया है कि बांध के 19 वर्ग किलोमीटर के कैचमेंट एरिया को जलधाराओं के ज़रिए व्यवस्थित किया जाए, ताकि मानसून का हर एक बूँद पानी बांध तक पहुँच सके। पहाड़ियों से निकलने वाली नालियों के वाटरशेड को भी संरक्षित करने की ज़रूरत है। ये काम मनरेगा के तहत किए जा सकते हैं, बशर्ते तकनीकी विशेषज्ञों की सलाह ली जाए।
तेरह मोरी बांध सिर्फ़ आगरा की ऐतिहासिक धरोहर नहीं, बल्कि जल संकट और भूजल रिचार्ज का एक कारगर हल भी है।