सुप्रसिद्ध क्राँतिकारी चंद्रशेखर आजाद और भगतसिंह सहित दर्जनों क्राँतिकारियों के बलिदान और जेल में डाल देने से भले क्राँतिकारी आँदोलन में गतिरोध आया हो पर भारत की स्वतंत्रता के लिये नौजबानों के जज्बे में कोई अंतर नहीं आया था। जिसकी झलक जंगल सत्याग्रह और झंडा सत्याग्रह ही नहीं भारत छोड़ो आँदोलन में भी दिखी । क्राँतिकारी गुलाब सिंह लोधी ऐसे क्राँतिकारी थे जिन्होंने सीने पर तीन गोलियाँ खाईं पर ध्वज को नीचे नहीं गिरने दिया ।
जंगल सत्याग्रह के बाद भारत में हुये आंदोलनों और प्रदर्शनों में सैंकड़ो नौजवानों का बलिदान हुआ है । आँदोलन को दबाने केलिये अंग्रेजों का दमन जैसे जैसे बढ़ा नौजवानों का रोष भी बढ़ा। वे हर कीमत पर माँ भारती को दासता से मुक्ति कराना चाहते थे । अपना यही जज्बा लिये क्राँतिकारी गुलाब सिंह ने लखनऊ के अमीनाबाद पार्क में झण्डा फहराने के दौरान अंग्रेजों गोली के आगे सीना तानकर खड़े हो गये और अपने प्राणों का बलिदान दिया ।
गुलाब सिंह लोधी का जन्म 1903 में उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के अंतर्गत ग्राम चन्दीकाखेड़ा फतेहपुर चैरासी में हुआ था । उनके पिता ठाकुर रामसिंह लोधी क्षत्रिय एक संपन्न किसान और प्रतिष्टित जमींदार थे । घर में प्रताप समाचार पत्र आता था जिससे घर के वातावरण में जाग्रति और राष्ट्रभाव था । पढ़ाई के दौरान ही उनका संपर्क रामप्रसाद बिस्मिल से हो गया था । इस नाते वे क्राँतिकारी आँदोलन से जुड़ गये । प काॅकोरी काँड के बाद क्राँतिकारियों की टोली बिखर गई और उत्साही नौजवान गुलाब सिंह कांग्रेस से जुड़ गए।
1935 में जुलूस निकालकर झंडा सत्याग्रह करने का निर्णय हुआ । इसके लिये लखनऊ का अमीनाबाद स्थल निर्धारित हुआ । इस सत्याग्रह में लखनऊ के अतिरिक्त आसपास से भी जत्थे आये थे । जिन्हें पुलिस लाठियाँ चला कर खदेड़ रही थी । उन्नाव जिले का जत्था ठाकुर गुलाब सिंह जी के नेतृत्व में गया था । पुलिस की बर्बरता देखकर वीर गुलाब सिंह लोधी ने अपनी टोली का आव्हान किया और हाथ में तिरंगा लेकर आगे बढ़े। सिपाहियों ने लाठियाँ चलाकर रोकना चाहा पर गुलाब सिंह न रुके । वे भारत माता का जयघोष करते हुये हाथ तिरंगा लेकर अमीनाबाद पार्क में घुस गये पुलिस पीछे दौड़ी। संभवतः उन्हें भविष्य का अनुमान हो गया था । वे अपनै साथ बैलों को बाँधने वाला कुन्दा अपने साथ ले गये थे । उस कुन्दे के सहारे उन्होंने फुर्ती से तिरंगा पेड़ पर लहरा दिया और जयघोष किया । जैसे ही अमीनाबाद पार्क के बाहर एकत्र लोगों ने पार्क के भीतर तिरंगा फहरते हुये देखा तो उन्हे भी जोश आया और सब जयघोष करते हुये पार्क के भीत, आने के लिये लपके । पहले पुलिस ने लाठीचार्ज करके भीड़ को अन्दर आने पर रोक रखा था किन्तु झंडा देखकर पुलिस की लाठी पर जोश भारी पड़ा और लोग पार्क के भीतर आने पर उमड़ पड़े। पुलिस ने गोली चलाना आरंभ किया । पहला फायर गुलाब सिंह के सीने पर किया । लगातार तीन गोलियाँ उनके सीने पर लगीं। और क्रांतिवीर गुलाब सिंह भारत माता की गोद में चिरनिद्रा के लिये सो गये ।
क्रांतिवीर गुलाब सिंह लोधी द्वारा तिरंगा फहराने की इस घटना और उनके बलिदान बाद अमीनाबाद पार्क का नाम झंडा वाला पार्क हो गया । और आगे चलकर स्वतंत्रता आंदोलन के लिये सभा स्थल भी हो गया । स्वतंत्रता के बाद इसी पार्क में बलिदानी गुलाब सिंह लोधी का स्मारक के रूप में प्रसिद्ध हुआ । केंद्र सरकार ने 23 दिसंबर 2013 को उनकी स्मृति में डाक टिकट भी जारी किया ।