इंदौर: प्रेस क्लब के चुनाव और राजनीति से दूर ही रहा हूं। लेकिन ये मज़बूती से मानता हूं कि प्रेस क्लब जैसी संस्थाओं की पत्रकारों के लिए महती आवश्यकता है। जो ज़माने की खबर रखते हैं उनकी खबर रखने वाला कोई तो हो!! इस तरह के संगठन पत्रकारों की बेहतरी के लिए और सामूहिक उपस्थिति के लिए आवश्यक हैं।
यों देश के अधिकांश प्रेस क्लब स्वार्थ, राजनीति और वर्चस्व की भेंट चढ़ गए। इसमें पैसे और रसूख के खेल ने बड़ी भूमिका निभाई। पर कुछ हैं जो मोटे तौर पर अपने मूल उद्देश्य पर कायम हैं।
आज इंदौर प्रेस क्लब के चुनाव थे। ये याद नहीं कि पिछली बार इस चुनाव के लिए कब वोट देने गया था। बीच में तो लंबे समय सदस्य ही नहीं था (वो कहानी फिर कभी)।
जिस तरह का प्रचार, जबर्दस्त फोन कॉल और आरोप – प्रत्यारोप चुनाव में देखने को मिले, ऐसा लगा कि पत्रकारों को ये परिपाटी बदलने की आवश्यकता है। आदर्श स्थिति तो ये है कि सहमति बन जाए। ना बने तो ऐसे चुनाव हों जो उनके लिए उदाहरण बनें जिनके बारे में हम दिन-रात लिखते रहते हैं।
वोट देने का अनुभव भी बहुत अच्छा नहीं था। मतपत्र पाकर उस पर मोहर लगाकर उसे मतपेटी तक पहुंचा देना किसी युद्ध को जीत लेने जैसा अनुभव था। कुल ९०० वोटर। उनमें से करीब ८०० वोट देने आए। दोपहर १२ से २ बजे के बीच सर्वाधिक भीड़ हो गई। इसे संभालने में व्यवस्था नाकाम रही। इसके लिए पहले सोचा जाना चाहिए था। ऐसी ही अव्यवस्था कहीं और होती तो वीडियो बनाकर, लाइव करके और ख़बरें लिखकर हम सब ही इन कमियों को उजागर कर रहे होते। इसीलिए खुद ही आत्म मंथन कर लें। इस सबसे सबक लेकर आगे बेहतर व्यवस्था सुनिश्चित की जा सकती है। खास तौर पर बुजुर्ग और महिला मतदाताओं को जिस तरह परेशान होना पड़ा, वो नहीं होना चाहिए था।
हाँ, वोट देने जाने का सबसे बड़ा हासिल ये रहा कि बहुत सारे पुराने साथियों, पत्रकारों, वरिष्ठजनों से मुलाकात हो गई। कई तो बहुत लंबे अरसे बाद मिले। सभी की गर्मजोशी और आत्मीयता ने सुकून दिया कि दूरी और मुलाकात ना होना रिश्तों की ऊष्मा को प्रभावित नहीं कर पाते।
उम्मीद है जो भी साथी जीतेंगे वो सब मिलकर उस प्रेस क्लब की प्रतिष्ठा को बढ़ाने का काम करेंगे जिसकी देश – दुनिया में अलग पहचान है।