मृणाल पांडेय, विनोद शर्मा, और मुकेश कुमार का सोशल मीडिया पर कांग्रेस की पैरवी और बीजेपी की आलोचना का अंदाज़ ऐसा है, मानो ये तीनों दिन-रात ट्वीट की माला जप रहे हों! इनके ट्वीट्स की रफ्तार और एकतरफा भक्ति देखकर कोई भी कयास लगा सकता है कि या तो कांग्रेस आईटी सेल से मोटी रकम इनके खाते में जा रही है, या फिर इन्होंने अपने हैंडल किराए पर चढ़ा दिए हैं! हर पोस्ट में बीजेपी को कोसने का ज़ोर और कांग्रेस को आसमान पर चढ़ाने का शोर ऐसा है, जैसे ये सुबह-शाम बस यही काम करते हों। इनके ट्वीट्स में तर्क की गहराई या विचार की सच्चाई ढूंढना बेकार है—बस एक ही राग: कांग्रेस अच्छी, बीजेपी बुरी!
इस ‘पेड़ सिपाहियों’ की फौज में यूट्यूब के कुछ सितारे भी शुमार हैं-अजीत अंजुम, रवीश कुमार, अभिसार शर्मा, साक्षी जोशी, आरफा खानम, संजय शर्मा, और पुण्य प्रसून वाजपेयी। इनके वीडियो और लाइव सत्रों का हाल वही है—बीजेपी को पानी पी-पीकर कोसना और कांग्रेस को ‘लोकतंत्र का मसीहा’ बताना। इनके चैनलों पर तथ्य कम, तमाशा ज़्यादा दिखता है। हर मुद्दे को ऐसा घुमाया जाता है कि कांग्रेस की हर गलती माफ़ और बीजेपी की हर सांस गुनाह! निष्पक्षता की तलाश इनके वीडियो में वैसी ही है, जैसे रेगिस्तान में पानी ढूंढना।
इन सिपाहियों की मेहनत देखकर लगता है, जैसे इन्हें कोई स्क्रिप्ट थमा दी गई हो—’बस यही बोलो, यही दिखाओ!’ ट्वीट्स हों या यूट्यूब वीडियो, एक ही सुर, एक ही ताल—कांग्रेस का गुणगान, बीजेपी का तिरस्कार। जनता हैरान है कि क्या ये दिल से भक्त हैं या वॉलेट से प्रेरित? इनके हर शब्द से लगता है, जैसे कोई ‘स्पॉन्सर्ड’ मिशन चल रहा हो। इनके वीडियो और ट्वीट्स की बाढ़ देखकर जनता बस इतना ही कहती है—’भाई, इतना जोश? कुछ तो गड़बड़ है!’ आखिर ये ‘पेड़ ट्वीट्स’ और ‘पेड़ टॉक’ के सिपाही कब तक यूं ही राग अलापेंगे?