यू. के. में बसा छोटा सा मिथिला

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मिथिला क्षेत्र से हजारो मील दूर यूनाइटेड किंगडम (यू .के ) की धरती पर एक सांस्कृतिक लघु मिथिला का उद्भव हो चूका है ।यू. के. में प्रवासी भारतीयों की संख्या का एक नगण्य हिस्सा मैथिल समाज से आता है। यह समाज सांस्कृतिक अस्तित्व के संकट के दौर से गुजर रहा था। आज से दसेक वर्ष पूर्व यहाँ की स्वास्थ्य सेवा में कार्यरत कुछ चिकित्सक मैथिलों ने एक बैठक की और जन्म हुआ मिथिला कल्चरल सोसाइटी (यू. के. ) का। यू. के. में मैथिल संस्कृति को पुनर्जीवित कर अगली पीढ़ी को उससे जोड़ कर रखना यही इस संस्था का लक्ष्य बना।

यू. के में भारतीय सांस्कृतिक जीवन पर केंद्रित , बी. एच. एफ. रेडिओ पर भारत की प्रमुख भाषाओँ पर आधारित कार्यक्रम प्रसारित होते हैं। उन्होंने मैथिल संस्कृति को उजागर करने वाली मैथिली मधुर गीतमाला नामक कार्यक्रम के प्रसारण का प्रस्ताव दिया।

मिथिला कल्चरल सोसाइटी यू. के. की एक अत्यंत मेधावी , उद्यमी और समर्पित सदस्या श्रीमती चंदा झा ने इसका उत्तरदायित्व लिया। इस क्षेत्र का कार्यभार संभालना चंदा जी के लिए सरल नहीं था। इनके पिता भारतीय नौसेना में थे। चंदा जी का जन्म विशाखापट्टनम में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा कोचीन में औरआगे की पढाई मुंबई में हुई । इन्होने अंग्रेजी साहित्य में स्नातकोत्तर किया। इनका विवाह श्री देवाचल झा जी से हुआ जो घर में मैथिली में ही बातें करना पसंद करते हैं। मगर तब भी चंदा जी मैथिली में बातचीत करना प्रारम्भ नहीं कर सकीं। जीवन में पहली बार मैथिल संस्कृति और भाषा से इनका परिचय अपने देश में नहीं होकर विदेश की धरती पर तब हुआ जब यह मिथिला कल्चरल सोसाइटी (यू. के.) की सदस्य बनीं। चंदा जी के शब्दों में , इनके हृदय में एक टीस सी उठती थी कि मैथिल होकर भी वह मैथिली नहीं बोलती थीं। मगर यू. के. आकर उन्होंने सप्रयास मैथिली सीखी।

इस उम्र में यह कार्य दुष्कर था। त्रुटिपूर्ण उच्चारण के लिए मन विचलित हो जाया करता था , मगर मैथिल समाज के साथियों का सहयोग इनका सम्बल बना। अब वह मधुर गीतमाला के थीम पर गुणवत्तापूर्ण गीतों का चुनाव करके गीतमाला बनातीं हैं। सभी गीतों को एक लड़ी में जोड़कर और शोध करके आलेख बनाती हैं , आलेख पर अभ्यास करके समय पर प्रसारण करती हैं और यह सारे कार्य बड़े ही मनोयोग से करती हैं। वह पति देवाचल जी, पुत्र प्रीत और मिथिला कल्चरल सोसाइटी (यू. के.) के मित्रों के प्रति इस कार्य में सहायता हेतु कृतज्ञ हैं।

पिछले एक वर्ष में चन्दा जी ने मुख्य पर्व -त्यौहार जैसे कि होली,दिवाली, दशहरा , के अतिरिक्त सामा -चकेवा, बरसाइत , जानकी नवमी, राम नवमी ,विवाह पंचमी, शिवरात्रि, जुड़ -शीतल , तिला संक्रांति ,वसंत पंचमी , जन्माष्टमी , रक्षा बंधन , चैतावर, मिथिला धाम , सावन, बरखा, वसंत , गाम – घर, इजोरिया, सिनेहिया, कागा, कोइली, पान , मखान , पाग, चूड़ा -दही, चौरचन, जगदम्बा , माँ भगवती, झुमका, साँझ – पराती, विरह, गणेश वंदना इत्यादि कितने ही सांस्कृतिक विषयों पर थीम गीतमाला प्रस्तुत कर चुकी हैं । इनकी गीतमाला के श्रोतागण यू. के., भारत , नेपाल, अमेरिका, पूर्वी एशिया, और यूरोप तक से हैं जहाँ से इन्हे प्रशंसा और शुभकामना के सन्देश मिलते हैं ।

इन्होने पं. कौशल झा द्वारा स्थापित दूर्वाक्षत मिशन मिथिलाक्षर अभियान (दिल्ली) के तहत मिथिलाक्षर लिपि सीखी और अब इसी संस्थान की कार्यकारिणी समिति में है।

चंदा जी से बातचीत में यह जान प्रसन्नता हुई कि वह यह कार्य माँ मैथिली और मैथिल संस्कृति की सेवा समझ कर कर रही हैं। अपने देश की मिट्टी पानी से दूर , विदेश की धरती पर मिथिला और मैथिली की सेवा में तत्पर मिथिला की इस बेटी की हम सराहना करते हैं और शुभकामनाएं देते हैं कि वह इसी तरह अपनी संस्कृति का दीपक जलाये रखें। यह दीपक एक दिन विदेश में मैथिल संस्कृति का प्रकाश पुंज बनेगा यही हमारी कामना, आशा और विश्वास है।

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