दिल्ली। 21 जुलाई 2025 को, भारत के उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने अचानक अपने पद से इस्तीफा दे दिया। यह घोषणा इतनी अप्रत्याशित थी कि इसने न केवल राजनीतिक गलियारों में, बल्कि आम जनता और मीडिया में भी हलचल मचा दी। धनखड़ ने अपने इस्तीफे में स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया, लेकिन सूत्रों और घटनाक्रमों के आधार पर यह स्पष्ट है कि इस इस्तीफे के पीछे की कहानी स्वास्थ्य से कहीं अधिक गहरी और जटिल है। यह लेख उस दिन के घटनाक्रम, पृष्ठभूमि, और संभावित कारणों का विश्लेषण करता है, जो धनखड़ के इस्तीफे तक ले गए।
20 जुलाई: एक भव्य पार्टी और संदिग्ध शुरुआत
इस्तीफे से ठीक एक दिन पहले, 20 जुलाई 2025 को, उपराष्ट्रपति आवास में एक भव्य पार्टी का आयोजन किया गया था। यह पार्टी धनखड़ की पत्नी के जन्मदिन के अवसर पर थी, जिसमें लगभग 800 मेहमान शामिल हुए। सूत्रों के अनुसार, इस आयोजन में पक्ष और विपक्ष के कई बड़े नेता शामिल थे, जिनमें आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल भी थे। इस पार्टी को देखकर कई लोगों को यह आभास हुआ कि यह केवल जन्मदिन का उत्सव नहीं, बल्कि एक तरह का ‘फेयरवेल’ समारोह था। इसमें उपराष्ट्रपति आवास के स्टाफ के सभी सदस्यों को भी आमंत्रित किया गया था, जो सामान्यतः असामान्य है। जयपुर से विशेष मिठाइयों का इंतजाम और विपक्षी नेताओं की मौजूदगी ने इस आयोजन को और रहस्यमय बना दिया।कहा जा रहा है कि धनखड़ इस पार्टी के जरिए भविष्य की राजनीतिक रणनीति के लिए नए रास्ते तलाश रहे थे। सूत्रों के मुताबिक, उन्होंने अपने पुराने मित्र और वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल के साथ संबंधों को फिर से सक्रिय किया था। इसके अलावा, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे के नेतृत्व में विपक्ष को भी ‘मैनेज’ करने की कोशिश की जा रही थी। यह सब उस समय हो रहा था, जब संसद का मानसून सत्र शुरू होने वाला था।
21 जुलाई: मानसून सत्र और विपक्ष के साथ गुप्त बैठक
21 जुलाई को मानसून सत्र का पहला दिन था। धनखड़ ने दिन की शुरुआत में राज्यसभा की कार्यवाही की अध्यक्षता की और बिजनेस एडवाइजरी कमेटी (बीएसी) की बैठक बुलाई। इस बैठक में केंद्रीय मंत्री जे.पी. नड्डा और संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू शामिल थे। दिन में सामान्य कार्यवाही के बीच, धनखड़ ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाया। उन्होंने विपक्ष के 68 सांसदों द्वारा समर्थित एक नोटिस को स्वीकार किया, जिसमें इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया गया था। यह प्रस्ताव जज के आवास से भारी मात्रा में नकदी बरामद होने के बाद लाया गया था। धनखड़ ने इस नोटिस को स्वीकार करते हुए सचिवालय को इसकी जांच के लिए निर्देश दिए।
हालांकि, यह कदम सरकार के लिए अप्रत्याशित था। सूत्रों के अनुसार, सरकार इस मामले में लोकसभा में एक समान प्रस्ताव लाकर भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी पहल को मजबूत करना चाहती थी। धनखड़ का विपक्ष के नोटिस को जल्दबाजी में स्वीकार करना सरकार को नागवार गुजरा, क्योंकि इससे सरकार की रणनीति को झटका लगा।
दोपहर में, धनखड़ ने विपक्षी सांसदों के साथ एक लंबी, बंद कमरे की बैठक की, जो कई घंटों तक चली। इस बैठक में क्या हुआ, यह स्पष्ट नहीं है, लेकिन सूत्रों का कहना है कि धनखड़ विपक्ष के साथ किसी बड़े कदम की योजना बना रहे थे। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने बाद में कहा कि धनखड़ ने सरकार और विपक्ष दोनों को समान रूप से निशाने पर लिया था और वह अगले दिन (22 जुलाई) को न्यायपालिका से संबंधित कुछ बड़े ऐलान करने वाले थे।
4:30 बजे की बैठक और सरकार का अनुपस्थित रहना
दोपहर 4:30 बजे, धनखड़ ने एक और बीएसी बैठक बुलाई, लेकिन इस बार जे.पी. नड्डा और किरेन रिजिजू ने इसमें हिस्सा नहीं लिया। सूत्रों के अनुसार, धनखड़ के कार्यालय को उनकी अनुपस्थिति की सूचना दी गई थी, लेकिन नड्डा और रिजिजू की गैरमौजूदगी ने धनखड़ को नाराज कर दिया। जयराम रमेश ने अपने एक ट्वीट में लिखा कि “1 बजे से 4:30 बजे के बीच कुछ बहुत गंभीर हुआ, जिसके कारण नड्डा और रिजिजू ने जानबूझकर बैठक में हिस्सा नहीं लिया।” यह घटना धनखड़ के इस्तीफे की ओर ले जाने वाली महत्वपूर्ण कड़ी मानी जा रही है।
रात 9:25: इस्तीफे की घोषणा
शाम को, धनखड़ ने अचानक राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपना इस्तीफा सौंप दिया। प्रोटोकॉल के विपरीत, यह इस्तीफा देर रात राष्ट्रपति भवन में जाकर दिया गया। राष्ट्रपति सचिवालय इस अचानक कदम से संकट में पड़ गया और आनन-फानन में मुलाकात का इंतजाम करना पड़ा। धनखड़ की सोशल मीडिया टीम ने उनके इस्तीफे की कॉपी तुरंत सोशल मीडिया पर डाल दी, जो सामान्य प्रक्रिया से हटकर थी। इस्तीफे में धनखड़ ने लिखा, “स्वास्थ्य कारणों और चिकित्सीय सलाह का पालन करने के लिए, मैं तत्काल प्रभाव से भारत के उपराष्ट्रपति के पद से इस्तीफा देता हूं।”
स्वास्थ्य या कुछ और?
धनखड़ के इस्तीफे के पीछे स्वास्थ्य कारणों को आधिकारिक तौर पर बताया गया, लेकिन इस पर बहुत कम लोगों ने भरोसा किया। मार्च 2025 में धनखड़ की एम्स, दिल्ली में एंजियोप्लास्टी हुई थी, लेकिन वह संसद में सक्रिय थे और उस दिन की कार्यवाही में भी पूरी तरह स्वस्थ दिखाई दिए। विपक्षी नेताओं, खासकर जयराम रमेश ने कहा कि इस इस्तीफे के पीछे “कहीं गहरे कारण” हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि धनखड़ का सरकार के साथ तनाव और उनकी न्यायपालिका के खिलाफ तीखी टिप्पणियां इस फैसले का कारण हो सकती हैं।
अमेरिकी उपराष्ट्रपति जे.डी. वेंस का दौरा और विवाद
सूत्रों के अनुसार, धनखड़ का व्यवहार उस समय से बदलना शुरू हुआ, जब अमेरिकी उपराष्ट्रपति जे.डी. वेंस भारत दौरे पर आए थे। इस दौरे के दौरान धनखड़ ने वेंस से मुलाकात की थी। एक विवादास्पद घटना में, धनखड़ ने विदेश मंत्री एस. जयशंकर से कहा कि वह वेंस के साथ अपनी मुलाकात की जानकारी उन्हें दें। इस मांग से जयशंकर हैरान हुए और उन्होंने इसकी शिकायत प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में की। सूत्रों का दावा है कि अमेरिकी राजनेता अक्सर विदेशी नेताओं में कमजोरियां ढूंढकर उनका इस्तेमाल करते हैं, और वेंस का दौरा भारत के लिए कई मायनों में नकारात्मक रहा। इस दौरे के बाद तीन बड़ी घटनाएं हुईं: पहलगाम आतंकी हमला, एक संदिग्ध विमान दुर्घटना, और धनखड़ का इस्तीफा।
न्यायपालिका पर हमले और सरकार से तनाव
धनखड़ अपने कार्यकाल के दौरान न्यायपालिका पर तीखे हमलों के लिए चर्चा में रहे। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों, खासकर राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) को रद्द करने और अनुच्छेद 142 के उपयोग को “लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ परमाणु मिसाइल” करार दिया था। जज यशवंत वर्मा के आवास से नकदी बरामद होने के बाद भी उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की जांच प्रक्रिया पर सवाल उठाए। इन टिप्पणियों को सरकार का समर्थन माना गया, लेकिन सूत्रों का कहना है कि सरकार नहीं चाहती थी कि धनखड़ इतनी आक्रामकता से न्यायपालिका के खिलाफ बोलें, क्योंकि इससे सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच तनाव बढ़ रहा था।
23 जुलाई: जयपुर का दौरा और रहस्य
धनखड़ ने अपने इस्तीफे के तुरंत बाद जयपुर जाने की योजना बनाई थी, जो एक रियल एस्टेट कारोबारी के आयोजन में हिस्सा लेने के लिए थी। यह दौरा भी संदिग्ध माना जा रहा है, क्योंकि चल रहे संसद सत्र के बीच कोई सभापति आमतौर पर ऐसे निजी आयोजनों में नहीं जाता।
जगदीप धनखड़ का इस्तीफा केवल स्वास्थ्य कारणों का परिणाम नहीं था। यह सरकार के साथ उनके तनावपूर्ण संबंधों, विपक्ष के साथ उनकी गुप्त बैठकों, और संभवतः अमेरिकी उपराष्ट्रपति के दौरे से उत्पन्न राजनीतिक उथल-पुथल का परिणाम था। उनके इस्तीफे ने भारतीय राजनीति में एक नया संकट पैदा कर दिया है, और यह सवाल उठता है कि क्या यह केवल एक व्यक्तिगत फैसला था, या इसके पीछे कोई बड़ा राजनीतिक खेल चल रहा था।