शृंखला आलेख – 2: वन व वन्यजीव संरक्षण के प्राथमिक शत्रु हैं माओवादी

2-3-1.jpeg

माओवादियों ने केन्द्रीकृत रूप से अबूझमाड को तो अपना आधारक्षेत्र बनाया ही है, समानांतर रूप से वे संलग्न संरक्षित वनक्षेत्रों में भी सक्रिय हैं। सबसे निकट का उदाहरण है माओवादी संगठन की सेंट्रल कमेटी के सदस्य और तेलंगाना राज्य समिति से जुड़े माओवादी गौतम उर्फ सुधाकर का मारा जाना। वह मुठभेड़ जिसमें मानवता का यह हत्यारा माओवादी साहित्य उसने कई अन्य साथी मारे गये, वस्तुत: इंद्रावती टाइगर रिजर्व में चल रही थी। वर्ष 2022-23 के आसपास जब मैं इस क्षेत्र का अध्ययन कर रहा था, मेरी जानकारी में यहाँ सक्रिय दिलीप नाम के माओवादी की जानकारी थी जो संगठन में डीवीसी स्तर का कैडर था और उसकी दहशत हुआ करती थी। माओवादियों का यहाँ खौफ इतना था कि कई क्षत्रों में उन्होंने अपने नाके स्थापित किये थे जहाँ से गुजरने वालों को उन्हें टोल देना होता था; जिसकी बाकायदा पर्ची या रसीद भी भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी (माओवादी) की ओर से दी जाती थी।

इस आलोक में जानते हैं कि छत्तीसगढ़ राज्य में अबूझमाड और उसके सीमांत पर, मुख्यत: बीजापुर जिले में इंद्रावती टाइगर रिजर्व स्थित है जोकि देश के महत्वपूर्ण बाघ अभयारण्य में गिना जाता है। बस्तर अंचल की जीवनदायिनी सरिता इंद्रावती के नाम पर यह नामकारण किया गया है। इंद्रावती टाइगर रिजर्व को वर्ष 1983 में भारत के प्रोजेक्ट टाइगर के तहत बाघ अभयारण्य घोषित किया गया था, इसका कुल क्षेत्रफल लगभग 2799 वर्ग किलोमीटर है। यदि यहाँ अवस्थित प्राणी विविधता की बात की जाये तो मुख्य रूप से बाघ, जंगली भैंस, चीतल, गौर, सांभर, तेंदुआ और विभिन्न प्रकार के पक्षी सम्मिलित हैं। केवल जीव जगत ही नहीं वनस्पति वैविध्य के लिए भी यह परिक्षेत्र अपनी पहचान रखता है तथा अनेक विलुप्त प्राय अथवा संकटस्थ जीव-वनस्पतियों का यह संरक्षित क्षेत्र है।

इंद्रावती टाईगर रिजर्व पर जारी मुठभेड़ को ले कर मैंने एक समीक्षालेख पढ़ रहा था जिसके अनुसार संसाधन विहीन इस परिक्षेत्र में विकास कार्यों के लिए अनुमति नहीं मिल पाती इस कारण माओवादी यहाँ आसानी से सक्रिय हो जाते हैं। यह समझना होगा कि अभयारण्य क्षेत्र में किसी भी तरह का विकास कार्य पूर्णरूपेण वर्जित होता है अर्थात संसाधन होने के बाद भी यहाँ कोई गतिविधि, खदान, कारखाने लगाये जाने संभव ही नहीं हैं। बाघ के लिए संरक्षित अभयारण्यों को मानव गतिविधि विहीन ही रखा जाता है जिससे वन्य जीव संरक्षित रह सकें। ब्रिटिश शासन समय में इंद्रावती नदी के छोर का यह सघन वन क्षेत्र अंग्रेजों और राजा की शिकारगाह था, इतनी बड़ी संख्या में बाघ और जंगली भैंसे का शिकार किया गया कि वे विलुप्ति की कगार पर पहुँच गये। स्वतंत्रता के बाद जब संरक्षण की पहल हुई और यहाँ अभयारण्य निर्मित किया गया तब माओवादियों ने इसे अपनी सुरक्षित पनाहगाह बना लिया क्योंकि इसे परिक्षेत्रों में मानव गतिविधियां वर्जित कर दी जाती हैं।

एक पेड़ की टहनी तक जिस परिक्षेत्र से उठाना गैरकानूनी है वहाँ ठसके से बारूदी सुरंग बिछा कर, आईईडी और स्पाईक होल बना बना कर माओवादी अपने लिए तो किलेबंदी करते रहे लेकिन कितने ही मवेशियों और वन्यजीवों का जीवन खतरे में डाला, क्या इसका हिसब किताब लेने वाला कोई है? माओवादियों से क्षेत्र को मुक्त करने के लिए मुठभेड़ें भी इन्हीं क्षेत्रों में होने लगी तो सोचिए कि जीव जन्तु और पक्षी वहाँ किस अवस्था में होंगे अथवा पलायन कर गए होंगे। माओवादी क्या खाते हैं क्या पीते हैं बताने वाली शहरी नक्सलियों की किताबों को पढिए तो आपको स्पष्ट होगा कि कई जीव, पक्षी तो माओवादियों का भोजन बन गये; दुर्लभ सांपों तक को अपने बचाव में इन्होंने मार कर वन संपदा और उसके संतुलन को नष्ट किया है।

लालबुझक्कड शहरी नक्सलियों ने शब्दजाल से माओवादियों के समर्थन की जो ढाल बना रखी है, उनकी पहेलियों को हमें ठीक से बूझना होगा और यह पोल खोलनी होगी कि माओवादी ही वन और वन्यजीव सबसे बड़े शत्रु हैं, अन्यथा तो यह गिरोह हाथी के पैरों के निशान पर भी गीत का सकता है कि “पैर में चक्की बांध के, हिरणा कूदो कोय”।

Share this post

राजीव रंजन प्रसाद

राजीव रंजन प्रसाद

राजीव रंजन एक पुरस्कार विजेता लेखक और पर्यावरणविद् हैं। जिन्हें यथार्थवादी मुद्दों पर लिखना पसंद है। कविता, कहानी, निबंध, आलोचना के अलावा उन्होंने मशहूर नाटकों का निर्देशन भी किया है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

scroll to top