आदित्य तिवारी
लखनऊ : तस्वीर में जो मुस्कुराता चेहरा आप देख रहे हैं, वो सिर्फ एक पत्रकार नहीं था, वो एक संजीदा आवाज़ था… उत्तर प्रदेश की पत्रकारिता का एक जिम्मेदार सिपाही।
नाम – दिलीप सिन्हा।
पद – उत्तर प्रदेश राज्य मान्यता प्राप्त समिति के सदस्य रहे।
पहचान–वो शख्स, जिसकी भेजी हुई जानकारी पर कई अख़बारों और न्यूज़ रूम में पहले खबरें तैयार होती थीं।
आज वही दिलीप जी, हमारे बीच नहीं रहे…
एक बेकाबू रोडवेज बस ने 1090 चौराहे के पास उन्हें कुचल दिया… और 100 मीटर तक घसीटते हुए मौत की नींद सुला दिया।
प्रदेश की राजधानी लखनऊ की गलियों तक, जिसने पत्रकारिता को जिया, वह इस तरह सड़क पर बिखर जाए – ये सिर्फ एक हादसा नहीं, एक बहुत बड़ा खालीपन है, जिसे शब्द भर नहीं सकते।
गौतमपल्ली में जियामऊ ढाल के पास हुआ हादसा, वो स्कूटी पर थे… अपने किसी निजी काम से निकले थे… लेकिन किसे पता था कि लौटकर नहीं आएंगे।
बस की टक्कर इतनी भयानक थी कि सिविल अस्पताल पहुंचने से पहले ही उनका शरीर साथ छोड़ चुका था।
उनकी पत्नी अंचला, बेटी समंतिका और पूरा परिवार इस असीम पीड़ा में डूब गया है। और हम, उनके सहकर्मी, उनके शुभचिंतक… सिर्फ सन्न हैं।
उनका जाना, पत्रकारिता जगत की एक सदी के अनुभव का चला जाना है।
वे सिर्फ अख़बार नहीं पढ़ते थे, अख़बार बनाते थे।
वे खबरों को सिर्फ लिखते नहीं थे, जाँचते और जीते थे।
उनकी निष्पक्षता, उनका ठहराव, उनका गंभीर हास्य – अब स्मृतियों में ही रह जाएगा।
अब दिलीप जी के मोबाइल से हमें राज्य मान्यता समिति की अपडेट नहीं आएगी,
अब किसी शाम उनके चुटीले मैसेज व्हाट्सएप पर नहीं चमकेंगे,
अब कोई कॉल नहीं आएगा – “भाई साहब, इस पर ध्यान दीजिए।”
हमने एक व्यक्ति नहीं, पत्रकारिता के एक स्तंभ को खो दिया है।
ईश्वर से प्रार्थना है कि दिलीप जी की आत्मा को शांति दे,
और उनके परिवार को इस दुःख की घड़ी को सहने की शक्ति।