रायपुर: हिंदी साहित्य के शीर्षस्थ रचनाकार और ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता वरिष्ठ साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल (उम्र 88 वर्ष) लंबे समय से उम्रजनित बीमारियों से जूझ रहे हैं। उनकी सेहत को लेकर हाल ही में रायपुर में कुछ अफवाहें फैलाई गईं, जिनमें दावा किया गया कि उनके साथ सरकारी स्तर पर उपेक्षा हो रही है, उन्हें निजी अस्पताल से जबरन सरकारी अस्पताल में शिफ्ट किया गया, और परिवार निराश है। इन अफवाहों का खंडन मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के मीडिया सलाहकार और वरिष्ठ पत्रकार पंकज कुमार झा ने सोशल मीडिया पर विस्तार से किया। झा ने स्पष्ट किया कि ये दावे पूरी तरह झूठे और दुष्प्रचार पर आधारित हैं।
विनोद कुमार शुक्ल छत्तीसगढ़ की साहित्यिक धरोहर हैं। उनके उपन्यास जैसे ‘नौकर की कमीज’, ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ और कविता संग्रहों ने हिंदी साहित्य को नई ऊंचाइयां दीं। 9 दिसंबर 2025 को मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय स्वयं रायपुर के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) पहुंचे और शुक्ल जी से मुलाकात की। उन्होंने डॉक्टरों से उनकी सेहत की जानकारी ली और बेहतर इलाज के निर्देश दिए। इस मुलाकात में मीडिया सलाहकार पंकज झा भी मौजूद थे। मुख्यमंत्री ने शुक्ल जी को भारतीय साहित्य की अमूल्य धरोहर बताया और उनके शीघ्र स्वस्थ होने की कामना की।
पंकज कुमार झा ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में अफवाहों का एक-एक कर खंडन किया। उन्होंने लिखा कि अफवाह फैलाने वाले रायपुर में आम आदमी पार्टी (AAP) से जुड़े कुछ नेता-कार्यकर्ता हैं, जिनमें संकेत ठाकुर (पूर्व प्रदेश संयोजक AAP), रुचिर गर्ग (उपनाम ‘गांधी’) और कनक तिवारी जैसे नाम प्रमुख हैं। झा ने इन्हें “देसी केजरीवाल” और “निकृष्ट तत्व” करार दिया। उनके अनुसार:
1. कोई आवेदन नहीं मांगा गया था। केवल प्रक्रियागत हस्ताक्षर का आग्रह था, जिसे शुक्ल जी के पुत्र ने गरिमापूर्ण तरीके से पूरा किया। संकेत ठाकुर का AAP से पुराना जुड़ाव इस संदर्भ में संकेत के रूप में उल्लेख किया गया।
2. शुक्ल जी का अस्पताल जाना-आना साल भर से चल रहा है। उनकी उम्र को देखते हुए परिजनों के आग्रह पर निजी अस्पताल से एम्स में शिफ्ट किया गया, न कि जबरन छुट्टी दी गई।
3. एम्स की साख किसी राजनीतिक व्यक्ति से ज्यादा है। निजी अस्पतालों जैसी सुविधाएं नहीं मिलतीं, लेकिन परिजनों को कोई शिकायत नहीं है। अतिरिक्त निजी तीमारदार भेजने का प्रस्ताव भी दिया गया था, लेकिन आईसीयू में जरूरत नहीं पड़ी।
4. परिवार में कोई निराशा नहीं है। शुक्ल जी के पुत्र की विनम्रता और गरिमा प्रशंसनीय है।
5. शासकीय अस्पतालों के प्रोटोकॉल और सीमाएं होती हैं, लेकिन परिजनों ने कोई बड़ी शिकायत नहीं की।
झा ने आगे कहा कि अगर ये लोग इस मामले से जुड़े होते, तो इसे राजनीतिक रंग देने की कोशिश करते, जैसा वे हर मामले में करते हैं। वरिष्ठ साहित्यकार गिरीश पंकज भी शुरुआत में इन अफवाहों से प्रभावित हुए थे, लेकिन बाद में स्पष्ट हो गया। सामाजिक कार्यकर्ता गिरीश मिश्र ने भी पंकज झा की बातों की पुष्टि की। मिश्र के अनुसार, उनके रायपुरिया सूत्रों (जो राजनीतिक नहीं, बल्कि समाज के बड़े लोग हैं और एम्स में सामाजिक कार्य चलाते हैं) ने भी यही जानकारी दी। वे इन “वामपंथी दुष्प्रचारों” से नाराज हैं।
ये अफवाहें सोशल मीडिया पर तेजी से फैलीं, लेकिन इनका कोई ठोस आधार नहीं मिला। संकेत ठाकुर, रुचिर गर्ग और कनक तिवारी जैसे नामों का उल्लेख राजनीतिक पृष्ठभूमि से जुड़ा है। झा ने इशारा किया कि कुछ लोग (जैसे विनोद वर्मा और रुचिर) कांग्रेस के समय मीडिया प्रभारी रहे और चुनावों में सक्रिय थे। यह दुष्प्रचार छत्तीसगढ़ की विष्णुदेव साय सरकार को बदनाम करने की कोशिश लगती है, जबकि वास्तविकता में मुख्यमंत्री ने व्यक्तिगत रूप से शुक्ल जी की सेहत का जायजा लिया।
यह मामला साहित्यिक हस्ती के स्वास्थ्य को राजनीतिक हथियार बनाने का उदाहरण है। अफवाह फैलाने वाले AAP और कुछ विपक्षी जुड़े लोग एक्सपोज हो गए हैं, क्योंकि उनके दावे परिवार, एम्स प्रबंधन और सरकारी स्तर की जानकारी से मेल नहीं खाते। शुक्ल जी के परिजन उनकी देखभाल में पूरी तन्मयता से जुटे हैं, और परिवार ने किसी तरह की उपेक्षा की शिकायत नहीं की।
छत्तीसगढ़ में शुक्ल जी जैसे साहित्यकार राज्य की शान हैं। उनकी सेहत को लेकर कोई भी अफवाह न केवल परिवार को दुख पहुंचाती है, बल्कि साहित्य जगत को भी आहत करती है। पंकज झा और अन्य सूत्रों की जानकारी से साफ है कि सरकार पूरी संवेदनशीलता से काम कर रही है। उम्मीद है कि शुक्ल जी शीघ्र स्वस्थ होकर अपनी रचना प्रक्रिया में लौटेंगे। साहित्य प्रेमी उनके दीर्घायु जीवन की कामना कर रहे हैं।



