सत्य और स्वत्वाधिकार की स्थापना के लिये महा भारत के बाद सबसे बड़े महा युद्ध 1857 में भारतीय वीरों की पराजय के बाद अंग्रेजों ने देश में स्थानीय स्तर पर दमन आरंभ किया । जिसमें उनका लक्ष्य वनवासी क्षेत्र ही रहे । इसका कारण यह था कि उस 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की असफलता के बाद अधिकाँश क्राँतिकारी वनों में चले गये थे । अंग्रेजी टुकड़ियां उनकी तलाश करने वनों में टूट पड़ी । अंग्रेजी टुकड़ियों के वनवासियों पर हुये इस अत्याचार और आतंक का न तो कहीं विधिवत वर्णन मिलता है और न कहीं दस्तावेज । हाँ अंग्रेज अफसरों के पत्र व्यवहार में इसकी झलक अवश्य मिलती है । इसी से हम अनुमान लगा सकते हैं कि 1857 क्रांति की असफलता के बाद अंग्रेजों के दमन के कितने शिकार वनवासी अंचल ही हुये । इसमें मध्यप्रदेश के निमाड़ अंचल भी प्रमुख है । इस अंचल में नौ और दस अक्टूबर 1958 को अंग्रेजों ने जो दमन किया उसका विवरण रौंगटे खड़े कर देने वाला है । 9 अक्टूबर तिथि ऐसी है जब 78 क्राँतिकारियों के बलिदान हुये । उनके बाद अंग्रेजों डंग गाँव सहित आसपास के अनेक गांवो में सर्चिंग शुरू की ।
गांवो खेतों और जंगल में आग लगा दी, जो जहाँ दिखा उसे वहीं मौत के घाट उतारा । अंग्रेजों ने इस क्षेत्र में सामूहिक अत्यचार किये गाँव के गाँव उजाड़े । जो क्राँतिकारी नहीं थे उन्हे भी न छोड़ा । यह डंग गाँव अंग्रेजों के अत्याचार का शिकार इसलिये हुआ था कि वीर सीताराम कंवर का जन्म इसी डंग गाँव में हुआ था । उनके नेतृत्व में ही वनवासियों की टुकड़ी ने यहीं अंग्रेजी फौज से मुकाबला किया था । इस संघर्ष में 20 क्राँतिकारी मुकाबला करते हुये ही बलिदान हुये । वीर सीताराम कंवर का बलिदान होते ही शेष क्राँतिकारी बंदी बना लिये गये । इन बंदियों की संख्या 58 थी । जिन्हें कैंप में लगाकर तोप से उड़ा दिया गया । इस तरह इस संघर्ष में कुल 78 बलिदान हुये । अंग्रेजों ने वीर सीताराम कंवर का शीश काटा और तलवार में फंसा कर पूरे क्षेत्र में घुमाया । इसके पीछे अंग्रेजों की मंशा दहशत पैदा करना थी । यह काम अगले दिन यनि दस अक्टूबर को हुआ । वीर सीताराम कंवर के बलिदान के समाचार से फैले आतंक से गांव के गाँव खाली हो गये । अंग्रेजों ने गाँवों में मकानों को ध्वस्त किया । जो मिला उसका शीश काट दिया गया । इस अत्याचार में कुल कितने बलिदान हुये इसका विवरण नहीं मिलता । हाँ एक पत्र है जो मेजर कीटिंग ने अंग्रेज गवर्नर को लिखा था ।
जिसमें उसने 78 का तो आकड़ा दिया और लिखा कि “गांवो में कांम्बिग आपरेशन कर लिया गया, अब कोई विद्रोही न बचा” । यह पत्र 16 अक्टूबर 1858 का है । तब अंग्रेजों की तलाश अभियान में यह काम्बिग आपरेशन शब्द प्रचलित था । इसका आशय था कि जिस तरह कंघी से सिर में जुँये की तलाश की जाती है वैसा ही । हमें काम्बिग आपरेशन का आशय आसानी से समझा में आ सकता है कि तब क्या हुआ होगा । ऐजेंट मेजर कीटिंग और वायसराय के बीच यह पत्र व्यवहार पहला नहीं हैं । इससे पहले एक पत्र 27 सितम्बर 1858 का भी मिलता है जिसमें कीटिंग ने वायसराय को वीर सीताराम कंवर का मूवमेंट लिखा था और सूचना दी थी कि “वह सीताराम कंवर और विद्रोहियों को समाप्त करने दो टुकड़ियों के साथ डंग जा रहा है । इस पत्र में कीटिंग ने अंग्रेजी सेना में दो टुकड़ियों के नायक बदलने की भी सूचना दी थी । इन दोनों टुकड़ियों के नये नायकों के नाम फरज अली और दिलेर खाँ दर्ज हैं । अंग्रेजों का यह दमन अभियान इन्हीं के नेतृत्व में चला ।
आज भले प्रशासनिक और राजनैतिक दृष्टि से छत्तीसगढ़ पृथक प्रांत हो लेकिन एक समय मालवा का निमाड़ क्षेत्र, महाकौशल और छत्तीसगढ़ एक ही साम्राज्य रहा करता था । इसे बोलचाल की भाषा में तो गोंडवाना कहते थे जबकि ऐतिहासिक दृष्टि से इसका नाम महाकौशल हुआ करता था । इस राज्य की राजकुमारी कौशल्या ही मर्यादा पुरुषोत्तम राम जी की माता रहीं हैं । उनकी जन्म स्थलि अब छत्तीसगढ़ में । इस पूरे अंचल में गौड़ वनवासी रहते हैं । जिनका उपनाम “कंवर” हुआ करता है । आज भी कंवर उपनाम के वनवासी जबलपुर, मंडला, छत्तीसगढ़ और निमाड़ क्षेत्र में मिलते हैं । इनका आंतरिक संगठन, ज्ञान और वीरता का भाव अद्भुत होता है । हर युग के विदेशी आक्रांता का मुकाबला इस समाज ने सदैव साहस और वीरता से किया है । इंदौर के होल्कर राज्य में भी अधिकांश मैदानी प्रधान के पद “कंवर” वीरों के पास ही रहे हैं ।
क्राँतिकारी वीर सीताराम कंवर का जन्म स्थल निमाड़ क्षेत्र में खरगोन जिले का डंग गाँव था । वे गोंडवाना राज्य का केन्द्र रहे जबलपुर में नायक शंकर शाह के यहाँ गुप्तचर विभाग के प्रमुख रहे हैं । लेकिन सितम्बर 1958 में अंग्रेजों ने गौंडवाना का दमन कर दिया था । वीर शंकर शाह और उनके पुत्र रघुनाथ शाह को तोप के मुँह पर बाँध कर उड़ाया था । गौंडवाना राज्य के दमन के बाद वीर सीताराम कंवर अपनी टोली के साथ निमाड़ आ गये थे । यहां उन्होंने होल्कर राज्य में पदाधिकारी वन वासियों से संपर्क किया और 1857 की क्रांति के भूमिगत नायकों से संपर्क किया और वनवासियों की टुकड़ी तैयार की । इसकी सूचना अंग्रेजों को लग गयी थी । यह भी माना जाता है कि गोंडवाना के दमन के साथ ही अंग्रेजों की नजर वीर सीताराम कंवर पर थी, उनके हर मूवमेंट पर अंग्रेजों की नजर थी । इसीलिए गोंडवाना के दमन के साथ ही कीटिंग को निमाड़ रवाना किया गया । वीर सीताराम कंवर के दमन के लिये अंग्रेजों ने तीन ओर से घेरा था । दो टुकड़ियाँ तो कीटिंग के साथ थीं । तीसरी टुकड़ी नागपुर से आई । जिसका कैंप बैतूल में था । डंग गाँव को को रात में ही घेर लिया गया था । मुकाबला बड़े सबेरे मुँह अंधेरे शुरु हो गया । इस कारण वनवासियों की टुकड़ी ठीक से संभल भी न पाई थी । फिर भी साहस से सामना हुआ । मुकाबला दो प्रहर तक चला । शाम तक कैंप की तलाशी और बंदी बनाये गये सिपाहियों का दमन, अगले दिन पूरे क्षेत्र में सर्चिंग, दमन, और अत्याचार । दमन का ऐसा अंधकार सहकर यह स्वतंत्रता की सुहानी सुबह हो सकी । सभी बलिदानियों को शत शत नमन्