गौहर आसिफ
दिल्ली। 27 सितंबर 2025 को दिल्ली के तालकटोरा इंडोर स्टेडियम में एक ऐतिहासिक आयोजन होने जा रहा है-अखिल भारतीय मुस्लिम महासम्मेलन जिसका आयोजन मुस्लिम राष्ट्रीय मंच (MRM) द्वारा किया जा रहा है । यह अधिवेशन भारत के विभिन्न हिस्सों से आए हुए उलेमा सूफी संत बुद्धिजीवी शिक्षाविद और मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधियों को एक मंच पर एकत्र करेगा।
डॉ. इन्द्रेश कुमार की अगुवाई में होने वाला यह सम्मेलन दो प्रमुख उद्देश्यों पर केंद्रित है पहला मुस्लिम समाज के आर्थिक और शैक्षिक सशक्तिकरण पर विचार करना] दूसरा “वतन से मोहब्बत“ यानी राष्ट्र के प्रति प्रेम की भावना को मज़बूत करना।
ऐसे समय में जब देश में धार्मिक और सामाजिक विभाजन की रेखाएँ गहरी हो रही हैं यह महासम्मेलन एक सकारात्मक पहल के रूप में देखा जा रहा है। यह भारतीय मुसलमानों की पहचान को केवल शिकायत और हाशिये से निकाल कर सकारात्मक भागीदारी सुधार और रचनात्मक राष्ट्रनिर्माण की दिशा में ले जाने का एक प्रयास है।
संवाद और आत्ममंथन का मंच
मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की स्थापना 2002 में इस विचार के साथ हुई थी कि मुसलमानों और मुख्यधारा की राष्ट्रवादी विचारधारा के बीच संवाद कायम किया जाए। यह मंच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से वैचारिक रूप से जुड़ा हुआ है।
हालांकि] 27 सितंबर को होने वाला अधिवेशन केवल मंच का प्रचार नहीं है-यह मुस्लिम समाज के भीतर आत्ममंथन और आत्म-निर्णय का एक अवसर भी प्रदान करता है।
वतन से मोहब्बत एक भावनात्मक लेकिन महत्वपूर्ण संदेश
इस अधिवेशन का एक भावनात्मक पक्ष है-मुसलमानों की देशभक्ति पर ज़ोर देना है। पिछले कुछ वर्षों में देश में मुसलमानों की राष्ट्र के प्रति निष्ठा पर बार-बार सवाल उठाए गए हैं-राजनीतिक, सामाजिक और मीडिया स्तर पर।
वतन से मोहब्बत के माध्यम से MRM यह संदेश देना चाहता है कि भारतीय मुसलमान देशभक्त हैं और उनकी पहचान राष्ट्रविरोध नहीं] बल्कि राष्ट्रनिर्माण से जुड़ी होनी चाहिए। यह महासम्मेलन मुसलमानों की पहचान को सकारात्मक राष्ट्र निर्माण से जोड़ता है जोकि एक सकारात्मक कदम है।
मुस्लिम समाज की आंतरिक विविधताः एकजुटता की चुनौती
भारतीय मुस्लिम समाज केवल एकरूपी नहीं है। इसमें सुन्नी शिया सूफी बोहरा देवबंदी बरेलवी आदि अनेक संप्रदाय हैं। साथ ही सामाजिक दृष्टिकोण से भी यह समुदाय विविधताओं से भरा है-शहरी और ग्रामीण] शिक्षित और अल्पशिक्षित संपन्न और वंचित। महासम्मेलन की कोशिश है कि यह विविधता मंच पर भी झलके। यह अधिवेशन समाज के सभी संप्रदायों का समान रूप से प्रतिनिधित्व भी कर रहा है विशेषकर महिलाओं और युवाओं का] तो यह समाज के भीतर आंतरिक संवाद और सहयोग को बढ़ावा देगा।
27 सितंबर 2025 का यह अधिवेशन सिर्फ एक दिन का कार्यक्रम नहीं बल्कि एक सोच की शुरुआत हो सकता है। भारत जैसे विविध देश में हर समुदाय की भागीदारी ज़रूरी है। मुसलमानों को यह सोचना होगा कि अब समय आ गया है सिर्फ प्रतिक्रिया देने का नहीं बल्कि पहल करने का।
यह महासम्मेलन एक मंच हो सकता है आत्म-निर्माण का जहाँ मुसलमान अपने भविष्य को स्वयं आकार देने की दिशा में पहला कदम उठाएं- एक ऐसे भविष्य की ओर जहाँ वे गर्व से कह सकेंः
हम भारतीय हैं-मुसलमान भी राष्ट्रभक्त भी और विकास के सहभागी भी।