विकास की दौड़ में परंपरा अक्षुण्ण है विरासत के साथ

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सुभाष चन्द्र

जयपुर । विकास की रफ्तार से दौड़ते शहरों के बीच कभी-कभी कोई दृश्य हमें अपनी जड़ों से जोड़ देता है। ऐसा ही एक दृश्य हाल ही में जयपुर की व्यस्त सड़कों पर देखा गया, जहां एक व्यक्ति कांवड़ प्रसाद को कंधों पर उठाए हुए आगे बढ़ रहा था। जयपुर में इसे “कांवड़ प्रसाद” कहा जाता है, तो वहीं मिथिला में इसे भार-भड़िया कहा जाता है। यह नज़ारा आधुनिकता और परंपरा के सुंदर संगम का प्रतीक बन गया।

मिथिला में अब ऐसे दृश्य कम ही देखने को मिलते हैं। हालांकि, नवरात्रि के दौरान छठे दिन अपराह्न में पालकी दिखाई देती है और सप्तमी की सुबह विशेष आह्वान के साथ मां जगदंबा को बिल्व वृक्ष से दुर्गा पूजा स्थल तक लाया जाता है। यह परंपरा आज भी वहां की सांस्कृतिक स्मृति को संजोए हुए है।

जयपुर के त्रिपोलिया गेट से तीज महोत्सव के दौरान जब मां की स्वर्ण-रजत पालकी निकली, उससे पहले कांवड़ प्रसाद लिए सज्जन को देखकर अतीत की स्मृतियां ताज़ा हो गईं। यह कांवड़, नाम से ही स्पष्ट है, मां के विशेष प्रसाद की सामग्री से युक्त होती है। यह न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि पीढ़ियों से चली आ रही एक जीवंत सांस्कृतिक परंपरा भी है।

महिलाओं के रंग-बिरंगे पर्व तीज के उपलक्ष्य में राजस्थान पर्यटन विभाग द्वारा आयोजित दो दिवसीय तीज महोत्सव-2025 का भव्य शुभारंभ रविवार को हुआ। पहले दिन तीज माता की पारंपरिक शोभायात्रा निकाली गई, जिसमें बड़ी संख्या में महिलाएं, स्थानीय नागरिक, देश-विदेश से आए पर्यटक और जनप्रतिनिधि शामिल हुए।

छोटी चौपड़ पर बने भव्य मंच से राज्यपाल हरिभाऊ बागडे, विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी, उप मुख्यमंत्री व पर्यटन, कला एवं संस्कृति मंत्री दिया कुमारी, उत्तराखंड के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज, सहित कई गणमान्य अतिथियों की उपस्थिति में तीज माता की महाआरती की गई। यह पहली बार था जब उप मुख्यमंत्री दिया कुमारी ने स्वयं मंच से तीज माता की आरती की।

इस महोत्सव की विशेष बात रही महिलाओं की झांकी, जिसमें उन्होंने लहरिया साड़ियों में सजकर माथे पर कलश रखकर पारंपरिक नृत्य किया। यह दृश्य न केवल आकर्षक था, बल्कि उसने राजस्थान की सांस्कृतिक गहराई को सजीव कर दिया। इस दौरान महिला पंडितों द्वारा तीज माता की पूजा की गई, जो महिला सशक्तिकरण का प्रतीक बना।

शाही शोभायात्रा में बिखरा राजस्थानी लोक संस्कृति का रंग
तीज माता की शोभायात्रा ने सिटी पैलेस स्थित जनानी ड्योढ़ी से प्रारंभ होकर त्रिपोलिया गेट, छोटी चौपड़, चौगान स्टेडियम होते हुए तालकटोरा पौंड्रीक पार्क तक नगर भ्रमण किया। इस यात्रा में घोड़े-बग्घियां, हाथी, ऊंट, बैल, बैंड, राजस्थानी झांकियां, और शहनाई-नगाड़ों से सजी एक राजसी झलक देखने को मिली।

शोभायात्रा में करीब 200 लोक कलाकारों ने राजस्थान की विविध सांस्कृतिक विधाओं का प्रदर्शन किया। बनवारीलाल जाट की कच्छी घोड़ी, शेखावाटी का गैर नृत्य, बहुरूपिया कलाकारों के नारद-कृष्ण-शंकर रूप, कालबेलिया नृत्यांगनाएं, चरी नृत्य, हेला ख्याल, और राजू भाट के कठपुतली नर्तन ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

आज जब देश डिजिटलीकरण, स्मार्ट सिटी और बुलेट ट्रेन की दिशा में तेज़ी से बढ़ रहा है, ऐसे दृश्य यह याद दिलाते हैं कि हमारी असली ताकत हमारी परंपराओं में निहित है। तकनीकी प्रगति जरूरी है, लेकिन अपने संस्कार, अपनी विरासत को सहेजना उससे भी अधिक महत्वपूर्ण है।

तीज महोत्सव-2025 ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया कि राजस्थान की परंपरा, रंग और लोक कला देश-दुनिया के लिए आकर्षण का केंद्र है। इस आयोजन ने नारी शक्ति, सांस्कृतिक विविधता और सामाजिक समरसता का भव्य मंच प्रस्तुत किया। यह महोत्सव न केवल राज्य की सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने का प्रयास है, बल्कि पर्यटन को प्रोत्साहित करने की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम है।

यही संतुलन हमें एक ऐसा समाज बनाता है, जहां परंपरा और प्रगति दोनों साथ-साथ चलती हैं कृ न तो कोई बोझ बनती है, न ही कोई बाधा। कांवड़ प्रसाद से लेकर स्वर्ण पालकी तक, यह केवल आस्था की झलक नहीं, बल्कि हमारे सांस्कृतिक अस्तित्व की पहचान है। यही पहचान हमें भीड़ से अलग करती है और भविष्य की ओर कदम बढ़ाते हुए भी अपनी जड़ों से जोड़े रखती है।

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