रमेश दुबे
पटना। आज पूर्वांचल के गाँव के सवर्ण नौजवानोंके बर्बाद होने की असली वजह ईर्ष्या और दिखावा है. सवर्ण समुदाय की नई पीढी अब तुलनात्मक रूप से कामचोर नहीं है. सवर्ण समुदाय में ब्राह्मण ही जातीय अहंकार की वजह से कुछ काम को छोटा समझते हैं इसीलिए अभी भी पिछड़े हैं. उन्नाव, कन्नौज, एटा, इटावा इत्यादि ज़िलों के राजपूत और ब्राह्मण नौजवानों को देखकर आप दंग रह जाएँगे वे हर तरह के धंधे कर रहे हैं. कन्नौज के इत्र के धंधे पर देखिए कैसे यादव राजपूत ब्राह्मण अब एक बराबरी पर आने लगे पता करिए यह पुश्तैनी धंधा किनका था.
सरकारी दस्तावेज के मुताबिक पिछड़ी जातियों के नौजवानों के बर्बाद होने की वजह उनके पुश्तैनी काम को छोटा बताकर उन्हें हीन भावना का शिकार बना दिया गया. अब वे मालिक से नौकर बनने की तरफ़ बढ़ रहे हैं. जैसे- समझो मल्लाह के नौजवानों नौकरी करने जा रहे हैं और सवर्ण और मुस्लिम मछली पालने से बेचने तक के धंधे पर दिल्ली से देवरिया तक देख लीजिए कब्जा कर चुके हैं. सब्जी का धंधा पुश्तैनी कुशवाहा समाज का था उनके बेटे 10 हजार की नौकरी पर जा रहे हैं जबकि बनारस की मंडी से गाजियाबाद की साहिबाबाद मंडी तक पर सवर्ण और मुस्लिम समुदाय हावी है.
अच्छा चलिए इस बात से समझिए नाच की परंपरा किनकी थी जो सदियों से पारंगत थे जब लिबराइजेशन हुआ तो इसमें पैसा आया तो वे बाहर हो गये बताइए बॉलिवुड पर किन लोगों का कब्जा था और है? ऐसा क्यों हुआ? क्योंकि आपके दिमाग में भर दिया राजनीतिक रोटियाँ सेंकने वालों ने कि आपका पुश्तैनी काम छोटा है. सोचिए बाबू साहब खेत में गन्ना, गेहूँ धान पैदा करें मतलब मेहनत और खर्च का काम आप करिए और आपके पैदा हुए को बेचने का धंधा करके बनिया अमीर बनता गया. क्योंकि पहले बाबू साहब से किसान बन चुके लोगों को बताया गया कि यह बेचने का काम छोटा होता है. और इसी वजह से बाबू साहब की सारी जमीन बिकती चली गयी. नई पीढ़ी यह समझ रही है.
हर तरह की प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद मुस्लिम समुदाय सिर्फ़ अपनी मेहनत और हर काम को इज़्ज़त की नज़र से देखने की वजह से टिके हुए हैं. आगे बढ़ रहे हैं. आज पिछड़े और दलित नौजवानों को अपने नेताओं की बकलोली के बजाए मुस्लिम समुदाय और बदल रहे सवर्ण समुदाय से सीखने की जरूरत है. अपने पुश्तैनी काम में आप माहिर थे सोचिए मल्लाह से अच्छा मछली का धंधा राजपूत भूमिहार शेख सैय्यद कैसे कर पाता? आप हटे और इन लोगों ने धंधे को क़ब्ज़ा लिया.
मैं बिहार के लखीसराय, बेगूसराय, मुजफ्फरपुर के ग्रामीण अंचल तक के भूमिहारों को देखा. वे धंधा करने यूरोप, साउथ अफ़्रीका के देशों तक में कर रहे हैं. इसीलिए गाँव की उनकी जमीन बची रह गयी हैं. जो माइग्रेट हुआ वह भी सफल रहा क्योंकि बाहर गया लिबराइजेशन का फ़ायदा मिला जो वहाँ रुका वह लालू राज में एक हाथ से हथियार उठाया दूसरे हाथ से धंधा किया. हर तरह का धंधा.
आपको एक उदाहरण से समझाता हूँ. मुजफ्फरपुर के किसान समूह में मिलकर ट्रेन से अपनी लीची वे दिल्ली और गाजियाबाद साहिबाबाद मंडी में आज से चालीस साल पहले से बेंचते हैं. इंदिरापुरम में ऐसे सैकड़ों किसानों ने तब यहाँ घर ख़रीद लिया था. ताकि सीजन में मंडी आते थे ठहरते थे. बाद में लालू राज के दौरान अपने बच्चों को यहाँ पढ़ने भेज दिये. सोचिए विपरीत परिस्थितियों ने उन्हें कितना दूरदर्शी बना दिया उस वक्त पूर्वांचल के लोग गाँव के बनियों तक सीमित थे. आज उसी इंदिरापुरम के पार्षद पिछले बीस साल से उसी बिहार के भूमिहार हैं. क्योंकि यहाँ वह मात्र बिहारी है.



