फिल्मकार विवेक रंजन अग्निहोत्री की आगामी फिल्म द बंगाल फाइल्स को लेकर पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) द्वारा कई पुलिस थानों में दर्ज की गईं एफआईआर ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। यह घटना न केवल एक फिल्मकार के रचनात्मक अधिकारों पर हमला है, बल्कि यह भारतीय लोकतंत्र में कला और विचारों की स्वतंत्रता के लिए भी खतरा है।
विवेक अग्निहोत्री, जो द ताशकंद फाइल्स और द कश्मीर फाइल्स जैसी फिल्मों के माध्यम से ऐतिहासिक सत्यों को उजागर करने के लिए जाने जाते हैं, एक बार फिर अपनी नई फिल्म के जरिए बंगाल के इतिहास के कुछ काले अध्यायों को सामने लाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन टीएमसी द्वारा दर्ज एफआईआर, विशेष रूप से फिल्म के टीजर में मां दुर्गा की प्रतिमा के जलने के दृश्य को लेकर, इसे सांप्रदायिक नफरत फैलाने का आरोप लगाकर उनकी आवाज को दबाने का प्रयास कर रही है।
विवेक ने हमेशा अपनी फिल्मों में गहन शोध और तथ्यों पर आधारित कहानी कहने का दावा किया है। द बंगाल फाइल्स को 1946 के डायरेक्ट एक्शन डे और नोआखली दंगों जैसे ऐतिहासिक घटनाओं पर केंद्रित माना जा रहा है, जिन्हें वे “हिंदू नरसंहार” के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। टीएमसी का आरोप है कि यह फिल्म सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ सकती है, लेकिन फिल्म की रिलीज से पहले ही एफआईआर दर्ज करना और इसकी स्क्रीनिंग पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश करना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला है।
सुप्रीम कोर्ट ने 2023 में द केरल स्टोरी के मामले में स्पष्ट किया था कि सार्वजनिक असहिष्णुता के आधार पर किसी फिल्म पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता। इसके बावजूद, बंगाल सरकार का रवैया कला और सत्य को दबाने की मंशा को दर्शाता है।
विवेक ने इस मामले में कलकत्ता हाई कोर्ट का रुख किया है, जहां जस्टिस जय सेनगुप्ता की एकल पीठ ने 26 अगस्त तक एफआईआर पर अंतरिम रोक लगा दी है। अगली सुनवाई 19 अगस्त को होगी। विवेक ने साहसपूर्वक घोषणा की है कि वह कोलकाता में ही फिल्म का ट्रेलर लॉन्च करेंगे, यह दर्शाते हुए कि सत्य को दबाया नहीं जा सकता। लेकिन बॉलीवुड का मौन चिंताजनक है। जहां उद्योग को एकजुट होकर अपने सहकर्मी का समर्थन करना चाहिए था, वहां वैचारिक खेमों में बंटवारा स्पष्ट है। यह समय है कि समाज और सिनेमा प्रेमी विवेक के साथ खड़े हों। उनकी फिल्में असहज सत्यों को सामने लाती हैं, जो समाज को आत्ममंथन के लिए प्रेरित करती हैं। यदि ऐसी आवाजों को दबाया गया, तो यह न केवल कला, बल्कि लोकतंत्र के लिए भी हानिकारक होगा।
सामाजिक जागरूकता और एकजुटता के जरिए हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि सत्य को सामने लाने की कोशिश करने वालों को डराया न जाए। विवेक अग्निहोत्री के साथ खड़े होने का मतलब है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सत्य के अधिकार के लिए खड़ा होना।