प्रो. मनोज कुमार
भोपाल । अरे यार, क्या लिखते हैं? क्या छापते हैं? समझ में नहीं आता कैसी पत्रकारिता कर रहे हैं. सब बिक गए हैं. ढोल पीट रहे हैं. झूठ को सच बनाकर परोस रहे हैं. जो लोग रोज अखबार को कोसते रहते हैं उनके लिए आज 16 अगस्त का दिन भारी पड़ रहा होगा. चाय की पहली प्याली के साथ कोसने के लिए, बड़बड़ाने के लिए उनके हाथों में अखबार का पन्ना नहीं है. आखिर अब वो दिन भर कोसें किसे? किसे बताएं कि मीडिया कितना बेइमान हो गया है. बेइमान शब्द थोड़ा तल्ख हो जाता है तो कहते हैं कि मीडिया की विश्वसनीयता खत्म हो गयी है. और इस अविश्वसनीय होते दौर में आज 16 अगस्त को अखबार उनके हाथों में नहीं हैं तो भी उन्हें बुरा लग रहा है. अब इस मर्ज का क्या इलाज करें? हम हैं तो बुरे और नहीं है तो भी बुरे! अरे, साहबान हम पत्रकारों को साल में दो दिन ही तो मिलता है जब आपकी निंदा, आलोचना और कई बार गालियों से बच निकलते हैं. आज 16 अगस्त और अगले साल 27 जनवरी को आपके हाथ नहीं आते हैं.
अब सोचिए और गुनिए कि जिन अखबार को आप कोसते हुए थकते नहीं हैं, वही एक दिन आपसे दूर हो जाता है तब आप तनाव में आ जाते हैं. अखबार के साथ आपकी संगत ऐसी हो गई है कि चाय की पहली प्याली की चुस्की लेते हुए आपके दिन की शुरूआत होती है. और शायद यही वजह है कि रोज की तरह आज भी आप अखबा तलाश कर रहे होते हैं लेकिन अखबार ना देखकर आप भिन्ना उठते हैं. आपको लगता है कि आज हॉकर बदमाशी कर गया, अखबार देकर नहीं गया. फिर आदतन अपनी धर्मपत्नी को आवाज देते हैं कि अखबार देखा क्या? जब उधर से भी ना का जवाब मिलता है तब आपको खयाल आता है कि कल 15 अगस्त के अवकाश के कारण आज अखबार नहीं आया. मन व्याकुल हो जाता है. सही बात तो यह है कि जिस अखबार और मीडिया को आप दुश्मन समझते हैं, वह दुश्मन नहीं बल्कि दोस्त है. इससे आगे और जाएं तो आप भीतर झांक कर देखेंगे तो पता चलेगा कि अखबार से आपको इश्क है. वैसा ही जैसा आप किसी से करते हैं. यहां इश्क से मतलब किसी स्त्री से होना ही नहीं है. एक ऐसा दोस्त जो रोज आपको परेशान भी करता है और सुकून भी देता है, वह दूर हो जाए तो दिनभर मन में एक कसक रह जाती है. आज आपके साथ यही हो रहा है. सच बोलिएगा?
याद कीजिए उस कू्रर दिन को जिसे हम कोरोना काल कहते हैं.. आप डरे, दुबके हुए घर में छिपे-सहमे से बैठे थे तब अखबार की सूरत में आपका दुश्मन दोस्त सूचना और खबरें लेकर धमक जाता था. लाख चेतावनी के बाद कि अखबार से कोरोना फैल सकता है लेकिन आप नहीं मानते थे. थोड़ी सावधानी के लिहाज से एकाध घंटे अखबार को बाहर पड़े रहने देते थे फिर सेनेटाइजर छिडक़र टोटका कर अखबार को साथ लेकर सोफे पर पसर जाते थे. फिर एक प्याली चाय और अखबार आपकी साथी आपके साथ होता था. कितना बेशर्म है ना ये अखबार और हम खबर लिखने वाले लोग जो रोज आपकी आलोचना, निंदा और गालियां सुनने के बाद भी बिलानागा आपकी टेबल पर होते हैं. कभी आपने हमारे बारे में सोचा कि आपको अलर्ट रखने के लिए, अच्छी-बुरी सूचना इक_ी करने के लिए हम अपने परिवार को भूल कर, अपनी जिंदगी को दांव पर लगाकर काम पर निकल जाते हैं. हमारी कौम को तो ये भी पता नहीं होता है कि हमारे घर में राशन कब खत्म हो गया है, बच्चे के स्कूल की फीस जमा है कि नहीं या मां की दवा लाने के लिए पैसों का इंतजाम कैसे करेंगे? वो तो भला हो हमारी कौम की उन स्त्रियों का जो मेरी पत्नी है, भाभी है, माँ है और बहन है जो हमारा हौसला बढ़ाती हैं. उनके मुँह में निवाला कब जाता है, यह भी हमें खबर नहीं होती है लेकिन दो परांठे और दही खिलाकर भेजती हैं, वैसे ही जैसे कि एक जवान को उनके परिजन भेजते हैं. हमारे घर की स्त्रियों को पता है कि घर लौटने तक इनके पेट में कुछ कप चाय और एकाध-दो सड़े-गले तेल में बना समोसा मिल जाए तो बहुत लेकिन इन सबके बदले हमारा पेट भरता है आपकी निंदा से, आलोचना.
ये 16 अगस्त और आने वाले नए साल में 27 अगस्त आपको इस बात का याद दिलाता रहेगा कि अखबार आपका दुश्मन नहीं, बिकाऊ नहीं, अविश्वसनीय नहीं बल्कि आपका हमदर्द है, आपको सूचना से लबरेज रखता है. आपको समाज में घट रहे अच्छे बुरे की खबर देता है. इस बात से कोई शिकायत नहीं कि गलतियां होती हैं, कुछ यशोगान भी होता है और अगर यह बात आप उस प्रबंधन को दोष दीजिए, उसे कोसिए ना कि अखबार और टेलीविजन के पर्दे पर आने वाले हम जैसे राई जैसे पत्रकारों को. आपका तो शनिवार-रविवार मौज का होता है. हर तीज-त्योहार पर आपको छुट्टी मिल जाती है और हमें? हमें तो ये दो दिन ही मिलते हैं और यह दो दिन इसलिए कि आप अपने भीतर झांक सकें कि क्या वास्तव में मीडिया अविश्वसनीय हो गया है? आपको याद दिलाते कविवर बाबा नागार्जुन की पंक्तियां सहसा स्मरण में आ जाता है कि
किसकी है छब्बीस जनवरी,
किसका है पन्द्रह अगस्त
यहां पर बाबा से माफी के साथ अपने कौम के लिए कहता हूं –
किसकी है होली, किसकी है दीवाली
हर दिन है बेहाली, हर दिन निंदा और गाली