वार 2: 400 करोड़ की चकाचौंध में खोया सिनेमा

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‘वार 2’ को लेकर उत्साह का आलम था, मगर यह फिल्म उम्मीदों पर खरी नहीं उतरती। 400 करोड़ के भारी-भरकम बजट की चर्चा तो खूब है, लेकिन यह रकम कहां खर्च हुई, यह सवाल दर्शकों को हैरान करता है। शानदार लोकेशंस और भव्य सेट्स दिखते हैं, पर कहानी और किरदारों की गहराई नदारद है। फिल्म पुराने फॉर्मूले पर चलती है—देशभक्ति, एक्शन, और एक ट्विस्ट, जो पहले ही अनुमानित हो जाता है।

ऋतिक रोशन और जूनियर एनटीआर की जोड़ी में दम तो है, मगर स्क्रिप्ट उनकी प्रतिभा को बांधे रखती है। दोनों के बीच के कुछ संवाद और एक्शन सीक्वेंस दर्शनीय हैं, लेकिन ये छिटपुट चमक पूरी फिल्म को नहीं बचा पाती। अयान मुखर्जी का निर्देशन ठीक-ठाक है, पर ‘ब्रह्मास्त्र’ की तरह यहां भी वे विजुअल्स पर ज्यादा जोर देते हैं, कहानी पर कम। बैकग्राउंड म्यूजिक जोरदार है, मगर कई बार जरूरत से ज्यादा लाउड हो जाता है।

फिल्म का सबसे बड़ा मसला है इसका दोहराव। ‘वार’ की पहली कड़ी की तुलना में यह नया कुछ नहीं लाती। 400 करोड़ का बजट शायद लोकेशंस और VFX में खर्च हुआ, लेकिन भावनात्मक गहराई और नवीनता की कमी इसे औसत बनाती है। दर्शकों को एक्शन का डोज तो मिलता है, पर दिल को छूने वाली कहानी नहीं। कुल मिलाकर, ‘वार 2’ चमक-दमक से भरी एक ऐसी गाड़ी है, जो रास्ते में इंधन खत्म होने से रुक जाती है।

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