यह भारत विरोधी शक्तियों के “स्लीपर सेल” का षड्यंत्र तो नहीं

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दिल्ली । काँग्रेस नेता राहुल गाँधी और इंडी गठबंधन के सदस्य दल विहार में मतदाता सूची के सत्यापन का तो विरोध कर रहे हैं लेकिन चुनाव आयोग पर फर्जी मतदाता बनाने का आरोप लगाकर सड़क से लेकर संसद तक देश में नया तनाव पैदा रहे हैं। यह ठीक वही शैली है जो पाकिस्तान में इमरान खान और बंगलादेश में खालिदा जिया के विरुद्ध अपनाई गई थी। यह आँदोलन ऐसे समय तीव्र हुआ जब अमेरिका ने भारत पर टैरिफ हमला बोला।
विदेशी षड्यंत्र का उत्तर तो भारत दे देगा। यह वही अमेरिका है जिसने अटलजी के समय भारत द्वारा किये गये परमाणु परीक्षण के बाद प्रतिबंध लगाये थे। लेकिन भारत अपनी गति से आगे बढ़ता रहा। इस बार भी अमेरिका के टैरिफ हमले से भारत अपेक्षाकृत अधिक सक्षम होकर निकलेगा। लेकिन भारत को सदैव समस्या आन्तरिक तत्वों से रही। इन्हें आधुनिक शब्दावली में “स्लीपर सेल” कहते हैं। यह स्वयं सामने नहीं आते लेकिन भारत में भारत के ही चेहरों को अपना “मोहरा” बनाते हैं, इसी से विदेशी षड्यंत्र कारी सफल हुये हैं। वर्तमान समय में मतदाता सूची के बहाने उत्पन्न किये जा रहे राजनैतिक तनाव से भी कुछ प्रश्न उठ रहे हैं जो किसी षड्यंत्र की ओर संकेत कर रहे हैं। इस आँदोलन में तीन प्रकार के प्रश्न उठ रहे हैं जिनपर देश के प्रबुद्ध जनों को विचार करना आवश्यक है। पहली तो काँग्रेस और इंडी गठबंधन बिहार में मतदाता सूची का सत्यापन रोकने केलिये पूरी शक्ति लगा रहा है। आशंका है इन प्राँतों में कुछ बांग्लादेशी घुसपैठिये मतदाता बन गये हैं। जिनकी जांच चल रही है। इसे रोकने केलिये उच्चतम न्यायालय का दरबाजा भी खटखटाया गया है। लेकिन दूसरी ओर केवल मीडिया के सामने मतदाता सूची को मुद्दा बनाकर एक धुंध फैलाई जा रही है। फर्जी मतदाता के बहाने कुछ नाम उछाले गये हैं, दो महिलाओं के नाम लिये गये, बनारस में एक सूची भी दिखाई गई। ये नाम सब हिन्दुओं के हैं। काँग्रेस द्वारा प्रचारित सूची में किसी ऐसी बस्ती का नाम नहीं है जो मुस्लिम बाहुल्य हो। तीसरा प्रश्न इस आँदोलन का समय है। काँग्रेस ने आठ अगस्त से बहुत तेजी दिखाई। पहले “प्रेजेंटेशन” दिया, फिर सांसद सड़क पर निकले। नौ अगस्त रक्षाबंधन का दिन था। रक्षाबंधन से जन्माष्टमी तक सनातन त्यौहारों का एक क्रम रहता है। लेकिन काँग्रेस ने पूरे देश का ध्यान त्यौहारों से हटाकर मोदी सरकार और चुनाव आयोग की ओर खींचा। जिस दिन काँग्रेस और उनके साथी भारत की सड़क पर आँदोलन कर रहे थे उन्हीं दिनों पाकिस्तान की ओर से रक्षामंत्री मुनीर भारत को परमाणु हमले की धमकी दे रहे थे। इस बार मुनीर की धमकी ऐसे समय आई जब एक ओर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप टैरिफ के बहाने भारत को धमका रहे थे और दूसरी ओर भारत की सड़कों पर यह आँदोलन इतना तीव्र था कि जन सामान्य का ध्यान अमेरिका और पाकिस्तान की धमकी से हटकर केवल आँदोलन से उत्पन्न तनाव में ही लग गया।
इन दिनों पूरी दुनियाँ के कुछ भागों में सत्ता हथियाने की एक नई शैली विकसित हुई है। इसमें सकारात्मक मुद्दों के आधार पर जन सामान्य में अपना समर्थन नहीं बढ़ाया जाता, अपितु भ्रामक और झूठे मुद्दे उछालकर सरकारों को अस्थिर करने का कुचक्र किया जाता है, संवैधानिक संस्थाओं पर हल्ला बोला जाता है। इस शैली में सत्य पर, तथ्य पर अथवा तर्क पर कोई बात नहीं होती केवल धुंध फैलाई जाती है। ऐसी धुंध कि जिसमें कुछ भी साफ न दिखे, जन सामान्य भ्रमित होकर सड़कों पर आ जाये और सत्ता भयभीत होकर सिमट जाय। रूस में जारशाही के विरुद्ध पूरा वामपंथी आंदोलन इसी शैली पर चला था और इसी शैली से चीन में माओवाद प्रभावी हुआ था। इसी शैली से पाकिस्तान में इमरान खान और बंगलादेश में खालिदा जिया की सत्ता पलट हुआ। काँग्रेस और इंडी गठबंधन के कुछ दल इन दिनों भारत में इसी रास्ते पर चल पड़े हैं। 2014 में केन्द्रीय सत्ता से बाहर होने के बाद काँग्रेस ने जितने भी मुद्दे उठाये गये हैं वे सभी नकारात्मक रहे हैं। उनके निशाने पर पहले प्रधानमंत्री श्रीनरेंद्र मोदी थे। उनको लक्ष्य करके “चौकीदार चोर” जैसे नारे उछाले गये। सीएए को मुद्दा बनाकर देश में साम्प्रदायिक तनाव उत्पन्न करने का प्रयास हुआ। किसान आँदोलन के बहाने गाँवों में असंतोष भड़काने का प्रयास हुआ। ओबीसी आरक्षण का मुद्दा उछालकर देश में सामाजिक अलगाव की रेखा गहरी की गई। लेकिन मोदीजी बिना विचलित हुये भारत राष्ट्र को सशक्त बनाने के अभियान में जुटे रहे। वे विकसित देशों की पंक्ति में भारत को अग्रणी बनाने के संकल्प के साथ आगे बढ़ रहे हैं। यह मोदीजी की संकल्पशीलता और सकारात्मक चिंतन का ही परिणाम था कि विपक्ष द्वारा उछाले गये नकारात्मक मुद्दों का कोई अधिक प्रभाव नहीं पड़ा और मोदीजी के नेतृत्व में तीसरी बार सरकार बनी। 2024 के चुनाव परिणाम के बाद काँग्रेस और उनके सहयोगी दलों ने अपनी नकारात्मक रणनीति को ही विस्तार देकर अधिक आक्रामक बनाया और संवैधानिक संस्थाओं पर हमले तेज किये गये। ये हमले ईडी, सीबीआई, एनआईए पर हुये। सेना और न्यायालय तक को नहीं छोड़ा गया। अब चुनाव आयोग, चुनाव प्रक्रिया और ईवीएम पर अधिक फोकस किया जा रहा है। पहले ईवीएम मशीन को “हैक” करने का शोर मचाया गया था। और अब मतदाता सूची हाथ में लेकर चुनाव आयोग को कटघरे में खड़ा करने का शोर है। काँग्रेस और राहुल गांधी अपनी शिकायत लेकर सिधे चुनाव आयोग नहीं पहुँचे, आयोग ने बुलाया प्रमाण माँगे फिर भी नहीं पहुँचे। लेकिन सड़क से संसद तक अपनी आवाज तेज और तीखी करते रहे।

मतदाता सूची बनाने की प्रक्रिया में काँग्रेस के बीएलए भी शामिल होते हैं

मतदाता सूची तैयार करने की एक प्रक्रिया होती है। मतदाता सूची बनाने अथवा चुनाव प्रक्रिया पूरी करने का काम चुनाव आयोग के निर्देशन में तो होता है लेकिन इसके लिये चुनाव आयोग के पास कोई अपना “स्टाॅफ” नहीं होता। यह काम राज्यों में काम करने वाला प्रशासन तंत्र करता है। देश में कुल 28 राज्य और 8 केन्द्र शासित प्रदेश हैं। प्रशासनिक दृष्टि से इन्हें कुल 780 जिला केन्द्रों में विभाजित किया गया है। जिला प्रशासन का मुखिया कलेक्टर होता है। चुनाव आयोग का मुख्यालय दिल्ली में है और सभी राज्यों की राजधानी में “राज्य निर्वाचन आयोग कार्यालय” तो होते हैं। पर उनमें इतना स्टाॅफ नहीं होता कि यह वे स्वयं यह काम कर सकें। चुनाव आयोग केवल “नीति निर्देशिका” अर्थात “गाइड लाइन” तैयार करता है। जो देश के सभी कलेक्टरों को भेजी जाती है। उसके अनुसार चुनाव प्रक्रिया आरंभ होती है। संबंधित सभी जिला कलेक्टर अपने प्रशासनिक दायित्वों के साथ “जिला निर्वाचन अधिकारी” भी माने जाते हैं। वे ही मतदाता सूची बनाने केलिये घर घर जाकर सर्वे करने अथवा मतदान प्रक्रिया पूरी करने के काम का समन्वय करते हैं। इसमें शिक्षक और पटवारी से लेकर डिप्टी कलेक्टर तक पूरा प्रशासनिक अमला लगता है। ये सब स्थानीय होते हैं। भारत में अलग अलग राज्यों में अलग अलग राजनैतिक दलों की सरकारें हैं। अनेक प्राँतों में भारतीय जनता पार्टी सरकार में भी नहीं हैं। मतदाता सूची तैयार करने का काम केवल प्रशासनिक अमले तक ही सीमित नहीं रहता। इसमें मान्यता प्राप्त दल भी सहभागी होते हैं। जिस प्रकार मतदान प्रक्रिया में प्रत्येक मतदान केन्द्र पर राजनैतिक दलों के प्रतिनिधि सहभागी रहते हैं, उसी प्रकार मतदाता सूची बनाने में भी होते हैं। निर्वाचन अधिकारी के रूप में कलेक्टर की ओर से उस क्षेत्र के सभी मान्यता प्राप्त राजनैतिक दल को पत्र लिखे जाते हैं जिसमें उनसे अपना कोई कार्यकर्ता जोड़ने केलिये कहा जाता है। इस पत्र के आधार पर राजनैतिक दल अपना कार्यकर्ता नियुक्त करते हैं जिन्हें “बीएलए” अर्थात ब्लाक लेवल एजेंट कहा जाता है। सभी दलों के बीएलए के समन्वय से ही मतदाता सूचियाँ तैयार होती हैं।
इस प्रक्रिया से स्पष्ट है कि जहाँ भी मतदाता सूचियाँ तैयार हुईं हैं उनमें काँग्रेस कार्यकर्ता भी बीएलए के रूप में सहभागी रहे हैं। यदि कहीं कोई गड़बड़ी थी तो उसकी शिकायत स्थानीय स्तर पर ही क्यों नहीं की गई। इसके अतिरिक्त एक बात और है। मतदाता सूचियों का अंतिम प्रकाशन पहली बार में कभी नहीं होता। इन्हें तैयार करके पहले सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित किया जाता है, सुझाव और आपत्तियाँ माँगी जातीं हैं। सुझाव और आपत्ति भेजने की भी अंतिम तिथि निर्धारित होती है। इस अवधि में आईं शिकायतों के निराकरण के बाद ही मतदाता सूचियों का अंतिम प्रकाशन होता है। काँग्रेस नेता श्री राहुल गाँधी के हंगामेदार आरोपों से पहले किसी प्रदेश में काँग्रेस के किसी नेता ने कोई शिकायत प्रस्तुत नहीं की।

धुँध फैलाने का सुनियोजित कुचक्र : आरोपों का झूठ भी सामने आया

काँग्रेस की राजनीति अपने वोट और जीत केलिये होती है। वह अपनी सुविधा केलिये मुद्दे भी बदल लेती है। काँग्रेस द्वारा मुद्दे बदलने की घटनाओं से इतिहास भरा है। फिर भी दो ऐसे मुद्दे हैं जो आज के राजनैतिक आकाश में धुँध की भाँति फैले हैं। इनमें जातीय आधारित जन गणना और दूसरा ईवीएम द्वारा मतदान है। काँग्रेस का कभी नारा था- “जात और न पांत पर, मोहर लगेगी हाथ पर”। लेकिन अब जातिवाद की राजनीति उसकी प्राथमिकता पर है। दूसरा ईवीएम द्वारा मतदान। 1989 के चुनाव परिणाम के बाद स्वर्गीय राजीव गाँधी “वैलेट पेपर” के बजाय ईवीएम पर मतदान कराने की माँग उठाई थी। लेकिन अब श्री राहुल गाँधी और पूरी काँग्रेस ईवीएम मशीन को निशाना बना रही है। काँग्रेस अपनी लगातार चुनावी हार से कोई सीख नहीं ले रही। मतदाता में प्रभाव बढ़ाने केलिये कोई सकारात्मक मुद्दा नहीं उठा रही। वह भ्रामक मुद्दे उछालकर सरकार को अस्थिर करने का प्रयास कर रही है। श्री राहुल गाँधी ने मीडिया के सामने एक मनोवैज्ञानिक योजना से काम किया था। वे लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं। स्वाभाविक रूप से मीडिया के कैमरे उनकी ओर होते हैं। उन्होंने पहले भूमिका बनाई और प्रचारित किया वे “बम फोड़ने वाले हैं। बम फोड़ने की बात से पूरे देश की जिज्ञासा जागी। फिर कम्प्यूटर के माध्यम से एक “प्रजेंटेशन” रखा। इस प्रजेंटेशन को मीडिया के माध्यम से पूरे देश ने देखा । उन्होंने अपने प्रजेंटेशन में पांच प्रमुख आरोप लगाये। श्री राहुल गांधी ने कर्नाटक के एक विधानसभा महादेवापुरा का उल्लेख किया और आरोप लगाया कि यहां पर 1,00,250 वोटों की चोरी की गई है। उन्होंने फर्जी वोटर जोड़ने के पांच तरीके बताये। 1-11,965 डुप्लीकेट वोटर बनाए गए। 2- 40,009 मतदाताओं के पते फर्जी हैं। 3- 10,452 वोटर बड़ी संख्या में एक ही पते पर रजिस्टर हैं। 4- 4,132 वोटर बिना फोटो या अवैध फोटो के साथ जोड़े गए। 5- 33,692 नए वोटर फॉर्म-6 का गलत तरीके से जोड़े गए।

अपनी बात के समर्थन में उन्होंने दो महिलाओं के नाम लिये। एक सकुन रानी का राहुल गाँधी का आरोप था कि इस महिला दो बार मतदान किया। दूसरी महिला मन्टी देवी। इनकी आयु 125 साल लिखी है। राहुल ने एक मकान नम्बर बताया जिस पर साठ मतदाताओं के नाम अंकित हैं। उन्होने कुछ पते ऐसे दिखाये जिनपर मकान नम्बर शून्य लिखा था। श्री राहुल गाँधी के आरोपों के आधार पर मीडिया के कैमरे वहाँ पहुँच गये। सकुन रानी ने मीडिया को राहुल जी के आरोप झूठे बताये और कहा कि उन्होने कोई दो बार मतदान नहीं किया। एक बार ही मतदान किया था। उसी प्रकार मन्टी देवी की जन्मतिथि वर्ष 1990 है लेकिन उनकी लिखावट कुछ ऐसी थी जिससे कम्प्यूटर ने 1900 अंकित कर लिया। जिस पते पर साठ मतदाता अंकित किये गये थे। वह मकान मालिक काँग्रेस समर्थक निकला। तीसरा मकान नम्बर का शून्य होना। भारत गाँवों का देश हैं। यहाँ गांव में लाखों ऐसे घर हैं जिनका कोई नम्बर नहीं होता। कम्प्यूटर उन्हें शून्य ही लिख देता है। वोट चोरी के श्री राहुल गाँधी ने जो पाँच विन्दु उछाले थे वे उसी दिन शाम ढलते ढलते ही भ्रामक प्रमाणित हो गये थे। फिर भी काँग्रेस अपनी बात पर अड़ी रही।

चुनाव आयोग ने सभी भ्रामक आरोपों को भ्रामक बताया

भारत के चुनाव आयोग ने राहुल गांधी द्वारा जारी मतदाता सूची को भ्रामक बताया। चुनाव आयोग ने ‘निराधार’ और ‘गैर-जिम्मेदाराना’ बताया। आयोग ने यह भी कहा कि श्री राहुल गांधी ने व्यक्तिगत रूप से कभी कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई। चुनाव आयोग ने अपने आधिकारिक एक्स सोशल मीडिया पर कांग्रेस की पोस्ट को साझा करते हुए लिखा, यह बयान पूरी तरह भ्रामक है। अगर राहुल गांधी को लगता है कि उनकी तरफ से साझा की जा रही सूची सही है तो उन्हें कानूनी प्रक्रिया का पालन करने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। उन्हें बिना देरी कर्नाटक के मुख्य निर्वाचन अधिकारी को जवाब भेजना चाहिए। आयोग ने कहा कि श्री राहुल गाँधी अपने द्वारा उठाए गए मुद्दों पर हस्ताक्षरित शपथ पत्र दें अथवा देश से माफी मांगे।

काँग्रेस समर्थक भी सहमत नहीं हुये राहुल गाँधी के आरोप से

श्री राहुल गाँधी द्वारा वोट चोरी के आरोपों की सच्चाई तो शाम तक सामने आ ही गई थी। उनके आरोपों से अनेक काँग्रेस जन और भाजपा एवं प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के आलोचक भी सहमत नहीं हुये। इनमें सबसे पहला नाम काँग्रेस की कर्नाटक सरकार में सहकारिता मंत्री के एन राजन्ना का है। उन्होंने महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र में “वोट चोरी” के लिए अपनी ही पार्टी को दोषी माना और कहा कि ये “अनियमितताएं हमारी आंखों के सामने हुईं”। उन्होंने यह भी कहा कि “यह हमारे लिए शर्म की बात कि हम निगरानी नहीं कर सके”। दूसरा बड़ा नाम चर्चित पत्रकार श्री राजदीप सरदेसाई का है। उन्होंने कहा कि “यदि वोट चोरी होती तो भाजपा 240 पर नहीं रूकती 340 भी हो सकती थी” तीसरा नाम एआईएमआईएम के नेता औबेसुद्दीन उबैसी का है। उनका कहना है कि इससे काँग्रेस को नुकसान होगा।

काँग्रेस अभी रुकेगी नहीं इस मुद्दे को आगे भी बढ़ा सकती है

श्री राहुल गाँधी के आरोपों का चुनाव आयोग की ओर से भी खंडन आ गया और मीडिया ने सच्चाई को भी सामने ला दिया है। इन दोनों बातों से संतोष तो किया जा सकता है लेकिन यह मुद्दा अभी समाप्त नहीं हुआ है। इस बात की संभावना प्रबल है कि काँग्रेस इसे आगे बढ़ायेगी। धुंध की उस राजनीति का एक और सिद्धांत है “एक झूठ को सौ बार बोलो तो लोग सच समझने लगते हैं”। काँग्रेस इस नीति पर चलकर इस मुद्दे और आगे बढ़ा सकती है। इसे दो बातों से समझा जा सकता है। सबसे पहला तो यही है कि कर्नाटक सरकार के मंत्री राजन्ना सच्चाई सामने लाये तो उन्हें मंत्री पद से बर्खास्त किया गया। मुख्यमंत्री त्यागपत्र लेना चाहते थे लेकिन काँग्रेस महासचिव वेणुगोपाल ने मुख्यमंत्री सीतारमैया से बात की और बर्खास्त करने का निर्देश दिया। इस निर्णय से काँग्रेस में अब असहमति का स्वर नहीं उठेगा अपितु इस आरोप को और तेजी से आगे बढ़ाने केलिये काँग्रेस जन आगे आयेंगे। कर्नाटक के मंत्री को बर्खास्त करने के बाद एक समाचार बनारस से आया। बनारस में काँग्रेसजनों ने अपने पराजित प्रत्याशी अजय राज के सम्मान में जुलूस निकाला। मालाएँ पहनाई और मोदीजी की जीत का आधार वोट चोरी बताया। अजय राज केवल अपने स्वागत तक ही नहीं रूके। उन्होने बनारस के राम जानकी मठ के पते पर अंकित मतदाताओं की सूची जारी की। इस सूची में साठ से अधिक मतदाताओं के नाम अंकित हैं और पिता के नाम के स्थान पर एक ही नाम “रामकमल दास” लिखा है। अजयराज ने इसे वोट चोरी का प्रमाण बताया। वस्तुतः राम जानकी मठ के महंत रामकमल दास जी हैं और मतदाता सूची में जितने नाम हैं वे सब महंत जी के शिष्य हैं और इसी मठ में रहते हैं। संन्यास के बाद पिता के स्थान पर पिता के रूप में गुरू का नाम लिखने की परंपरा हैं। इसे कानूनी मान्यता भी है। इस बात को सब जानते भी हैं फिर भी मीडिया में स्थान बनाने केलिये इसे उछाला गया। बनारस के अतिरिक्त उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ने भी कुछ क्षेत्रों अपने पराजित प्रत्याशियों का स्वागत किया।
सच्चाई कहने पर कर्नाटक में अपने मंत्री को बर्खास्त करना। बनारस में अपने पराजित प्रत्याशी का स्वागत और मठ के मतदाताओं को फर्जी बताना इस बात के संकेत हैं कि काँग्रेस अभी रुकेगी नहीं। वह इसे आगे बढ़ायेगी।

चुनाव आयोग के दुरुपयोग से पुराना नाता है काँग्रेस का

काँग्रेस नेता राहुल गाँधी चुनाव आयोग पर “वोट चोरी” का आरोप लगा रहे हैं। उनके द्वारा अब तक उछाले गये आरोपों में कोई भी प्रमाणित नहीं हो सका लेकिन इतिहास की कुछ घटनाएँ ऐसी हैं जो काँग्रेस को ही चुनाव आयोग का दुरुपयोग करने के कटघरे में खड़ा करती हैं। श्री राहुल गाँधी द्वारा चुनाव आयोग पर की गई पत्रकार वार्ता का उत्तर केन्द्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने भी पत्रकार वार्ता में ही दिया। उन्होंने पहला उदाहरण बाबा साहब अंबेडकर के चुनाव हारने का दिया और बताया कि अंबेडकर जी केवल 14561 वोटों से चुनाव हारे जबकि इस चुनाव में 74,333 वोट निरस्त किए गए थे। इसके विरुद्ध आंबेडकर जी ने 18 पन्नों की याचिका भी लगाई। इतने वोटों का निरस्त होना सामान्य घटना नहीं है यह चुनाव आयुक्त की भूमिका पर एक बड़ा प्रश्न उपस्थित करती है। एक अन्य घटना 1971 में श्रीमती इंदिरा गाँधी के रायबरेली से शासकीय साधनों का दुरूपयोग करके लोकसभा चुनाव जीतने की है। न्यायालय ने आरोप प्रमाणित माने और चुनाव को निरस्त कर दिया था। एक घटना श्रीमती सोनिया गाँधी के मतदाता बनने की है। 1980 की मतदाता सूची में श्रीमती सोनिया गांधी का नाम दर्ज था। लेकिन वे तब तक भारत की नागरिक नहीं बनी थीं। सोनिया जी का राजीव जी से विवाह तो 1968 में हो गया था लेकिन विवाह के पन्द्रह वर्ष तक सोनिया जी इटली की नागरिक ही रहीं थीं। भारत की विधिवत नागरिक वे 1983 में बनीं।

मतदान की प्रक्रिया गोपनीय होती है। वोट अकेले में डाला जाता है लेकिन अब सोशल मीडिया पर कुछ तस्वीरे और वीडियों वायरल हो रहे हैं जिसमें 1991 मतदान बूथ पर श्री राजीव गाँधी, श्रीमती सोनिया गाँधी और सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेता राजेश खन्ना दिखाई दे रहें हैं। एक और किसी मतदान का फोटो वायरल हो रहा है जिसमें श्रीमती सोनिया गाँधी और श्री राहुल गाँधी साथ दिखाई दे रहे हैं। यह मतदान के गोपनीयता कानून का उल्लंघन है लेकिन चुनाव आयुक्त ने इसका संज्ञान नहीं लिया। जो चुनाव आयुक्त की अनुकूलता के बिना संभव नहीं है।
काँग्रेस शासन काल में कुछ आयुक्तों को जिस प्रकार पद प्रतिष्ठा दी गई उससे इस आरोप को बल मिलता है कि काँग्रेस शासन काल में चुनाव आयोग कि दुरुपयोग हुआ। जिन प्रमुख चुनाव आयुक्तों अतिरिक्त पद प्रतिष्ठा मिली उनमें भारत के आठवें चुनाव आयुक्त रहे राम कृष्ण त्रिवेदी भी हैं। उन्हें 1986 में गुजरात का राज्यपाल बनाया गया था। भारत की नौवीं चुनाव आयुक्त रमादेवी रहीं। बाद में इनको कर्नाटक राज्यपाल बनाया गया। रमा देवी के बाद टीएन शेषन चुनाव आयुक्त बने। शेषन अपने समय के सबसे चर्चित चुनाव आयुक्त रहे हैं। उन्हें चुनाव सुधारों के लिये जाना जाता है। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस टिकिट पर गांधीनगर निर्वाचन क्षेत्र से 1999 का लोकसभा चुनाव लड़ा था। भारत के ग्यारहवें मुख्य चुनाव आयुक्त रहे एम एस गिल भी सेवानिवृत्ति के बाद कांग्रेस में शामिल हो गए। वे राज्यसभा सदस्य बने। उन्हें 2008 में पहले युवा एवं खेल मंत्री और 2011 में सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्री बनाया गया।

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रमेश शर्मा

रमेश शर्मा

श्री शर्मा का पत्रकारिता अनुभव लगभग 52 वर्षों का है। प्रिंट और इलेक्ट्रानिक दोनों माध्यमों में उन्होंने काम किया है। दैनिक जागरण भोपाल, राष्ट्रीय सहारा दिल्ली सहारा न्यूज चैनल एवं वाँच न्यूज मध्यप्रदेश छत्तीसगढ प्रभारी रहे। वर्तमान में समाचार पत्रों में नियमित लेखन कर रहे हैं।

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