मतदाता सूची बनाने की प्रक्रिया में काँग्रेस के बीएलए भी शामिल होते हैं
मतदाता सूची तैयार करने की एक प्रक्रिया होती है। मतदाता सूची बनाने अथवा चुनाव प्रक्रिया पूरी करने का काम चुनाव आयोग के निर्देशन में तो होता है लेकिन इसके लिये चुनाव आयोग के पास कोई अपना “स्टाॅफ” नहीं होता। यह काम राज्यों में काम करने वाला प्रशासन तंत्र करता है। देश में कुल 28 राज्य और 8 केन्द्र शासित प्रदेश हैं। प्रशासनिक दृष्टि से इन्हें कुल 780 जिला केन्द्रों में विभाजित किया गया है। जिला प्रशासन का मुखिया कलेक्टर होता है। चुनाव आयोग का मुख्यालय दिल्ली में है और सभी राज्यों की राजधानी में “राज्य निर्वाचन आयोग कार्यालय” तो होते हैं। पर उनमें इतना स्टाॅफ नहीं होता कि यह वे स्वयं यह काम कर सकें। चुनाव आयोग केवल “नीति निर्देशिका” अर्थात “गाइड लाइन” तैयार करता है। जो देश के सभी कलेक्टरों को भेजी जाती है। उसके अनुसार चुनाव प्रक्रिया आरंभ होती है। संबंधित सभी जिला कलेक्टर अपने प्रशासनिक दायित्वों के साथ “जिला निर्वाचन अधिकारी” भी माने जाते हैं। वे ही मतदाता सूची बनाने केलिये घर घर जाकर सर्वे करने अथवा मतदान प्रक्रिया पूरी करने के काम का समन्वय करते हैं। इसमें शिक्षक और पटवारी से लेकर डिप्टी कलेक्टर तक पूरा प्रशासनिक अमला लगता है। ये सब स्थानीय होते हैं। भारत में अलग अलग राज्यों में अलग अलग राजनैतिक दलों की सरकारें हैं। अनेक प्राँतों में भारतीय जनता पार्टी सरकार में भी नहीं हैं। मतदाता सूची तैयार करने का काम केवल प्रशासनिक अमले तक ही सीमित नहीं रहता। इसमें मान्यता प्राप्त दल भी सहभागी होते हैं। जिस प्रकार मतदान प्रक्रिया में प्रत्येक मतदान केन्द्र पर राजनैतिक दलों के प्रतिनिधि सहभागी रहते हैं, उसी प्रकार मतदाता सूची बनाने में भी होते हैं। निर्वाचन अधिकारी के रूप में कलेक्टर की ओर से उस क्षेत्र के सभी मान्यता प्राप्त राजनैतिक दल को पत्र लिखे जाते हैं जिसमें उनसे अपना कोई कार्यकर्ता जोड़ने केलिये कहा जाता है। इस पत्र के आधार पर राजनैतिक दल अपना कार्यकर्ता नियुक्त करते हैं जिन्हें “बीएलए” अर्थात ब्लाक लेवल एजेंट कहा जाता है। सभी दलों के बीएलए के समन्वय से ही मतदाता सूचियाँ तैयार होती हैं।
इस प्रक्रिया से स्पष्ट है कि जहाँ भी मतदाता सूचियाँ तैयार हुईं हैं उनमें काँग्रेस कार्यकर्ता भी बीएलए के रूप में सहभागी रहे हैं। यदि कहीं कोई गड़बड़ी थी तो उसकी शिकायत स्थानीय स्तर पर ही क्यों नहीं की गई। इसके अतिरिक्त एक बात और है। मतदाता सूचियों का अंतिम प्रकाशन पहली बार में कभी नहीं होता। इन्हें तैयार करके पहले सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित किया जाता है, सुझाव और आपत्तियाँ माँगी जातीं हैं। सुझाव और आपत्ति भेजने की भी अंतिम तिथि निर्धारित होती है। इस अवधि में आईं शिकायतों के निराकरण के बाद ही मतदाता सूचियों का अंतिम प्रकाशन होता है। काँग्रेस नेता श्री राहुल गाँधी के हंगामेदार आरोपों से पहले किसी प्रदेश में काँग्रेस के किसी नेता ने कोई शिकायत प्रस्तुत नहीं की।
धुँध फैलाने का सुनियोजित कुचक्र : आरोपों का झूठ भी सामने आया
काँग्रेस की राजनीति अपने वोट और जीत केलिये होती है। वह अपनी सुविधा केलिये मुद्दे भी बदल लेती है। काँग्रेस द्वारा मुद्दे बदलने की घटनाओं से इतिहास भरा है। फिर भी दो ऐसे मुद्दे हैं जो आज के राजनैतिक आकाश में धुँध की भाँति फैले हैं। इनमें जातीय आधारित जन गणना और दूसरा ईवीएम द्वारा मतदान है। काँग्रेस का कभी नारा था- “जात और न पांत पर, मोहर लगेगी हाथ पर”। लेकिन अब जातिवाद की राजनीति उसकी प्राथमिकता पर है। दूसरा ईवीएम द्वारा मतदान। 1989 के चुनाव परिणाम के बाद स्वर्गीय राजीव गाँधी “वैलेट पेपर” के बजाय ईवीएम पर मतदान कराने की माँग उठाई थी। लेकिन अब श्री राहुल गाँधी और पूरी काँग्रेस ईवीएम मशीन को निशाना बना रही है। काँग्रेस अपनी लगातार चुनावी हार से कोई सीख नहीं ले रही। मतदाता में प्रभाव बढ़ाने केलिये कोई सकारात्मक मुद्दा नहीं उठा रही। वह भ्रामक मुद्दे उछालकर सरकार को अस्थिर करने का प्रयास कर रही है। श्री राहुल गाँधी ने मीडिया के सामने एक मनोवैज्ञानिक योजना से काम किया था। वे लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं। स्वाभाविक रूप से मीडिया के कैमरे उनकी ओर होते हैं। उन्होंने पहले भूमिका बनाई और प्रचारित किया वे “बम फोड़ने वाले हैं। बम फोड़ने की बात से पूरे देश की जिज्ञासा जागी। फिर कम्प्यूटर के माध्यम से एक “प्रजेंटेशन” रखा। इस प्रजेंटेशन को मीडिया के माध्यम से पूरे देश ने देखा । उन्होंने अपने प्रजेंटेशन में पांच प्रमुख आरोप लगाये। श्री राहुल गांधी ने कर्नाटक के एक विधानसभा महादेवापुरा का उल्लेख किया और आरोप लगाया कि यहां पर 1,00,250 वोटों की चोरी की गई है। उन्होंने फर्जी वोटर जोड़ने के पांच तरीके बताये। 1-11,965 डुप्लीकेट वोटर बनाए गए। 2- 40,009 मतदाताओं के पते फर्जी हैं। 3- 10,452 वोटर बड़ी संख्या में एक ही पते पर रजिस्टर हैं। 4- 4,132 वोटर बिना फोटो या अवैध फोटो के साथ जोड़े गए। 5- 33,692 नए वोटर फॉर्म-6 का गलत तरीके से जोड़े गए।
चुनाव आयोग ने सभी भ्रामक आरोपों को भ्रामक बताया
भारत के चुनाव आयोग ने राहुल गांधी द्वारा जारी मतदाता सूची को भ्रामक बताया। चुनाव आयोग ने ‘निराधार’ और ‘गैर-जिम्मेदाराना’ बताया। आयोग ने यह भी कहा कि श्री राहुल गांधी ने व्यक्तिगत रूप से कभी कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई। चुनाव आयोग ने अपने आधिकारिक एक्स सोशल मीडिया पर कांग्रेस की पोस्ट को साझा करते हुए लिखा, यह बयान पूरी तरह भ्रामक है। अगर राहुल गांधी को लगता है कि उनकी तरफ से साझा की जा रही सूची सही है तो उन्हें कानूनी प्रक्रिया का पालन करने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। उन्हें बिना देरी कर्नाटक के मुख्य निर्वाचन अधिकारी को जवाब भेजना चाहिए। आयोग ने कहा कि श्री राहुल गाँधी अपने द्वारा उठाए गए मुद्दों पर हस्ताक्षरित शपथ पत्र दें अथवा देश से माफी मांगे।
काँग्रेस समर्थक भी सहमत नहीं हुये राहुल गाँधी के आरोप से
श्री राहुल गाँधी द्वारा वोट चोरी के आरोपों की सच्चाई तो शाम तक सामने आ ही गई थी। उनके आरोपों से अनेक काँग्रेस जन और भाजपा एवं प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के आलोचक भी सहमत नहीं हुये। इनमें सबसे पहला नाम काँग्रेस की कर्नाटक सरकार में सहकारिता मंत्री के एन राजन्ना का है। उन्होंने महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र में “वोट चोरी” के लिए अपनी ही पार्टी को दोषी माना और कहा कि ये “अनियमितताएं हमारी आंखों के सामने हुईं”। उन्होंने यह भी कहा कि “यह हमारे लिए शर्म की बात कि हम निगरानी नहीं कर सके”। दूसरा बड़ा नाम चर्चित पत्रकार श्री राजदीप सरदेसाई का है। उन्होंने कहा कि “यदि वोट चोरी होती तो भाजपा 240 पर नहीं रूकती 340 भी हो सकती थी” तीसरा नाम एआईएमआईएम के नेता औबेसुद्दीन उबैसी का है। उनका कहना है कि इससे काँग्रेस को नुकसान होगा।
काँग्रेस अभी रुकेगी नहीं इस मुद्दे को आगे भी बढ़ा सकती है
श्री राहुल गाँधी के आरोपों का चुनाव आयोग की ओर से भी खंडन आ गया और मीडिया ने सच्चाई को भी सामने ला दिया है। इन दोनों बातों से संतोष तो किया जा सकता है लेकिन यह मुद्दा अभी समाप्त नहीं हुआ है। इस बात की संभावना प्रबल है कि काँग्रेस इसे आगे बढ़ायेगी। धुंध की उस राजनीति का एक और सिद्धांत है “एक झूठ को सौ बार बोलो तो लोग सच समझने लगते हैं”। काँग्रेस इस नीति पर चलकर इस मुद्दे और आगे बढ़ा सकती है। इसे दो बातों से समझा जा सकता है। सबसे पहला तो यही है कि कर्नाटक सरकार के मंत्री राजन्ना सच्चाई सामने लाये तो उन्हें मंत्री पद से बर्खास्त किया गया। मुख्यमंत्री त्यागपत्र लेना चाहते थे लेकिन काँग्रेस महासचिव वेणुगोपाल ने मुख्यमंत्री सीतारमैया से बात की और बर्खास्त करने का निर्देश दिया। इस निर्णय से काँग्रेस में अब असहमति का स्वर नहीं उठेगा अपितु इस आरोप को और तेजी से आगे बढ़ाने केलिये काँग्रेस जन आगे आयेंगे। कर्नाटक के मंत्री को बर्खास्त करने के बाद एक समाचार बनारस से आया। बनारस में काँग्रेसजनों ने अपने पराजित प्रत्याशी अजय राज के सम्मान में जुलूस निकाला। मालाएँ पहनाई और मोदीजी की जीत का आधार वोट चोरी बताया। अजय राज केवल अपने स्वागत तक ही नहीं रूके। उन्होने बनारस के राम जानकी मठ के पते पर अंकित मतदाताओं की सूची जारी की। इस सूची में साठ से अधिक मतदाताओं के नाम अंकित हैं और पिता के नाम के स्थान पर एक ही नाम “रामकमल दास” लिखा है। अजयराज ने इसे वोट चोरी का प्रमाण बताया। वस्तुतः राम जानकी मठ के महंत रामकमल दास जी हैं और मतदाता सूची में जितने नाम हैं वे सब महंत जी के शिष्य हैं और इसी मठ में रहते हैं। संन्यास के बाद पिता के स्थान पर पिता के रूप में गुरू का नाम लिखने की परंपरा हैं। इसे कानूनी मान्यता भी है। इस बात को सब जानते भी हैं फिर भी मीडिया में स्थान बनाने केलिये इसे उछाला गया। बनारस के अतिरिक्त उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ने भी कुछ क्षेत्रों अपने पराजित प्रत्याशियों का स्वागत किया।
सच्चाई कहने पर कर्नाटक में अपने मंत्री को बर्खास्त करना। बनारस में अपने पराजित प्रत्याशी का स्वागत और मठ के मतदाताओं को फर्जी बताना इस बात के संकेत हैं कि काँग्रेस अभी रुकेगी नहीं। वह इसे आगे बढ़ायेगी।
चुनाव आयोग के दुरुपयोग से पुराना नाता है काँग्रेस का
काँग्रेस नेता राहुल गाँधी चुनाव आयोग पर “वोट चोरी” का आरोप लगा रहे हैं। उनके द्वारा अब तक उछाले गये आरोपों में कोई भी प्रमाणित नहीं हो सका लेकिन इतिहास की कुछ घटनाएँ ऐसी हैं जो काँग्रेस को ही चुनाव आयोग का दुरुपयोग करने के कटघरे में खड़ा करती हैं। श्री राहुल गाँधी द्वारा चुनाव आयोग पर की गई पत्रकार वार्ता का उत्तर केन्द्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने भी पत्रकार वार्ता में ही दिया। उन्होंने पहला उदाहरण बाबा साहब अंबेडकर के चुनाव हारने का दिया और बताया कि अंबेडकर जी केवल 14561 वोटों से चुनाव हारे जबकि इस चुनाव में 74,333 वोट निरस्त किए गए थे। इसके विरुद्ध आंबेडकर जी ने 18 पन्नों की याचिका भी लगाई। इतने वोटों का निरस्त होना सामान्य घटना नहीं है यह चुनाव आयुक्त की भूमिका पर एक बड़ा प्रश्न उपस्थित करती है। एक अन्य घटना 1971 में श्रीमती इंदिरा गाँधी के रायबरेली से शासकीय साधनों का दुरूपयोग करके लोकसभा चुनाव जीतने की है। न्यायालय ने आरोप प्रमाणित माने और चुनाव को निरस्त कर दिया था। एक घटना श्रीमती सोनिया गाँधी के मतदाता बनने की है। 1980 की मतदाता सूची में श्रीमती सोनिया गांधी का नाम दर्ज था। लेकिन वे तब तक भारत की नागरिक नहीं बनी थीं। सोनिया जी का राजीव जी से विवाह तो 1968 में हो गया था लेकिन विवाह के पन्द्रह वर्ष तक सोनिया जी इटली की नागरिक ही रहीं थीं। भारत की विधिवत नागरिक वे 1983 में बनीं।
काँग्रेस शासन काल में कुछ आयुक्तों को जिस प्रकार पद प्रतिष्ठा दी गई उससे इस आरोप को बल मिलता है कि काँग्रेस शासन काल में चुनाव आयोग कि दुरुपयोग हुआ। जिन प्रमुख चुनाव आयुक्तों अतिरिक्त पद प्रतिष्ठा मिली उनमें भारत के आठवें चुनाव आयुक्त रहे राम कृष्ण त्रिवेदी भी हैं। उन्हें 1986 में गुजरात का राज्यपाल बनाया गया था। भारत की नौवीं चुनाव आयुक्त रमादेवी रहीं। बाद में इनको कर्नाटक राज्यपाल बनाया गया। रमा देवी के बाद टीएन शेषन चुनाव आयुक्त बने। शेषन अपने समय के सबसे चर्चित चुनाव आयुक्त रहे हैं। उन्हें चुनाव सुधारों के लिये जाना जाता है। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस टिकिट पर गांधीनगर निर्वाचन क्षेत्र से 1999 का लोकसभा चुनाव लड़ा था। भारत के ग्यारहवें मुख्य चुनाव आयुक्त रहे एम एस गिल भी सेवानिवृत्ति के बाद कांग्रेस में शामिल हो गए। वे राज्यसभा सदस्य बने। उन्हें 2008 में पहले युवा एवं खेल मंत्री और 2011 में सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्री बनाया गया।