आचार्य विष्णु श्रीहरि
हिन्दू संत यति नरसिम्हानंद सरस्वती के जीवन पर खतरा उत्पन्न हो गया है। तथाकथित बयानबाजी को लेकर तन मन से जुदा की मुस्लिम हिंसा की मानसिकता उनके जीवन के पीछे लग गयी है। ईश निदंा को लेकर फतवे जारी हुए हैं। दर्जनों मुकदमें दर्ज हो चुके हैं। उनके जीवन को सुरक्षित करने के लिए राजधर्म सक्रिय होगा या नहीं, यह कहना मुश्किल है। राजधर्म की सुरक्षा में भी उनका जीवन सुरक्षित रह पायेगा, या नहीं? क्योंकि हमारे सामने जो उदाहरण उपस्थित हैं वे उदाहरण काफी हिंसक हैं, डरावने हैं और मानवता को शर्मसार करने वाले हैं, बर्बर मुस्लिम हिंसा ने तथाकथित ईश निंदा के पात्रों का खून बहाया है, उनका हिंसक अंत किया है। सिर्फ विदेशों में ही नहीं बल्कि भारत में इसके कई प्रमाण है। कमलेश तिवारी से लेकर सलमान रश्ती तक एक लंबी सूची है। चिंता का विषय यह है कि कुख्यात विखंडनकारी शायर और मुस्लिम हिंसक गोलबंदी का संदेश देने वाला इकबाल के पदचिन्हों पर चलते हुए मुस्लिम आबादी इस्राइल के खिलाफ हिंसक गोलबंदी कर भारत के हितों को लहूलुहान कर रही हैं। शायर इकबाल ने पाकिस्तान की अवधारणा को जन्म दिया था और कहा था कि ‘ हम हैं मुसल्मां और सारा जहां है हमारा‘। कहने का अर्थ यह है कि भारत के मुस्लिम इस्राइल के प्रश्न पर इकबाल की मुस्लिम गोलबंदी और काफिर विरोध की नीति पर चल निकले हैं।
फिलहाल यति नरसिम्हानंद सरस्वती के कथित टिप्पणी पर मजहबी राजनीति गर्म है, मुस्लिम हिंसक राजनीति सक्रिय है और जहरीली है। खासकर मुस्लिम नेता उकसाने और हिंसा का आधार बनाने के लिए फतवे जारी कर रहे हैं और गर्म बयानबाजी का सहारा ले रहे हैं और अपने आप को कानून के उपर समझने का अपराध भी सरेआम कर रहे हैं। बयानबाजी कैसी है और बयानबाजी करने वाले मुस्लिम नेता कौन-कौन हैं? यह भी देख लीजिये। यति नरसिम्हानंद के खिलाफ हिंसक बयानबाजी करने वाले मुस्लिम नेताओं में असरूउदीन ओवैशी हैं, जम्मू-कश्मीर की नेशनल कांन्फ्रेंस के नेता हैं और जमीयत उलेमा ए हिन्द के अध्यक्ष अरसद मदनी भी हैं। इन सभी ने यति नरसिम्हानंद सरस्वती को लेकर जन आक्रोश भड़काने वाली बयानबाजी को जन्म दिया है। इसका असर भी तत्काल दिखा। मुस्लिम नेताओं के हिंसक बयानबाजी और हिंसा के लिए प्रेरित करना का दुष्परिणाम यह निकला कि मुस्लिम गोलबंदी शुरू हो गयी, मुस्लिम हिंसक भीड़ डरावनी स्थितियां बनाने लगी। यति नरसिम्हानंद का हिंसक अंत करने के लिए सक्रिय हो गयी।
गाजियाबाद के डासना मंदिर पर हिंसक हमले हुए, पत्थरबाजी हुई और तन से जुदा मन के नारे लगे हैं। पुलिस अगर सक्रिय नहीं होती तो फिर डासना मंदिर को भी अपवित्र किया जा सकता था, क्षति पहुंचायी जा सकती थी और आसपास के हिन्दू आबादी को भी निशाना बनाने की कोशिश होती। अगर यूपी में योगी आदित्यनाथ की सरकार नहीं होती और पुलिस को योगी आदित्यनाथ का डर नहीं होता तो निश्चित मानिये कि सुरक्षा व्यवस्था में बहुत उदासीनता बरती जाती और बहुत बडी, लोमहर्षक घटना को अंजाम देने दिया जाता। बर्बर और हिंसक मुस्लिम भीड़ को भी थोड़ी डर थी कि व्यापक हिंसा उनकी आबादी को भी नुकसान पहुंचा सकती है, कानूनी रूप से भी उन्हें दंडित होना पडेगा। फिर भी यह प्रसंग शांत नहीं होगा, अशांति का कारण बनेगा, हिंसा का कारण बनेगा। सबसे बड़ी बात यह है कि यति नरसिम्हानंद सरस्वती के जीवन की सुरक्षा एक यक्ष प्रश्न बन गया है, सरकार और पुलिस के लिए एक चुनौती बन गयी है।
यति नरसिम्हानंद सरस्वती कोई साधारण संत या व्यक्ति नहीं हैं। ये जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर हैं और डासन देवी मंदिर के मंहत हैं। ये हिन्दुत्व के प्रहरी हैं और राष्ट्रभक्ति के प्रेरक शख्सियत भी हैं। इनकी पहचान राष्ट्रधर्म को सुनिश्चित कराने वाली शख्सियत के रूप में हैं। जहां भी मुस्लिम हिंसा होती है, हिन्दुओं का उत्पीड़न होता है वहां पर इनकी उपस्थिति अनिवार्य तौर पर होती है। देश में राष्ट्र हित को लहूलुहान करने और राष्ट्र की नीति को प्रभावित करने के लिए एक बहुत बड़ा मुस्लिम अभियान चल रहा है। हिज्जुबुल्लाह का आतंकवादी सरगना हसन नसरल्लाह और हमास नेता इस्माइल हनिया के मारे जाने के बाद भारत के मुस्लिम बेलगाम हो गये हैं, हिंसक हो गये हैं, प्रदर्शन कर रहे हैं और हिन्दुओं को डरा धमका रहे हैं। हसन नसरल्लाह और इस्लमाइल हनिया हमारे देश का नागरिक था क्या, क्या ये महात्मा गांधी थे, क्या ये मानवता के पुजारी थे? ये इस्राइल के दुश्मन थे और इस्राइल ने इन्हें मार गिराया है। फिर भारत के मुसलमानों को इनके प्रति हिंसक सहानुभूति कयों? इसी को लेकर यति नरसिम्हाराव की नाराजगी थी।
यह नहीं हो सकता है कि अरशद मदनी और असरूउद्ीन ओवैशी और फारूख अब्दुला जैसों की हिंसक बयानबाजों और उनकी हिंसक मानसिकताओं का कोई विरोध नहीं होगा। अगर ऐसा विश्वास और खुशफहमी मुस्लिम नेता रखते हैं व इस तरह की मानसिकता को पालते हैं तो गलत है और इसे सभ्य सोच नहीं कहंेगे। इनकी हिंसक और खतरनाक बयानबाजी की प्रतिक्रिया भी हुई है। प्रतिक्रिया अभी शाब्दिक है लेकिन प्रतिक्रिया भी हिंसक हो सकती है। गाजियाबाद के लोनी क्षेत्र के भाजपा विधायक नंद किशोर गुर्जर की प्रतिक्रिया बहुत ही उल्लेखनीय है, उनकी प्रतिक्रिया कानून और शालीनता के दायरे में हैं और बेहद ही जरूरी है। अब यहां प्रश्न उठता है कि यति नरसिम्हानंद को लेकर भाजपा विधायक नंद किशोर गुर्जर की प्रतिक्रिया क्या है और उन्होंने हिंसक बयानबाजी कर मुसलमानों को भड़काने वाले अरशद मदनी और असरूउद्ीन ओवैशी को किस प्रकार से चुनौती दी है और इन जैसों की हिंसक प्रतिक्रियाओं को किस प्रकार से गैर जरूरी और कानून के शासन के लिए हानिकारक बताया है। नंदकिशोर गुर्जर का कहना है कि यति नरसिम्हानंद सरस्वती के जीवन की रक्षा की जानी चाहिए और उनके जीवन को संकट मे डालने का आधार बनाने वाले अरशद मदनी और ओवैशी जैसे मुस्लिम नेताओं को गिरफ्तार कर जेलों में डाला जाना चाहिए। हिंसा करने की छूट देना घातक है। नंद किशोर गुर्जर का कहना है कि मुस्लिम बर्बर, हिंसक भीड ने़ डासना के मंदिर पर हमला करने का अपराध क्यों किया, मुस्लिम बर्बर और आतातायी भीड़ ने मंदिर पर पत्थरबाजी क्यों किया, पत्थरबाजी करने वाली मुस्लिम हिंसक भीड़ सभ्य नागरिक कैसे हो सकते हैं, शांति के पुजारी कैसे हो सकते हैं? इनको और इनको भडकाने वाले मुसिलम नेताओं को जेलों में डाला जाना चाहिए।
म्ंदिर पर हमला करने का औचित्य क्या है? क्या मंदिर ने खिलाफ में कोई बयानबाजी की थी। मंदिर तो एक प्रतीक है, पूजा पाठ करने का स्थान है और श्रद्धा जताने की जगह है। फिर मंदिर को कसुरवार कैसे ठहरा दिया गया। मंदिर पर गुस्सा निकालना और अपनी हिंसा का शिकार बनाने की मुस्लिम अपराध और मानसिकता बहुत ही खतरनाक है। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि हिन्दुओं को ललकारने जैसा है, हिन्दुओं को डराने जैसा है। हिन्दू ऐसी हिंसा पर भी प्रतिक्रिया नहीं देते हैं और यह मानते हैं कि इन्हें आज न कल खुद ज्ञान आ जायेगा और ऐसी हिंसा से वे खुद अलग होंगे। पर इसका अर्थ यह नहीं है कि हिन्दू अति से नहीं सक्रिय होंगे। अति सर्वत्र वर्जते। अति से घबड़ा कर हिन्दू अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए सक्रिय भी हो सकते हैं और प्रतिक्रिया भी दे सकते हैं। हिन्दू भी प्रतिक्रियावादी हो जायेंगे तो फिर भारत गृह युद्ध की स्थिति में तब्दील हो जायेगा और अधिकाधिक नुकसान किसका होगा? गुजरात में इसका उदाहरण हमें कभी देखने को मिला था। मुस्लिम हिंसा और अपराध चरम पर था, मुस्लिम आबादी अपने आप को शंहशाह समझ बैठी थी। इसी मानसिकता में मुस्लिम आबादी ने गोघरा कांड को अंजाम दे दिया। 80 से अधिक कारसेवकों को मौत का घाट उतार दिया गया, उन्हें पेट्रोल छिड़क कर सरेआम जला दिया। फलस्वरूप प्रतिक्रिया हुई। प्रतिक्रिया गुजरात दंगे के रूप में आयी थी। गुजरात दंगा कितना भयानक था, कितना खतरनाक था, यह भी उल्लेखनीय है। इसलिए किसी एक व्यक्ति की प्रतिक्रिया में हिन्दुत्व के प्रतीकों को नुकसान करने की मानसिकता को स्वीकार नहीं किया जा सकता है, इस प्रवृति को बढावा नहीं दिया जा सकता है। अगर किसी ने कोई अस्वीकार बात कह दी है तो फिर इसके लिए थाना है, कोर्ट है। फिर कानून को हाथ में लेने की कबिलाई हिंसा अस्वीकार है।
मुस्लिम हिंसक आबादी अब भारत की एकता और अखंडता को चुनौती दे रही है। भारत के हितों पर कुठराघात कर रही है। हिजबुल्लाह के सरगना हसन नसरल्लह और हमास सरगना इस्माइल हनिया की हत्या का हिंसक विरोध कर राष्ट्रीय हित का नुकसान कर रहे हैं। हमारा हित यह कहता है कि इस्राइल ही क्यों बल्कि हमास और हिजबुल्लाह को भी हिंसा छोडनी होगी। अगर हमास और हिजबुल्लाह हिंसा करेगा, फिलिस्तीन को सिर्फ मुस्लिम दृष्टिकोण से देखेंगे तो फिर भारत को इसका समर्थन क्यों करना चाहिए? इस्राइल ने हमारी सुरक्षा जरूरतों को आसान किया है। मुस्लिम आबादी के लिए भारत का हित गौण हो गया है। इस्राइल के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले हिंसक मुसलमानों और यति नरसिम्हानंद के खिलाफ फतवे जारी करने वाले मुसलमानों को भी काूननी पाठ पढाने की जरूरत है।