ये हैं, श्री श्रीधर वेंबु!

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श्रीरंग वासुदेव पेंढारकर

चेन्नई । अगर आपने अब तक इनका नाम नहीं सुना है तो शीघ्र ही सुनने वाले हैं। श्रीधर वेंबु की अपनी एक IT कंपनी है जिसका नाम है ‘जोहो’ (Zoho). जोहो के बारे में जो भी सुनेंगे वो आपको अचंभित कर देगा। आइए इनकी इस रोचक कहानी को शुरू से ही सुनते हैं!

श्रीधर वेंबु, तमिलनाडु के तंजावुर जिले के एक छोटे से गांव से आते हैं। 1989 में श्रीधर ने IIT चेन्नई से बी. टेक. की उपाधि प्राप्त की। इसके पश्चात प्रिंसटन यूनिवर्सिटी, न्यू जर्सी से आपने MS और Ph D की उपाधियां प्राप्त की। इसके पश्चात कुछ समय श्रीधर अमेरिका में ही IT कंपनी में कार्यरत रहे। भरपूर वेतन प्राप्त कर रहे श्रीधर को IT में कुछ अलग करना था। विशेषत: वे चाहते थे कि अपने देश भारत में कुछ किया जाय। फलतः 1996 में वे अमेरिका से भारत लौट आए और उन्होंने अपने दो भाइयों के साथ मिल कर एक IT कंपनी की स्थापना की जो आज ज़ोहो कॉर्पोरेशन के नाम से जानी जाती है।

श्रीधर बताते हैं कि प्रारम्भ में उन्हें कईं चुनौतियों का सामना करना पड़ा। उन्होंने व्यापार स्वयं के धन से याने बगैर किसी निवेशक का धन लगवाए प्रारंभ किया था। काम मिल नहीं रहा था। प्रत्येक काम के लिए एडी छोटी का जोर लगाना पड़ रहा था। उन्हीं दिनों क्लाउड तकनीक प्रचार में आई। जोहो ने इस तकनीक को अपना लिया और क्लाउड आधारित उत्पाद विकसित किए। अब जोहो को काम मिलने लगे और कंपनी कुलांचे भरने लगी।

महत्वपूर्ण यह है कि भारत में श्रीधर ने अपनी कम्पनी के मुख्यालय के लिए बैंगलोर या हैदराबाद जैसे शहर को नहीं बल्कि तमिलनाडु के छोटे जिले टेनकाशी के छोटे से गांव को चुना। यह अपने आप में एक क्रांति थी। जिस दौर में IT कंपनियां मेट्रो के अतिरिक्त दूसरी श्रेणी के नगरों में भी काम नहीं कर रही थी, श्रीधर एक छोटे से गांव में पहुंच गए थे और वहां से वैश्विक स्तर के उत्पाद बना रहे थे। देखते देखते जोहो का व्यापार बढ़े लगा। आज जोहो के क्लाउड आधारित 50 से भी ज्यादा IT उत्पाद है, जिन्हें 180 देशों में करोड़ों लोग इस्तेमाल कर रहे हैं। श्रीधर वेंबु की संपत्ति आज लगभग 52000 करोड़ हो चुकी है और वे भारत के शीर्ष 50 धनपतियों में शुमार है। सरकार उन्हें पद्मश्री से सम्मानित कर चुकी है।

प्रारंभ में जोहो के उत्पाद पारम्परिक IT उत्पाद यानी कि अकाउंटिंग और CRM से संबंधित थे। परन्तु कुछ वर्ष पहले जोहो ने अपना ई मेल प्लेटफॉर्म बना लिया। इस क्षेत्र में गूगल की धाक बनी हुई है। परन्तु जोहो ने धीरे धीरे अपनी जगह बनाना शुरू की। अब तक, जोहो के उत्पादों की यह पहचान स्थापित हो चुकी थी कि उनके उत्पाद विश्वसनीय, उपयोग में आसान और अच्छे फीचर्स के साथ उपलब्ध रहते हैं। कुछ समय बाद जोहो ने अपना संवाद स्थापित करने का उत्पाद भी बना लिया और उसे नाम दिया गया Arattai। यह, एक तरह से लोकप्रिय संवाद ऐप व्हाट्स ऐप का भारतीय विकल्प है। Arattai का तमिल में अर्थ होता है Instant Chat यानी तुरन्त बातचीत!

सत्ता में आने के बाद से ही प्रधानमंत्री मोदी का जोर भारत में विकसित उत्पादों पर रहा है। वे आत्म निर्भर भारत के हिमायती है। पिछले दिनों राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा जिस तरह से भारत को ब्लैकमेल करते हुए शुल्कों में अभूतपूर्व वृद्धि की गई है, उससे आत्मनिर्भरता का महत्व और अधिक सघन हो कर सामने आया है। इस बदली परिस्थिति में जोहो के उत्पाद भारतीय विकल्प के रूप में प्रसिद्ध हो रहे है। पिछले मात्र तीन दिनों में Arattai को डाउन लोड करने वालों की संख्या में 100 गुना की वृद्धि हुई है। आने वाले में कुछ समय में यह संख्या और 100 गुना बढ़ने की संभावना नजर आ रही है। रेल मंत्री अश्वनी वैष्णव द्वारा रेलवे के इस्तेमाल के लिए जोहो के उत्पादों के उपयोग पर जोर दिया गया है। केंद्रीय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने भी यह कह कर जोहो अपनाने के लिए कहा है कि इनके उत्पाद विश्वस्तरीय और विश्वसनीय हैं। हालांकि गत दो दिनों से Arattai कि का तंत्र ठप पड़ गया है। मांग में हुई अप्रत्याशित वृद्धि के लिए उनके कंप्यूटर्स तैयार नहीं थे। निश्चित ही इस समस्या को शीघ्र ही हल कर लिया जाएगा।

श्रीधर वेंबु आज भारत की योग्यता ओर काबिलियत के उदाहरण बन चुके हैं। उन्होंने सिद्ध किया है कि उच्च कोटि के उत्पाद भारत के देहात में रह कर भी बनाए जा सकते हैं। वे भारतीय संस्कृति का सम्मान करते हैं और भारतीय मूल्यों में विश्वास रखते है। उन्होंने कंपनीयों में हर तिमाही में विक्रय के लक्ष्य रख कर कर्मचारियों पर सतत दबाव बनाए रखने की पाश्चिमात्य संस्कृति को अपनी कंपनी में नहीं अपनाया है। इसी प्रकार जोहो के इस असाधारण विकास के लिए न किसी निवेशक से धन लिया गया है और न ही शेयर बाजार से!

उम्मीद करें कि आने वाले कुछ समय में हम सभी व्हाट्स ऐप की बजाय Arattai का उपयोग करेंगे। यदि ऐसा संभव हो पाता है तो आत्मनिर्भरता की दिशा में यह एक बड़ा कदम होगा। और इसका श्रेय जाएगा तमिलनाडु के छोटे से गांव से आए श्रीधर वेंबु को। जिन्होंने एक सपना देखा और उस सपने को पूरा करने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया। 

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