योगी का भगवा और बुलडोजर : विपक्ष के झूठ का पोस्टमार्टम और 2027 के गठबंधन की अनिवार्यता

cm-yogi-adityanath-story-politics-and-life-baba-bulldozer-bjp-foundation-news.jpg.avif

लखनऊ : उत्तर प्रदेश में 2027 का विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, वही पुराना टेप-रिकॉर्ड फिर बजा दिया गया है। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बसपा और उनके नए-पुराने सहयोगी एक ही सुर में चिल्ला रहे हैं :

“संन्यासी को सत्ता में नहीं आना चाहिए”, “भगवा राजनीतिक हथियार है”, “योगी अनपढ़ हैं, फर्जी डिग्री वाले हैं”, “कट्टर हिंदुत्ववादी हैं”।
ये चार लाइनें पिछले दस साल से एक ही रिकॉर्ड की तरह बज रही हैं। अब समय आ गया है कि इस रिकॉर्ड को तोड़ा जाए और सुई को सच्चाई के पॉइंट पर फिट कर दिया जाए।पहला झूठ : संन्यासी को सत्ता में आने का अधिकार नहींविपक्ष का सबसे पुराना और सबसे घटिया तर्क है कि संन्यासी ने गृहस्थ जीवन त्याग दिया है, इसलिए वह मुख्यमंत्री नहीं बन सकता। यह तर्क इतना खोखला है कि हंसते-हंसते पेट दुख जाए।भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 में हर नागरिक को धर्म पालन करने, धार्मिक संस्थाएं बनाने और प्रचार करने का अधिकार है। संन्यास लेना भी एक धार्मिक अधिकार है। कहीं नहीं लिखा कि संन्यासी वोट नहीं लड़ सकता, मंत्री नहीं बन सकता या मुख्यमंत्री नहीं बन सकता। अगर ऐसा होता तो 1952 में ही स्वामी करपात्री जी महाराज, स्वामी आत्मानंद, आचार्य जे. बी. कृपलानी जैसे दर्जनों संन्यासी-साधु संसद में नहीं पहुंचते।अब विपक्ष के अपने हीरो देखिए।

  • मौलाना अबुल कलाम आजाद : मौलाना की टोपी-दाढ़ी में आजादी की लड़ाई लड़ी, मंत्री बने। कोई नहीं बोला कि मौलाना ने दुनिया नहीं त्यागी, इसलिए सत्ता में नहीं आ सकते।
  • मौलाना तौकीर रजा : 2022 में सपा के मंच पर खड़े होकर वोट मांगते हैं। कोई नहीं बोला कि मौलाना को मसjid में रहना चाहिए।
  • इमाम-उल-हक बुधवार को जुमे की नमाज पढ़ाते हैं, शनिवार को सपा की रैली में भाषण देते हैं। तब सेक्युलरिज्म की सारी नदियां बहने लगती हैं।

बस योगी आदित्यनाथ भगवा पहनकर जनता की सेवा करें तो संविधान खतरे में पड़ जाता है?
यह दोहरा मापदंड नहीं, घोर पाखंड है। भगवा जब टोपी-दाढ़ी के सामने आता है तो विपक्ष की सेक्युलर आंखें अचानक धुंधली हो जाती हैं।दूसरा झूठ : भगवा राजनीतिक हथियार है, आध्यात्मिकता का प्रतीक नहींयह तर्क भी उतना ही हास्यास्पद है।
भगवा रंग हिंदू संन्यास परंपरा का प्रतीक है। आदि शंकराचार्य से लेकर स्वामी विवेकानंद तक, स्वामी दयानंद सरस्वती से लेकर स्वामी रामदेव तक सबने भगवा धारण किया। क्या वे सब राजनीतिक हथियार बना रहे थे?योगी आदित्यनाथ ने 1993-94 में दीक्षा ली थी। उस समय वे न तो सांसद थे, न विधायक, न मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे थे। वे गोरक्षपीठ के उत्तराधिकारी बने, यह धार्मिक परंपरा का हिस्सा था। 1998 में जब पहली बार लोकसभा लड़े तब भी भगवा नहीं उतारा। 2017 में मुख्यमंत्री बने तब भी नहीं उतारा। अगर भगवा राजनीतिक हथियार होता तो अखिलेश यादव 2013 में सैफई महोत्सव में भगवा शॉल ओढ़कर क्यों घूम रहे थे? राहुल गांधी जनेऊ दिखाकर क्यों वोट मांगते हैं? प्रियंका गांधी माथे पर बड़ी-बड़ी बिंदी लगाकर क्यों घूमती हैं? सच यह है कि भगवा जब हिंदू संन्यासी पहनता है तो कट्टरता हो जाता है, जब विपक्षी नेता चुनाव में ओढ़ लेते हैं तो सेक्युलर फैशन हो जाता है। यह दोहरा चरित्र ही विपक्ष की असली पहचान है।तीसरा झूठ : कम पढ़े-लिखे हैं, फर्जी डिग्री वाले हैंयह विपक्ष का सबसे प्रिय हथियार है। दस साल से एक ही रटंत : “योगी आधे-अधूरे पढ़े हैं।”सच्चाई :

  • योगी आदित्यनाथ ने 1970 के दशक में गढ़वाल विश्वविद्यालय (तब गढ़वाल यूनिवर्सिटी, अब हेमवती नंदन बहुगुणा) से बी.एस-सी. किया था।
  • 1998 से 2007 तक के चुनावी हलफनामों में बी.एस-सी. लिखा था।
  • बाद में उन्होंने स्वयं सुधार किया और नया हलफनामा दिया कि कोर्स पूरा नहीं कर पाए, इसलिए अंतिम योग्यता इंटरमीडिएट है।
  • आज तक कोई कोर्ट, कोई यूनिवर्सिटी, कोई जांच एजेंसी ने फर्जी डिग्री का आरोप सिद्ध नहीं किया। एक भी FIR नहीं।

अब विपक्ष के अपने स्टार देखिए :

  • राहुल गांधी : कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी ने 2005 और 2019 में साफ कहा कि उनके पास राहुल गांधी का M.Phil का कोई रिकॉर्ड नहीं। फिर भी “M.Phil” लिखते हैं।
  • अखिलेश यादव : सिडनी यूनिवर्सिटी ने साफ कहा कि उनके पास अखिलेश का कोई रिकॉर्ड नहीं। फिर भी “इंजीनियर” लिखते हैं।
  • तेजस्वी यादव : 9वीं फेल होने के बावजूद क्रिकेट अकादमी में BA का फर्जी सर्टिफिकेट लगाकर खेलते रहे।

इन सबके लिए विपक्ष की जुबान पर ताला लग जाता है। लेकिन योगी जी ने खुद सुधार कर लिया तो फर्जी डिग्री हो गई?
यह नहीं चलेगा।और अगर डिग्री ही सबकुछ है तो बिल गेट्स, मार्क जुकरबर्ग, मुकेश अंबानी, गौतम अडानी – सब अनपढ़ हैं क्या? फिर भी दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियां चला रहे हैं। योगी आदित्यनाथ 20 करोड़ की आबादी वाला प्रदेश 8 साल से बिना एक दंगे, बिना माफिया राज, बिना भ्रष्टाचार के चला रहे हैं। यह डिग्री से नहीं, दम-खम से हो रहा है।चौथा झूठ : कट्टर हिंदुत्ववादी हैं, इसलिए अयोग्य हैंयह सबसे बड़ी हास्यास्पद बात है।
जब मायावती ने 2007 में ब्राह्मण-दलित गठजोड़ किया था तो वह सामाजिक इंजीनियरिंग था।
जब अखिलेश यादव ने 2022 में मुस्लिम-यादव फॉर्मूला चलाया तो वह सेक्युलरिज्म था।
जब राहुल गांधी मंदिर-मंदिर भागते हैं तो वह सॉफ्ट हिंदुत्व है।
लेकिन योगी जी राम मंदिर की बात करें तो कट्टरता हो जाती है?योगी सरकार ने :

  • 8 साल में एक भी दंगा नहीं होने दिया (अखिलेश राज में हर साल दर्जनों दंगे)
  • 65 हजार से ज्यादा एनकाउंटर किए, 200 से ज्यादा अपराधी मारे गए, हजारों जेल में
  • माफिया की 6000 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति जब्त की
  • 6 लाख से ज्यादा सरकारी नौकरियां बिना पर्ची-खर्ची के दीं
  • 2.5 करोड़ शौचालय बनवाए, 55 लाख गरीबों को घर दिए
  • 100 से ज्यादा नए मेडिकल कॉलेज खोले

यह सब कट्टरता से हुआ या कुशासन खत्म करने की इच्छाशक्ति से?2027 और गठबंधन की अनिवार्यताविपक्ष जानता है कि अकेले-अकेले लड़ने से उत्तर प्रदेश में उसका सूपड़ा साफ है। इसलिए 2024 लोकसभा की तरह फिर “इंडिया” नाम का नया गठबंधन बना रहे हैं। लेकिन जनता सब देख रही है।

  • एक तरफ वह नेता जो भगवा को गाली देता है, संन्यासी को कोसता है, हिंदू त्योहारों पर चुप रहता है।
  • दूसरी तरफ वह संन्यासी जो सुबह 5 बजे उठकर प्रदेश की 20 करोड़ जनता की चिंता करता है, बिना छुट्टी, बिना परिवार, बिना निजी जीवन के।

2027 में जनता फिर वही फैसला सुना देगी जो 2017, 2019, 2022 और 2024 में सुन चुकी है।
क्योंकि जनता जानती है – भगवा डराता नहीं, माफिया को डराता है।
संन्यासी सत्ता में नहीं आया तो अपराधी सत्ता में आ जाएंगे।
और डिग्री से प्रदेश नहीं चलता, इरादे से चलता है।योगी आदित्यनाथ 2027 में फिर मुख्यमंत्री बनेंगे।
और विपक्ष फिर वही पुराना रिकॉर्ड बजाता रहेगा – “अनपढ़… कट्टर… भगवा…”
लेकिन इस बार जनता की लाठी उस रिकॉर्ड को तोड़कर रख देगी।

Share this post

आशीष कुमार अंशु

आशीष कुमार अंशु

आशीष कुमार अंशु एक पत्रकार, लेखक व सामाजिक कार्यकर्ता हैं। आम आदमी के सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों तथा भारत के दूरदराज में बसे नागरिकों की समस्याओं पर अंशु ने लम्बे समय तक लेखन व पत्रकारिता की है। अंशु मीडिया स्कैन ट्रस्ट के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं और दस वर्षों से मानवीय विकास से जुड़े विषयों की पत्रिका सोपान स्टेप से जुड़े हुए हैं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

scroll to top